संविवि : दीक्षांत समारोह में पदक पाकर चहके मेधावी, अपर सचिव और राज्यपाल रहीं अतिथि, बोलीं संस्कृत भाषा और संस्कृति ने भारत एकता को एक सूत्र में जोड़ा
अखिलेश मिश्र ने कहा कि संस्कृत की वजह से ही भारत विविधता वाला देश है। संस्कृत के प्रभाव से ही विश्व बंधुत्व की भावना विकसित होती जा रही है। दीक्षांत का अर्थ शिक्षा का अंत नही बल्कि दायित्व निर्वहन की जिम्मेदारी अब और बढ़ गई है। देश की सांस्कृतिक आत्मा की रक्षा के लिए आगे आने की जरूरत है।
वाराणसी, भदैनी मिरर। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के 38वां दीक्षांत समारोह मंगलवार को सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि मालदीव के पूर्व राजदूत, टोरंटो कनाडा के कोंसुल जनरल और विदेश मंत्रालय में अपर सचिव अखिलेश मिश्र ने 29 मेधावियों में 58 स्वर्ण पदक वितरित किए । साथ ही जीवन मे सफलता के मार्ग पर आगे बढ़ते रहने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि संस्कृत का भारतीय संस्कृति से अटूट संबंध है। यह विश्व कल्याण की भाषा है। देववाणी में शब्दों की उतपत्ति गुणों से होती है। भारत की एकजुटता की परंपरा देखनी हो तो केवल संस्कृत में ही मिलती है।
अखिलेश मिश्र ने कहा कि संस्कृत की वजह से ही भारत विविधता वाला देश है। संस्कृत के प्रभाव से ही विश्व बंधुत्व की भावना विकसित होती जा रही है। दीक्षांत का अर्थ शिक्षा का अंत नही बल्कि दायित्व निर्वहन की जिम्मेदारी अब और बढ़ गई है। देश की सांस्कृतिक आत्मा की रक्षा के लिए आगे आने की जरूरत है।
समारोह में आचार्य परीक्षा में सर्वाधिक 10 पदक पाकर मीना कुमारी विश्वविद्यालय टॉपर रही। इसके साथ ही आचार्य परीक्षा में ही सुमित्रानंदन चतुर्वेदी-आशुतोष मिश्र को 5-5 पदक मिले। इस दौरान राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने पंडित रामयत्न शुक्ल को महामहोपाध्याय की उपाधि प्रदान की।
वहीं कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए उत्तर प्रदेश की राज्यपाल और कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल ने कहा कि संस्कृत भाषा और सनातन संस्कृति की वजह से ही भारत एकता के सूत्र में बंधा है। यह खेद का विषय है कि लंबे समय से संस्कृत भाषा उपेक्षित है। अब नई शिक्षा नीति में संस्कृत अध्ययन को बढ़ावा दिया जा रहा है। अब संस्कृत के प्रचार प्रसार के लिए विद्वानों को आगे आना होगा। सरकार भी संस्कृत भाषा के संवर्धन के लिए प्रयासरत है। संस्कृत केवल भाषा ही नही भारतीय संस्कृति की आत्मा है।
नई पीढ़ी को संस्कृत के प्रति जागरूक करने की जरूरत है और इस दिशा में संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों की अहम भूमिका है। कुलपति प्रो.राजाराम शुक्ल ने अतिथियों का स्वागत करते हुए विश्वविद्यालय की उपलब्धियों को बताया। संचालन कुलसचिव राजबहादुर ने किया।