अजन्मी बेटियों के मोक्ष के लिए अनोखा श्राद्ध कर्म, भ्रूण हत्या को रोकने के लिए लोगों को किया जागरूक
दशाश्वमेध घाट पर एक अनोखे श्राद्ध कर्म का आयोजन किया गया, जिसमें समाज को भ्रूण हत्या के खिलाफ जागरूक करने के साथ अजन्मी बेटियों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की गई.
वाराणसी, भदैनी मिरर। दशाश्वमेध घाट पर एक अनोखे श्राद्ध कर्म का आयोजन किया गया, जिसमें समाज को भ्रूण हत्या के खिलाफ जागरूक करने के साथ अजन्मी बेटियों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की गई.‘आगमन’ नामक सामाजिक संस्था ने अपने 11वें वार्षिक आयोजन में वैदिक परंपरा के अनुसार उन बेटियों का श्राद्ध कर्म संपन्न किया, जिनकी हत्या गर्भ में कर दी गई थी. संस्था का उद्देश्य है कि इन बेटियों को जीने का अधिकार तो नहीं मिल सका, लेकिन उन्हें मोक्ष ज़रूर मिलना चाहिए.
इस आयोजन के दौरान 18,000 पिंडों का निर्माण किया गया और वैदिक मंत्रोच्चार के साथ बेटियों के मोक्ष की कामना की गई. पांच वेदाचार्यों की उपस्थिति में संस्था के संस्थापक सचिव डॉ. संतोष ओझा ने जल तर्पण और पिंडदान की विधि पूरी की. अब तक डॉ. ओझा ने एक लाख अजन्मी बेटियों का श्राद्ध कर्म करवाया है, जिन्हें उनके माता-पिता ने जन्म लेने से पहले ही गर्भ में मार दिया था.
यह अनुष्ठान पितृ पक्ष की मातृ नवमी के अवसर पर संपन्न हुआ, जहां समाज के विभिन्न वर्गों के लोग मौजूद रहे और मृतक बेटियों को पुष्पांजलि अर्पित की। इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य समाज में फैली भ्रूण हत्या की प्रथा को समाप्त करना और उन आत्माओं की शांति के लिए प्रार्थना करना था जिन्हें कभी जन्म लेने का मौका नहीं मिला.
डॉ. संतोष ओझा का कहना है कि गर्भपात को आमतौर पर एक साधारण ऑपरेशन माना जाता है, लेकिन भ्रूण में प्राण-वायु के संचार के बाद इसे करना जीव हत्या के समान है. धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, किसी भी जीव की अकाल मृत्यु के बाद उसकी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म आवश्यक होता है। श्राद्ध के इस अनुष्ठान से मृत आत्माओं को शांति मिलती है और उनके परिजन अनचाही परेशानियों से मुक्त होते हैं.
इस कार्यक्रम का नेतृत्व आचार्य दिनेश शंकर दुबे ने किया, जिनके साथ कई अन्य विद्वान और कर्मकांड विशेषज्ञ मौजूद थे.