Pitru Paksha 2024 : काशी का ऐसा कुंड जहां भटकती आत्माओं को मिलती है मुक्ति, पिंडदान के लिए देशभर से आते हैं श्रद्धालु
आज हम आपको धर्म नगरी काशी के एक ऐसे कुंड के बारे में बताएंगे जहां पितरों के प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु के बाद उनकी आत्माओं को मिलती मुक्ति है, इसका वर्णन गरुण पुराण में भी मिलता है.
हिंदू धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व होता है. इस बार पितृपक्ष 17 सितंबर से शुरु हुआ है, जो 2 अक्टूबर तक रहेगा. पितृपक्ष (Pitru Paksha) के दौरान लोग अपने पितरों के निमित्त पूजा, तर्पण एवं पिंडदान आदि करके उनका पूजन करते हैं और उनका आशीर्वाद लेते है. पितृपक्ष न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से बल्कि ज्योतिष की दृष्टि से भी बहुत ज्यादा महत्व रखता है, ऐसे में आज हम आपको धर्म नगरी काशी के एक ऐसे कुंड के बारे में बताएंगे जहां पितरों के प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु के बाद उनकी आत्माओं को मिलती मुक्ति है, इसका वर्णन गरुण पुराण में भी मिलता है.
यहां स्थित है यह कुंड
दरअसल, हम जिस कुंड की बात कर रहें वो मोक्ष नगरी काशी के चेतगंज इलाके में स्थित है, जिसका नाम पिशाचमोचन कुंड (Pichas Mochan Kund) है. जहां त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है, जो लोग काशी से बाहर या काशी में अकाल मौत के शिकार होते हैं, उनके मोक्ष के लिए यह त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है.
बता दें कि, त्रिपिंडी श्राद्ध करने के लिए पिशाचमोचन सरोवर के घाट पर लोगों का तांता लग जाता है. काशी के अति प्राचीन पिशाच मोचन कुण्ड पर होने वाले त्रिपिंडी श्राद्ध के साथ ये मान्यता जुड़ी है कि पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से मरने के बाद व्याधियों से मुक्ति मिल जाती है, इसीलिये पितृपक्ष (Pitru Paksha) के दिनों पिशाच मोचन कुंड पर लोगों की भारी भीड़ उमड़ती है.
सिर्फ काशी में होती है त्रिपिंडि श्राद्ध!
महादेव की नगरी काशी पूरे विश्व में घाटों और तीर्थों के लिए जानी जाती है. 12 महीने चैत्र से फाल्गुन तक 15-15 दिन का शुक्ल और कृष्ण पक्ष का होता है, लेकिन पितृपक्ष (Pitru Paksha) अश्विन मास के कृष्ण पक्ष से शुरू होता है. इन 15 दिनों को पितरों की मुक्ति का दिन माना जाता है और इन 15 दिनों के अन्दर देश के विभिन्न तीर्थ स्थलों पर श्राद्ध और तर्पण का कार्य होता है. देश भर में सिर्फ काशी के ही अति प्राचीन पिशाचमोचन कुण्ड पर यह त्रिपिंडी श्राद्ध होता है, जो पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से मरने के बाद व्याधियों से मुक्ति दिलाता है.
पिशाचमोचन का वर्णन गरुण पुराण में भी
इस श्राद्ध कार्य में इस विमल तीर्थ पर वेदोक्त कर्मकांड विधि से तीन मिट्टी के कलश की स्थापना की जाती है, जो काले, लाल और सफेद झंडों से प्रतिकमान होते हैं. प्रेत बाधाएं तीन तरह की मानी जाती हैं. सात्विक, राजस, और तामस. इन तीनों बाधाओं से पितरों को मुक्ति दिलाने के लिए काले, लाल और सफेद झंडे लगाये जाते हैं, जिसको की भगवन शंकर, ब्रह्मा और विष्णु के प्रतीक के रूप में मानकर तर्पण और श्राद्ध का कार्य किया जाता है.
ऐसी मान्यता है कि पिशाचमोचन पर श्राद्ध करवाने से अकाल मृत्यु से मरने वाले पितरों को प्रेत बाधा से मुक्ति के साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है. पिशाच मोचन तीर्थ स्थली का वर्णन गरुण पुराण में भी वर्णित है.
पितृ पक्ष में जुटती है भारी भीड़
पुजारी प्यारेलाल ने बताया कि पिचाश मोचन में पर कुल सात प्रकार के पिंडदान किए जाते हैं. इनमें से प्रमुख नारायण बलि है, जो अकाल मृत्यु के लिए किया जाता है और एक पिंडी श्राद्ध है, जो पितृ दोष के निवारण के लिए किया जाता है. गया श्राद्ध के लिए लोग गया भी जाते हैं. उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश से लोग यहां पिंडदान के लिए आते हैं. यहां पिंडदान और तर्पण करने के लिए दूर दूर से लोग आते हैं. वाल्मीकि जी द्वारा किए गए कर्मों के पश्चात उन्हें जो दोष लगा था, उसका निवारण भी यहां पिंडदान द्वारा किया गया. यह तीर्थ स्थान गंगा नदी के उद्भव से भी प्राचीन माना जाता है.
उन्होंने आगे बताया कि, पितरों की मुक्ति की कामना से पिशाच मोचन कुण्ड पर श्राद्ध और तर्पण करने के लिए लोगों की भीड़ पितृपक्ष के महीने में यहां जुटती है. मान्यता है कि जिन पूर्वजों की मृत्य अकाल हुई है वो प्रेत योनि में जाते हैं और उनकी आत्मा भटकती है. उन्हीं की शांति और मोक्ष के लिये यहां तर्पण का कार्य किया जाता है. हर वर्ष 15 दिन के पितृ पक्ष के दौरान यहां लोग पिंडदान करने के बाद गया जाते है. धार्मिक स्थली पिशाच मोचन के साथ ये मान्यता जुडी हुई है कि यहां का तर्पण का कर्मकांड करने के बाद ही गया में पिंडदान किया जाता है, ताकि पितरों के लिये स्वर्ग का द्वार खुल सके.