शुरु हुआ काशी में रंगोत्सव की परंपरा, गीत-गवनई से गूंज उठा महंत आवास...
वाराणसी,भदैनी मिरर। ‘बनली भवानी दुल्हिनिया के बिदा होके जइहैं ससुरार...’, ‘शिव दुलहा बन अइहैं, गौरा के लिया जइहैं...’, ‘मंगल बेला में आए महादेव बन दुलहा...’ और ‘जा के ससुरे सखी न भुलइहा...’ आदि पारंपरिक मंगल गीतों से विश्वनाथ मंदिर के महंत का आवास गूंज उठा। मौका था गौरा के गावना से पूर्व किए जाने वाले लोकाचार का।
टेढ़ीनीम स्थित नवीन महंत आवास पर रविवार को सायंकाल पं. सुशील त्रिपाठी के आचार्यत्व में अंकशास्त्री पं.वाचस्पति तिवारी द्वारा माता गौरा की प्रतिमा विशेष षोडशोपचार पुजन के बाद संजीव रत्न मिश्र ने श्रृंगार एवं आरती किया। आरती भोग के बाद गवनहरियों और परिवार की महिलाओं ने मिलकर मंगल गीत गाए। माता गौरा की रजत प्रतिमा के समक्ष दीप जला कर ढोलक की थाप और मंजीरे की खनक के बीच महिलाओं ने चुमावन की रस्म भी अदा की। ‘साठी क चाउर चुमीय चुमीय..’,‘मनै मन गौरा जलाए जब चाउर चुमाए...’,‘गौरा के लागे ना नजरिया कजरवा लगाय द ना...’ जैसे पारंपरिक गीतों के गायन का क्रम रात्रि नौ बजे तक चला। इसके बाद सुहागिनों की अंचरा भराई की गई।
महंत परिवार की महिलाओं ने गवनहरियों के आंचल में अक्षत, गुड़, हल्दी, खड़ी सुपाड़ी और दक्षिणा डाल कर उनकी विदाई की। इस क्रम में 22 मार्च को सायं काल तेल हल्दी की रस्म निभाई जाएगी। गौरा का गवना कराने के लिए रंगभरी एकादशी की तिथि से एक दिन पूर्व 23 मार्च को बाबा का ससुराल आगमन होगा।