Sawan 2024 :आजादी के बाद हुए बंटवारे की दास्तान बयां करता है काशी का यह शिवालय, दर्शन से पूरी होती है मनचाही मुराद

आज हम आपको काशी में स्थित भगवान शिव के एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे है जो काफी प्राचीन है और इसके बारे में शायद बहुत कम ही लोग जानते होंगे. जो पाकिस्तानी महादेव (Pakistani Mahadev) के नाम से जाना जाता है

Sawan 2024 :आजादी के बाद हुए बंटवारे की दास्तान बयां करता है काशी का यह शिवालय, दर्शन से पूरी होती है मनचाही मुराद

Pakistani Mahadev Temple : देवाधिदेव महादेव की बनाई नगरी काशी के कण-कण में भगवान शिव का वास है. यहां आपको हर एक गली-नुक्कड़ पर में भोलेनाथ के कई छोटे-बड़े मंदिर दिखाई देंगे, जिनके साथ कोई न कोई पौराणिक कथा या मान्यता जुड़ी हुई है. आज हम आपको काशी में स्थित भगवान शिव (Lord Shiva) के एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे है जो काफी प्राचीन है और इसके बारे में शायद बहुत कम ही लोग जानते होंगे. जो पाकिस्तानी महादेव (Pakistani Mahadev) के नाम से जाना जाता है. यह शिवलिंग आज़ादी के बाद हुए बंटवारे की दास्‍तान संजोये हुए है. आइए जानते है कि की काशी में भगवान शिव का ये मंदिर कहां है और इसका नाम पाकिस्तानी महादेव कैसे पड़ा….

Pakistani Mahadev : जानें काशी में कहां है यह मंदिर


दरअसल, हम जिस पाकिस्तानी महादेव के मंदिर की बात कर रहे है. वो शीतला घाट पर स्थित है. गंगा नदी में स्नान करने के बाद लोग पाकिस्तनी महादेव का दर्शन-पूजन करते है. इनकी पूजा का खास महत्व है. ऐसा माना जाता है कि इनके दर्शन से भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होती हैं.

इसलिए नाम पड़ा पाकिस्तानी महादेव

मंदिर की देखरेख करने वाले पंडित अजय कुमार शर्मा ने बताया कि बंटवारे के दौरान पश्चिम बंगाल से इस शिवलिंग को बंगाल का एक परिवार लेकर आया था, जो इसे गंगा नदी में विसर्जित करने जा रहा था, लेकिन लोगों ने उन्हें मना किया इसके बाद शिवलिंग को यही शीतला घाट पर स्थापित किया गया. तब से इस मंदिर का नाम पाकिस्तानी महादेव (Pakistani Mahadev) रख दिया गया. जिसे आज भी इसी नाम से पूजा जाता है.

मंदिर के पुजारी का कहना है कि इस मंदिर की स्थापना के लिए बूंदी स्टेट के अखाड़ा परिषद द्वारा स्थान दिया गया था. जिसे रघुनाथ व मुन्नू महाराज के सहयोग से स्थापित कराया गया. बाद में कई लोगों द्वारा मंदिर की पूजा का दायित्व लिया.

जानें मंदिर से जुड़ी कहानी

सन् 1947 में हिंदुस्तान-पाकिस्तान के बंटवारे के समय देश में हालात सही नहीं थे, पूरा देश दंगों की आग में जल रहा था. इसी दौरान बंगाल में भी दंगा भड़कने से वहां के लोग देश के अन्य हिस्सों में पलायन को मजबूर हो गए. इनमें से एक जानकी बाई बोगड़ा का परिवार भी जो पहले काशी के ही रहने वाले थे. पश्चिम बंगाल से पलायन कर फिर से यहां आ गया. बंगाल में जहां इनका परिवार रहता था, उन्होंने वहीं एक शिवलिंग की स्थापना की थी, जिसे पलायन के समय काशी ले आए. परिवार के साथ जब ये शीतला घाट किनारे गंगा में शिवलिंग का विसर्जन करने लगे तो वहां के कुछ पुरोहितों ने उन्हें ऐसा करने से रोका और मंदिर की स्थापना कराई.

मंदिर के पुजारी ने बताया कि शिवरात्रि और सावन में लोग दूर-दराज से बाबा की पूजा करने आते है. वहीं देवदीपावली के दिन पाकिस्तानी महादेव का भव्य श्रृंगार और खीर का वितरण होता है. बाबा से सच्चे मन से जो कोई भक्त कुछ मांगता है उसकी हर मनोकामना पूरी करते है.