हिन्दी दिवस : भारतीय भाषाओं की महानदी आज भी ढूंढ रही अपना अस्तित्व

हिंदी एक ऐसी भाषा है जो न केवल हिंदुस्तान के लोगों को बल्कि विदेशों में बसे भारतीयों को भी आपसे में जोड़ती है. आज, दुनिया भर के 175 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिंदी का अध्ययन किया जा रहा है. ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में भी हिंदी का तेजी से विस्तार हो रहा है और सोशल मीडिया व संचार माध्यमों में इसका उपयोग लगातार बढ़ रहा है. इसके बावजूद, यह सवाल अक्सर उठता है कि हिंदी, जो इतने व्यापक रूप में अपनी पहचान बना चुकी है, उसे अब तक 'राष्ट्रभाषा' का दर्जा क्यों नहीं मिल पाया?

हिन्दी दिवस : भारतीय भाषाओं की महानदी आज भी ढूंढ रही अपना अस्तित्व

अंकिता यादव

'भारतीय भाषाएं नदियां हैं और हिंदी महानदी'—रवींद्रनाथ टैगोर की इन पंक्तियों ने हिंदी के महत्व को बड़े ही सुंदर और गहरे तरीके से प्रस्तुत किया है. भारत, जहां 22 आधिकारिक भाषाएं और 72,507 लिपियाँ पाई जाती हैं, वहां हिंदी एक ऐसी भाषा है जो न केवल हिंदुस्तान के लोगों को बल्कि विदेशों में बसे भारतीयों को भी आपसे में जोड़ती है. आज, दुनिया भर के 175 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिंदी का अध्ययन किया जा रहा है. ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में भी हिंदी का तेजी से विस्तार हो रहा है और सोशल मीडिया व संचार माध्यमों में इसका उपयोग लगातार बढ़ रहा है.

इसके बावजूद, यह सवाल अक्सर उठता है कि हिंदी, जो इतने व्यापक रूप में अपनी पहचान बना चुकी है, उसे अब तक 'राष्ट्रभाषा' का दर्जा क्यों नहीं मिल पाया? आखिर क्यों यह भाषा, जो भारत के दिल की धड़कन है, अपने पूर्ण उत्थान की प्रतीक्षा कर रही है? यह केवल 'राजभाषा' के रूप में सीमित क्यों रह गई है? आज हिंदी दिवस के अवसर पर कुछ तथ्यों के जरिए हिंदी के वर्तमान स्थिति और उसकी अद्वितीय महत्ता पर प्रकाश डालते हैं....

सबसे पहले जानते है हिन्दी राजभाषा कैसे बनी

बाबासाहेब आंबेडकर की अध्यक्षता में गठित समिति में भाषा से जुड़े कानून बनाने की ज़िम्मेदारी दो प्रमुख विद्वानों को सौंपी गई थी, जो विभिन्न भाषाई पृष्ठभूमियों से थे. इनमें से एक थे कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी, जो मुंबई सरकार में गृह मंत्री रह चुके थे, और दूसरे थे तमिल भाषी नरसिम्हा गोपालस्वामी आयंगर, जो भारतीय सिविल सेवा के अधिकारी होने के साथ-साथ 1937 से 1943 तक जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री भी रह चुके थे। इन दोनों की अगुआई में भारत की राष्ट्रभाषा तय करने को लेकर हिंदी के समर्थन और विरोध में तीन साल तक गहन चर्चा चली.

आखिरकार, मुंशी-आयंगर फ़ॉर्मूला नामक एक समझौते पर सहमति बनी, और 14 सितंबर 1949 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 से 351 तक के प्रावधानों में हिंदी को राष्ट्रभाषा नहीं, बल्कि राजभाषा का दर्जा दिया गया। इसी कारण, 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हुई.

भारत के 43.63 प्रतिशत लोग बोलते है हिंदी

हमारे देश में भाषा का मुद्दा हमेशा से जटिल रहा है, लेकिन सच्चाई यह है कि हिंदी सबसे ज्यादा बोली और समझी जाने वाली भाषा है। पिछली जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, भारत के 43.63 प्रतिशत लोग हिंदी बोलते हैं.

आज भी देख सकते है कि बाहर के राज्यों से आने वाले हमारे कई अफसरशाह आज ऐसे भी है, जो हिंदी नहीं जानते। कई हिंदी प्रदेशों के अधिकारी भी अभी तक हिंदी में काम करते समय सकुचाते हैं, जबकि उनकी सहायता के लिए उन्हीं के नीचे कुशल राजभाषा कर्मी मौजूद होते हैं। सरकारी दफ्तरों की बात तो दूर, आम आदमी के जीवन से संबंध रखने वाली ढेरों छोटी-छोटी जानकारियां तक हिन्दी में कहां मिलती हैं? कितनी हिंदी फिल्मों की नामावली हिंदी में मिलती है?


इसके विपरीत यूरोप के छोटे-छोटे देशों तक में बिकने वाले सामान के डिब्बों पर जानकारी स्थानीय भाषा में होती है. वहां की फिल्मों की नामावली भी स्थानीय भाषाओं में होती है. वहां के कई देश तो हमारे कई बड़े जनपदों से छोटे हैं. हमारा एक-एक राज्य उन देशों से कहीं बड़ा है, फिर भी तमिल, कन्नड़, गुजराती, पंजाबी भाषाओं की बात तो छोड़िए पूरे देश की राजभाषा हिन्दी तक में यह सूचना उपलब्ध नहीं होती.

आज भी उत्थान की राह देख रही हिन्दी

कटु सत्य यह है कि हिंदी अभी तक हमारे देश में रोजगार की भाषा नहीं बन सकी है. वैसे इस पर लंबे तर्क-वितर्क किए जा सकते हैं. आज भले ही हम हिंदी दिवस मना रहे है, लेकिन सच यही है कि इतने वर्षों बाद भी हिन्दी एक ऐसी भाषा नहीं बन सकी है जो देश के बड़े हिस्से को स्वीकार्य हो और अंतरराष्ट्रीय मानकों पर भी खरी उतर सके. हिंदी भाषा को भले ही आज महत्व दिया जा रहा है, इसका प्रसार वैश्विक पटल पर भी हो रहा है, लेकिन सच्चाई यही है कि आज भी हिंदी अपने उत्थान की राह देख रही है और बस राजभाषा बनकर ही रह गई है.