धर्मराज्य का संरक्षण ही सच्चे अर्थों में धर्मसम्राट् के प्रति होगी सच्ची श्रद्धांजलि - स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद

स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती ने कहा कि धर्मसम्राट् ने अपने जीवन में धर्मराज्य का, रामराज्य का स्वप्न देखा था। उनके विचारों एवं धर्म के प्रति दृढ निष्ठा व समर्पण को देखते हुए समाज ने उनको धर्मसम्राट् की उपाधि प्रदान की परन्तु जब तक हम उनके धर्मराज्य के, रामराज्य के स्वप्न को पूरा करने हेतु अपने जीवन को आगे नहीं बढ़ाएंगे तब तक अन्य सभी कार्य केवल स्मरण मात्र बना रह जाएगा।

धर्मराज्य का संरक्षण ही सच्चे अर्थों में धर्मसम्राट् के प्रति होगी सच्ची श्रद्धांजलि - स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद

वाराणसी/भदैनी मिरर। केदारघाट स्थित श्रीविद्यामठ में शुक्रवार को धर्मसम्राट् स्वामी करपात्री जी महाराज के आराधना महोत्सव का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ दीप प्रज्वलन से हुआ। आचार्य पं भूपेन्द्र मिश्र के आचार्यत्व में 16 ब्राह्मणों ने षोडशोपचार पूजन किया। इसके बाद हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे, हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे महामन्त्र का संकीर्तन 10 पण्डितों द्वारा किया गया


इस अवसर पर अपने उद्गार व्यक्त करते हुए स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती ने कहा कि धर्मसम्राट् ने अपने जीवन में धर्मराज्य का, रामराज्य का स्वप्न देखा था। उनके विचारों एवं धर्म के प्रति दृढ निष्ठा व समर्पण को देखते हुए समाज ने उनको धर्मसम्राट् की उपाधि प्रदान की परन्तु जब तक हम उनके धर्मराज्य के, रामराज्य के स्वप्न को पूरा करने हेतु अपने जीवन को आगे नहीं बढ़ाएंगे तब तक अन्य सभी कार्य केवल स्मरण मात्र बना रह जाएगा। धर्मराज्य का संरक्षण ही सच्चे अर्थों में धर्मसम्राट् के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। 

उन्होने आगे कहा कि धर्म पर आज चारों ओर से प्रहार हो रहा है। मन्दिर तोडे जा रहे हैं, गाय काटी जा रही है, गंगा पाटी जा रही है, गुरु परम्परा को एवं वर्णाश्रम को समाप्त करने का षड्यन्त्र हो रहा है। ऐसी विपरीत परिस्थितियों में हम सबको एकजुट होकर करपात्री जी महाराज के विचारों को आगे बढाने का प्रयास करना चाहिए। 

कार्यक्रम में दत्तात्रेय मठ के दिव्यस्वरूप ब्रह्मचारी, धर्मदत्त डिण्डीनाथ जी महाराज, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के न्यूरोलाजी विभाग के डा विजयनाथ मिश्र, भारत धर्म महामण्डल के डा श्रीप्रकाश पाण्डेय, काशी विदुषी परिषद् की डा सावित्री पाण्डेय ने अपने विचार व्यक्त किए। पं कृष्ण कुमार तिवारी ने कार्यक्रम का संचालन किया। धन्यवाद ज्ञापन ब्रह्मचारी मुकुन्दानन्द  ने किया।