संतान के दीर्घायु के लिए माताओं ने किया ललही छठ, कुंडों-सरोवरों पर पूजन कर सुनी कथा

संतान के दीर्घायु के लिए माताओं ने किया ललही छठ, कुंडों-सरोवरों पर पूजन कर सुनी कथा

वाराणसी, भदैनी मिरर। भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि पर शनिवार को पुत्र दीर्घायु कामना के साथ माताओं ने ललही छठ का व्रत किया। व्रती महिलाएं कुंडों और सूर्य सरोवरों के किनारे विधि विधान से पूजन अर्चन कर रही है। इस दौरान हलषष्ठी एवं बलराम की कथा भी सुन रही। सुबह से ही कुंडों और तालाबों के किनारे इकट्‌ठा होकर माताएं हलषष्ठी माता की पूजा करती दिखीं।

सुबह से ही माताएं पूजा का थाल सजाकर कुंडों और तालाबों पर पहुंच रही। थाल में महुए के पत्ते, दही, महुआ, चावल, फल और मिठाई सहित अन्य पूजन सामग्री सजा था। कुंड और सरोवरों के किनारे फूल, गूलर, कुश और साफा से सजाया गया। इसके बाद ललही महारानी की पूजा कर उन्हें भुना हुआ चना, गेहूं, धान, मक्का, ज्वार और बाजरा चढ़ाया गया।

पौराणिक मान्यता है कि ललही देवी की पूजा करने से पुत्र रत्न की प्राप्ति के साथ उनकी उम्र लंबी होती है। ग्रामीण ही नहीं नगर क्षेत्र में भी तमाम महिलाओं ने इस व्रत को श्रद्धा के साथ रखा। शहरी व ग्रामीण क्षेत्र में माताओं ने बेटे की लंबी उम्र और मंगलकामना के लिए ललही छठ का व्रत रखा। पूजन के बाद बेटे के लिए आशीष मांगा। काशी के कुंडों और तालाबों में सुरक्षा के मद्देनजर पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं।

ऐसे करे पूजन

ज्योतिषाचार्य पंडित लोकनाथ शास्त्री के मुताबिक, व्रती महिलाएं सुबह नित्य क्रिया से निवृत होकर पुत्र की दीघार्यु का संकल्प करें। नए वस्त्र धारण करके गोबर ले आएं। साफ जगह को गोबर के लेप से तालाब बनाएं। तालाब में झरबेरी, ताश और पलाश की एक-एक शाखा बांधकर बनाई गई हरछठ को गाड़ दें। विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना करें। पूजा के लिए सतनाजा (यानी सात तरह के अनाज जिसमें आप गेंहू, जौ, अरहर, मक्का, मूंग और धान) चढ़ाएं। इसके बाद हरी कजरियां, धूल के साथ भुने हुए चने और जौ की बालियां चढ़ाएं। इसके बाद कोई आभूषण और रंगीन वस्त्र चढ़ाएं। इसके बाद भैंस के दूध से बनें मक्खन से हवन करें। इसके बाद व्रत की कथा का श्रवण करें।