काशी के पांडित्य परंपरा की टूटी एक और कड़ी, महामहोपाध्याय पंडित रेवा प्रसाद द्विवेदी का निधन
वाराणसी/भदैनी मिरर। काशी के महान विद्वान महामहोपाध्याय पंडित रेवा प्रसाद द्विवेदी का बीती रात निधन हो गया। 90 वर्ष की उम्र में पं रेवा प्रसाद ने महामनापुरी स्थित अपने आवास पर अंतिम सांस ली। उनके निधन की सूचना से काशी के विद्वानों में शोक की लहर है। काशी के विद्वानों का कहना है कि पंडित द्विवेदी के निधन से पांडित्य परंपरा का एक कड़ी टूट गई। शनिवार को हरिश्चंद्र घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया। उनके छोटे पुत्र प्रो सदा शिव द्विवेदी ने मुखाग्नि दी।
विद्वतजनों ने बताया कि रेवा प्रसाद द्विवेदी साहित्य शास्त्र के मूर्धन्य विद्वान थे। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के पूर्व संकाय प्रमुख रहे। साहित्य शास्त्र के साहित्य विभाग में विभागाध्यक्ष रहे। उन्होंने अनेकों ग्रंथों की रचना की है। इसमें तीन महाकाव्य अद्भुत हैं। शताब्दी का सबसे बड़ा महाकाव्य स्वातंत्र्यसंभव जो 103 सर्ग का है। आपने दो नाटक लिखे थे। 20 महाकाव्य लिखे थे। उन्हें सबसे युवा साहित्यकार का राष्ट्रपति पुरस्कार 1979 में मिला था। उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान की ओर से विश्व भारती सम्मान से सम्मानित हो चुके हैं। राष्ट्र की तमाम संस्थाओं ने अनेक पुरस्कारों से पुरस्कृत किया था। पंडित द्विवेदी को आधुनिक महाकवि कालिदास की उपाधि से अलंकृत किया गया था। काशी विद्वत परिषद को उन्होंने बौद्धिक ऊंचाई दी।
प्रो. रेवा प्रसाद द्विवेदी के दो पुत्र और तीन पुत्रियां हैं।हरिश्चंद्र घाट पर काशी के विद्वानों की उपस्थिति रही। इस दौरान प्रो. भगवत शरण शुक्ल, प्रो विजय शंकर शुक्ल, प्रो रामनारायण द्विवेदी सहित अनेकों विद्वान रहें।