किन्नर समाज की आवाज बन रही वैशाली पंडित, कहती है हमसे दुआएं तो सबको चाहिए मगर सम्मान नहीं मिलता
वारणसी,भदैनी मिरर। हमारे समाज में दो ही लिंग को तबज्जो दी जाती थी, लोगों का मानना था कि समाज का ताना-बाना मर्द और औरत से ही है। इस सोच के कारण सरकारी सुविधाओं से लेकर मतदान तक के अधिकार से वह बड़ा तबका नजरअंदाज होता था जो न तो मर्द है और न ही औरत यानी की किन्नर। भारत में सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें सरकारी दस्तावेज़ों में बाक़ायदा थर्ड जेंडर के तौर पर एक पहचान दी है। बाबजूद इसके अभी भी इनकी पहचान कुछ ऐसी है जिसे सभ्य समाज में अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता।
हिन्दुस्तान ही नहीं, पूरे दक्षिण एशिया में इनके दिल की बात और आवाज़ कोई सुनना नहीं चाहता क्योंकि पूरे समाज के लिए इन्हें एक बदनुमा दाग समझा जाता है। लोगों के लिए यह सिर्फ हंसी के पात्र हैं। लेकिन धीरे-धीरे यह वर्ग भी मुख्यधारा में शामिल हो रहा। परंपरा से इतर चुनावी मैदान में उतरने से लेकर समाजसेवा तक अब थर्ड जेंडर आगे आने लगा है।
अलीगढ़ की रहने वाली किन्नर वैशाली पंडित ट्वीटर पर काफी सक्रिय रहती है। वह अपने समाज की आवाज को बुलंदियों से उठाती है। भदैनी मिरर से बातचीत में वह कहती है कि शादी-ब्याह में नाच-गाकर या किसी बच्चे की पैदाइश पर जश्न मनाकर हमारा समाज अपनी कमाई करता था। बधाई गाने-बजाने वाले किन्नरों से दुआएं तो सबको चाहिए, मगर इन्हें सम्मान जैसी चीज नसीब नहीं होती जोकि किसी भी इंसान का हक़ है।
वैशाली पंडित कहती है कि हम सोशल मीडिया के अलावा अपने समाज को जागरुक कर रहे है कि वह पढ़ाई करें, नौकरियों में आये। कहती है वैशाली की दिक्कत सरकार की ओर से भी है, हमारे समाज को लेकर सार्थक प्रयास नहीं हो रहे, केवल घोषणाएं हो जाती है। आखिर बताइए किन्नर आम स्कूलों में पढ़ाई कैसे करें? इस ओर भी सरकार को ध्यान देना चाहिए। आज भी हमें बेहतर चिकित्सा सुविधा नहीं मिलती, कारण साफ है अस्पताल में हमारे लिए कोई अलग सुविधा नहीं है। हमें सुरक्षा भी नहीं मिल पाती। अक्सर सब किन्नरों के साथ बर्बरता की सूचनाएं भी आती है, लेकिन उसके लिए कोई आवाज नहीं उठाता। किन्नर समाज ज्यादा पढा-लिखा नहीं होने के कारण वह अपने हक-हुक़ूक़ के लिए लड़ भी नहीं सकता।