15 तस्वीरों में काशी की देव दीपावली: गंगा के दोनों घाटों पर टिमटिमाएं दीये, लोगों के लिए अद्भुत थी आतिशबाजी...
Kashi's Dev Deepawali in 15 pictures,The twinkling lamps on both the ghats of the Ganges. Fireworks were wonderful for the people. 15 तस्वीरों में काशी की देव दीपावली, गंगा के दोनों घाटों पर टिमटिमाएं दीये, लोगों के लिए अद्भुत थी आतिशबाजी.
वाराणसी, भदैनी मिरर। सात वार नौ त्यौहारों के लिए प्रचलित देवाधिदेव की नगरी काशी में विश्वप्रसिद्ध देव दीपावली हिंदू पंचांग के अनुसार दीपावली के 15 वें दिन यानी कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि पर शुक्रवार को काशी में धूमधाम से मनाई गई। सभी 84 घाटों को दीयों की लड़ियों और फूलों से दुल्हन की तरह सजाया गया था। ऐसा लग रहा था मानो तारे आसमान से धरती पर उतर आए हों। साथ ही , कुंड, गलियां और चौबारे भी दीपों से रौशन हो उठे। कोरोना कॉल के करीब 2 साल बाद यह नजारा देखने को मिला।
मां गंगा का हुआ महाश्रृंगार
मां गंगा का 151 लीटर दूध से अभिषेक कर असंख्य दीप दान किया गया। वहीं घाट पर 11 हजार दीप जलाए गए और विद्युत झालर व फूलों से भव्य सजावट की गई थी। साथ ही 108 किलो अष्ट धातु की मां गंगा की चल प्रतिमा का 108 किलो फूल से महाश्रृंगार किया गया था।
देवलोक का हुआ आभास
शिव की नगरी में जगमगाते दीप देवलोक का आभास करा रहे थे। सभी घाट, कुंड, गलियां, चौबारे और घर की चौखट दीयों की रौशनी से जगमग हो उठे थे। अस्सी से राजघाट तक 84 घाटों के बीच 22 से अधिक जगहों पर गंगा आरती के साथ 15 लाख दीप प्रज्ज्वलित करने के साथ ही चेतसिंह घाट, राजघाट पर लेजर शो दिखाया गया। जिलाधिकारी कौशलराज शर्मा ने कहा कि वाराणसी में देव दीपावली पर की गई अस्सी घाट के सामने आतिशबाजी ग्रीन फायर वर्क्स थे जो विशेष धुआं रहित पटाखे थे। इसमें हानिकारक केमिकल और धुआं पैदा करने वाले केमिकल नहीं थे और इनसे धुआं या वायु प्रदूषण नहीं होता है। यह कोर्ट के आदेश और शासनादेश के पूरी तरह अनुरूप थे।
यह है मान्यता
मान्यता है कि इस दिन देवता काशी की पवित्र भूमि पर उतरते हैं और दिवाली मनाते हैं। इस दिन देवता स्वर्ग लोक से उतरकर दीपदान करने पृथ्वी पर आते हैं, इसलिए इस दिन को देवताओं की दीपावली के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व पूरे विश्व मे काशी में ही मनाया जाता है। इस दिन काशी की घाटों पर अलग ही नजारा देखने को मिलता है।
इसलिए मनाई जाती है देव दीपावली
एक बार त्रिपुरासुर राक्षस ने अपने आतंक से मनुष्यों सहित देवी-देवताओं और ऋषि मुनियों सभी को त्रस्त कर दिया था, उसके त्रास के कारण हर कोई त्राहि त्राहि कर रहा था। तब सभी देव गणों ने भगवान शिव से उस राक्षस का अंत करने हेतु निवेदन किया। जिसके बाद भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध कर दिया। इसी खुशी में सभी इससे देवता अत्यंत प्रसन्न हुए और शिव जी का आभार व्यक्त करने के उनकी नगरी काशी में पधारे। देवताओं ने काशी में अनेकों दीए जलाकर खुशियां मनाई थीं। यह कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि थी। यही कारण है कि हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा पर आज भी काशी में दिवाली मनाई जाती है।
शहीद सैनिकों के परिजनों को दी गई सहायता राशि
शहीद सैनिकों को भागीरथी शौर्य सम्मान और परिजनों को 51-51 हजार रुपये की सहायता दी गई। देव दीपावली के मुख्य अतिथि गंगा टास्क फोर्स के लेफ्टिनेंट जनरल राना और विशिष्ट अतिथि अनुराधा पौडवाल ने 21 ब्राह्मणों द्वारा भगवती मां गंगा का वैदिक रीति से पूजन किया। उसके बाद शहीदों के परिजनों को सम्मानित किया गया।