Teachers’ Day 2024: जब अमेरिकी भी डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के हो गए थे मरीद, दुनियाभर में हुआ था उनके ज्ञान का प्रसार
हर साल 5 सितंबर को शिक्षकों के सम्मान में शिक्षक दिवस मनाया जाता है. इस दिन को भारत के दूसरे राष्ट्रपति और महान शिक्षाविद्, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस के तौर पर मनाया जाता हैं. आज, इस अवसर पर हम आपको डॉ. राधाकृष्णन से जुड़ी कुछ रोचक बातें बताएंगे, जो आपको प्रेरणा से भर देंगी.
Teachers Day 2024 : आपने वह दोहा तो सुना ही होगा, "गुरु बिन ज्ञान न उपजे, गुरु बिन मिले न मोक्ष". इसका अर्थ है कि बिना गुरु के न तो ज्ञान प्राप्त होता है और न ही मोक्ष. गुरु के बिना व्यक्ति सत्य को समझ नहीं पाता, और उनकी शिक्षा ही जीवन के सारे दोष समाप्त करती है. इस दोहे में हमारे जीवन का गहरा सार छिपा है, क्योंकि गुरु का हमारे जीवन में सर्वोच्च स्थान होता है. यदि गुरु न होते तो अर्जुन महान धनुर्धर नहीं बन पाते, युधिष्ठिर धर्म का ज्ञान कैसे प्राप्त करते और चाणक्य के बिना चंद्रगुप्त मौर्य का इतिहास भी अधूरा रहता. बिना गुरु के ज्ञान की प्राप्ति संभव नहीं है. इसीलिए हर साल 5 सितंबर को शिक्षकों के सम्मान में शिक्षक दिवस मनाया जाता है.
इस दिन को भारत के दूसरे राष्ट्रपति और महान शिक्षाविद्, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस के तौर पर मनाया जाता हैं. आज, इस अवसर पर हम आपको डॉ. राधाकृष्णन से जुड़ी कुछ रोचक बातें बताएंगे, जो आपको प्रेरणा से भर देंगी.
लोग प्यार से बुलाते थे 'प्रोफेसर साहब'
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को लोग सम्मान से 'प्रोफेसर साहब' कहकर पुकारते थे. उन्होंने स्वतंत्र भारत के पहले उपराष्ट्रपति और बाद में राष्ट्रपति का पद संभाला. वे राज्यसभा के सबसे कुशल सभापति माने जाते थे, जिनकी एक युक्ति से विपक्ष भी शांत हो जाता था. वे भारत के ऐसे एकमात्र राष्ट्रपति थे, जिन्होंने दो युद्ध देखे और दो कार्यवाहक प्रधानमंत्रियों को शपथ दिलाई.
कलकत्ता विश्वविद्यालय में विदाई के समय छात्रों ने दिया भावुक विदाई
1921 में मैसूर के प्रतिष्ठित महाराजा कॉलेज में प्रोफेसर रहते हुए, जब डॉ. राधाकृष्णन को कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बनने के लिए बुलाया गया, तो विश्वविद्यालय के बाहर छात्रों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी. छात्रों ने उनकी बग्गी को फूलों की मालाओं से सजाया, लेकिन उनकी आंखों में विदाई का गम साफ झलक रहा था. जब विदाई समारोह समाप्त हुआ और डॉ. साहब बाहर आए, तो उन्होंने बग्गी को फूलों से सजा देखा और मुस्कुराए. मगर उन्हें तब आश्चर्य हुआ जब उन्होंने देखा कि बग्गी में घोड़े नहीं थे. छात्रों ने खुद घोड़ों की जगह बग्गी खींचकर उन्हें रेलवे स्टेशन तक पहुंचाया और रास्ते में लोग उनके पैर छूकर आशीर्वाद ले रहे थे, जैसे घर का कोई सदस्य विदा हो रहा हो.
अमेरिका में गूंजा डॉ. राधाकृष्णन का नाम
स्वामी विवेकानंद के बाद, यदि किसी भारतीय ने अमेरिकी जनता को प्रभावित किया, तो वह थे डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन. 1926 में, जब उन्होंने हार्वर्ड विश्वविद्यालय में भारतीय दर्शन को पश्चिमी शैली में अंग्रेजी में समझाना शुरू किया, तो सभी को विवेकानंद का प्रसिद्ध भाषण याद आ गया. डॉ. राधाकृष्णन ने भारतीय संस्कृति और दर्शन को इतनी गहराई से प्रस्तुत किया कि अगले दिन के अमेरिकी अखबार उनके वक्तव्य से भरे पड़े थे।. हर कोई उनके भाषण और विश्लेषण की प्रशंसा कर रहा था. इसी साल डॉ. राधाकृष्णन ने "द हिंदी व्यू ऑफ लाइफ" नामक पुस्तक लिखी, जिसने उन्हें पश्चिमी दुनिया में एक प्रमुख दार्शनिक के रूप में प्रसिद्ध कर दिया.