Chhath Puja 2024 : सीताजी ने पहली बार यहीं से की थी छठ व्रत की शुरुआत, आज भी हैं मां के पैरों के निशान!

बिहार के मुंगेर जिले से सूर्य उपासना के पर्व छठ की शुरुआत हुई, कहा जाता है कि यहां सबसे पहले मां सीता ने ऋषि मुद्गल के आश्रम में छठ व्रत किया था

Chhath Puja 2024 : सीताजी ने पहली बार यहीं से की थी छठ व्रत की शुरुआत, आज भी हैं मां के पैरों के निशान!

Chhath Puja 2024 : लोक आस्था का महापर्व छठ का आज तीसरा दिन है. बिहार, झारखंड और पूर्वांचल में इस पर्व का विशेष महत्व है. बिहार में छठ पर्व को बड़का पर्व यानि सबसे बड़ा पर्व भी कहा जाता है, इस त्योहार से जुड़ी कई मान्यताएं है. इनमें से एक मान्यता ये है कि बिहार के मुंगेर जिले से सूर्य उपासना के पर्व छठ की शुरुआत हुई, कहा जाता है कि यहां सबसे पहले मां सीता ने ऋषि मुद्गल के आश्रम में छठ व्रत किया था. यह स्थान अब सीताचरण मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है. आइए जानते है इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में विस्तार से.

ब्रह्महत्या के दोष से प्रभु श्रीराम थे दुखी

कहा जाता है कि प्रभु श्री राम द्वारा रावन का वध करने के बाद उनपर ब्रह्महत्या का दोष की बात सोचकर दुखी थे. तब कुलगुरु वशिष्ट ने उन्हें मुग्दलपुरी (मुंगेर) में ऋषि मुग्दल के पास ब्रह्महत्या मुक्ति यज्ञ के लिए भेजा था. मुग्दल ऋषि ने कष्टहरणी गंगा घाट पर श्रीराम से ब्रह्महत्या मुक्ति यज्ञ करवाया था, इस दौरान माता सीता भी प्रभु श्रीराम के साथ मुंगेर आई थीं, हालांकि स्त्री इस यज्ञ में भाग नहीं ले सकतीं, इसलिए माता सीता ऋषि मुग्दल की आश्रम में रहीं.

सीता मां ने यहां किया था छठ

तब काशर्नी घाट पर भगवान राम के लिये ब्रह्महत्या मुक्ति यज्ञ किया और माता सीता को उनके आश्रम में रहकर सूर्य उपासना करने के लिए कहा था, इसके बाद मां सीता ने ऋषि मुद्गल के आश्रम में रहते हुए उनके निर्देश पर सूर्य पूजा का चार दिवसीय छठ व्रत रखा।

माता सीता के पैरों के निशान आज भी हैं मौजूद

माता सीता ने यहां विधि विधान से सूर्यउपासना का त्योहार छठ किया था और इसके प्रमाण मुंगेर की सीताचरण मंदिर के गर्भगृह में अभी भी हैं. कहा जाता है कि पश्चिम और पूर्व दिशा की ओर माता सीता के पैरों के निशान और सूप आदि के निशान अभी भी मौजूद हैं.

मां गंगा के गर्भ में है सीताजी का मंदिर

मुंगेर का ये सीताचरण मंदिर साल भर में 5 महीने से ज्यादा समय तक गंगाजी में डूबा रहता है और छह महीने ही मंदिर से बाहर रहता है. 5 माह तक पानी में डूबे रहने के बाद भी पद-चिह्न वाले शिलापट्ट पर कोई असर नहीं पड़ता है. कहा जाता है कि मां सीता ने ही सबसे पहले छठ व्रत की थी और सूर्यउपासना के दौरान पश्चिम और पूर्व दिशा की तरफ अर्घ्य दिया दिया था, तब भगवान श्री राम ने भी सूप पर अर्घ्य दिया था, इसके बाद से ही छठ पर्व की शुरुआत हुई थी.

लोगों का मानना है कि मंदिर के प्रांगण में छठ व्रत करने से लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है. यहां की महिमा के बारे में मंदिर के पंडित बताते है कि यहीं से छठ पर्व की शुरुआत हुई और यहां माता सीता ने स्वयं छठ किया था, इस वजह से यहां छठ करने वालों की मनोकामनाएं जल्दी पूरी होती है.

आनंद रामायण में उल्लेख

मां सीता के यहां छठ करने के बारे में आनंद रामायण के पृष्ठ संख्या 33 से 36 तक उल्लेख है. दावा यह भी है कि यहां मौजूद सीता और भारत के अन्य मंदिरों में मौजूद सीता के पैरों के निशान एक जैसे हैं. इंग्लैण्ड के प्रसिद्ध यात्री सह शोधार्थी जब भारत आये तो उन्होंने इस मंदिर के पदचिन्हों का मिलान जनकपुर मंदिर, चित्रकूट मंदिर, मिथिला मंदिर से हुआ.