हर वर्ष क्यों होता है तुलसी विवाह, क्या है इससे जुड़ी पौराणिक कथा?
हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर तुलसी विवाह (Tulsi Vivah) मनाया जाता है, जिसे देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म में इस दिन का बहुत विशेष महत्व है और इसे एक परंपरा के रूप में सदियों से निभाया जा रहा है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि हर साल तुलसी विवाह क्यों मनाया जाता है?
हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर तुलसी विवाह (Tulsi Vivah) मनाया जाता है, जिसे देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म में इस दिन का बहुत विशेष महत्व है और इसे एक परंपरा के रूप में सदियों से निभाया जा रहा है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि हर साल तुलसी विवाह क्यों मनाया जाता है? इसके पीछे की पौराणिक कथा क्या है? आइए, जानते हैं इसके बारे में विस्तार से।
तुलसी विवाह का महत्व और कथा
कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवी तुलसी का विवाह भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप से कराया गया था। इस घटना की स्मृति में हर वर्ष यह विवाह पुनः आयोजित किया जाता है। इस विवाह का प्रतीकात्मक महत्व यह है कि जो लोग इस दिन तुलसी और शालिग्राम का विवाह कराते हैं, उनका वैवाहिक जीवन सुखमय होता है।
तुलसी विवाह की पौराणिक कथा
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, तुलसी पहले "वृंदा" नाम की एक स्त्री थीं, जो असुर जालंधर की पत्नी और भगवान विष्णु की परम भक्त थीं। वृंदा की भक्ति इतनी प्रबल थी कि उसके पति जालंधर को कोई पराजित नहीं कर सकता था। एक बार, जालंधर ने देवताओं को युद्ध के लिए ललकारा, और दोनों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। विष्णु के वरदान के कारण देवता उसे हरा नहीं पा रहे थे, इसलिए उन्होंने विष्णु से सहायता मांगी।
युद्ध के दौरान, जब जालंधर ने वृंदा को अपनी विजय के लिए प्रार्थना करने कहा, तभी भगवान विष्णु, जालंधर का रूप धारण कर वृंदा के सामने प्रकट हुए। वृंदा ने अपनी प्रार्थना छोड़ दी और जालंधर समझकर विष्णु के चरणों में झुक गई, जिससे असली जालंधर की शक्तियाँ नष्ट हो गईं और भगवान शिव ने उसे मार दिया।
वृंदा का विष्णु को श्राप
जब वृंदा को इस छल का पता चला, तो उसने विष्णु को श्राप दिया कि वे शालिग्राम में बदल जाएँ और अपनी पत्नी लक्ष्मी से दूर हो जाएँ। श्राप के प्रभाव से विष्णु शालिग्राम बन गए और अपने राम अवतार में सीता से भी अलग हो गए। इसके बाद, वृंदा ने अपने प्राण त्याग दिए और देवताओं ने उन्हें तुलसी के पौधे का रूप दे दिया। भगवान विष्णु ने वृंदा से वचन दिया कि वे अगले जन्म में उनसे विवाह करेंगे। इसी वचन के अनुसार, शालिग्राम रूप में विष्णु ने तुलसी से विवाह किया। तभी से इस दिन को तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है।
तुलसी विवाह की पूजा विधि
अधिकांश हिंदू परिवारों में तुलसी का पौधा घर के आंगन में होता है। तुलसी विवाह के दिन, आंगन में मंडप बनाएं और भगवान शालिग्राम को स्नान कराकर गंगा जल छिड़कें। दुल्हन तुलसी को साड़ी और दूल्हे शालिग्राम को धोती पहनाएं, फिर दोनों का सूती धागे से गठबंधन करें। पूजा कर आरती उतारें। यह विवाह एक पारंपरिक हिंदू विवाह की तरह ही होता है। इस दिन महिलाएं उपवास रखती हैं, क्योंकि मान्यता है कि वृंदा की आत्मा रात में तुलसी में निवास करती है और सुबह वह चली जाती है।