चतुर्वेद सम्मेलन में विद्वानों ने रखे विचार, बोले भारतीय संस्कृति के मूलधार हैं वेद...

In the Chaturveda conference the scholars expressed their views said that the Vedas are the basis of Indian cultureचतुर्वेद सम्मेलन में विद्वानों ने रखे विचार, बोले भारतीय संस्कृति के मूलधार हैं वेद...

चतुर्वेद सम्मेलन में विद्वानों ने रखे विचार, बोले भारतीय संस्कृति के मूलधार हैं वेद...

वाराणसी,भदैनी मिरर। संकुलधारा पोखरा स्थित द्वारिकाधीश मंदिर में कोरोना महामारी के शमन के लिए चल रहे 51 दिवसीय लक्षचण्डी महायज्ञ के पन्द्रहवें दिन बुधवार को चतुर्वेद सम्मेलन का आयोजन हुआ। विद्वानों ने वेद पर व्याख्यान दिया।

स्वामी प्रखर जी महाराज ने कहा कि वेद मानव जीवन को सुखपूर्वक व्यतीत करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण साधन है। वेद समस्त सत्य विद्याओं का ग्रंथ या क्षेत्र के लोगों के लिए सीमित नहीं है। वेद केवल पूजा पाठ के लिए ही नही बल्कि इसका ज्ञान सूर्य के प्रकाश के समान समस्त सृष्टि के पोषण एवं कल्याण के लिए है। स्वामीजी ने कहा कि वेद भारतीय संस्कृति के मूलाधार हैं। जो ज्ञान सृष्टि के आदिकाल में दिया जाता है वही ज्ञान ईश्वरीय ज्ञान कहलाता है। ज्ञान की दृष्टि से वेद एक ही है किंतु विषय की दृष्टि से चार विभाग किए गए हैं। ऋग्वेद ज्ञान का भंडार, यजुर्वेद कर्म का द्योतक, सामवेद संगीत विद्या का धनी तथा अथर्ववेद विज्ञान का पितामह है।

जिस प्रकार कोई उत्पादक किसी वस्तु का उत्पादन करता है तो उस वस्तु पर उसके प्रयोग करने की विधि भी लिख देता है ठीक उसी प्रकार जब परमात्मा ने मनुष्यों को वेद ज्ञान दिया तो उसके साथ-साथ वेद रूपी, संविधान भी दिया। जिसके माध्यम से हमें यह ज्ञात हो सके कि इस दुनिया में कैसे रहना है? कैसा हमारा खान-पान हो, कैसा आचार-विचार हो, कैसी उपासना पद्धति हो? इन सब बातों के लिए यह वेद ज्ञान दिया, क्योंकि वेद जीवन ग्रंथ हैं। यह हमें जीवन जीने की कला सिखाता है। वेद संपूर्ण प्राणिमात्र के कल्याण के लिए हैं। की सत्ता अनंतकाल तक रहने वाली है क्योंकि यह ग्रंथ किसी व्यक्ति विशेष की कल्पना पर आधारित नहीं है। वेदों में शुद्ध ज्ञान है जिससे व्यक्ति सांसारिक बंधनों से मुक्त रहने का मार्ग ढूंढ़ लेता है। इन्ही बातों को व वेदों में निहित ज्ञान को सामान्य जनमानस तक पहुंचाने के उद्देश्य से आज इस सम्मेलन का आयोजन किया गया है। 

इनके साथ ही मुख्य वक्ता कृष्णयजुर्वेद तैत्तरीय शाखा के पं विश्वेश्वर शास्त्री द्रविड़, शुक्लयजुर्वेद माध्यन्दिनी शाखा के डॉ सुनील कात्यायन, डॉ विकास दीक्षित, नारायण प्रसाद भट्टाचार्य, प्रो. हरिश्वर दीक्षित, प्रो. पतंजलि मिश्र, सामवेद रणायनी शाखा के डॉ विजय कुमार शर्मा, आदि विद्वानों ने अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का संचालन डॉ ज्ञानेंद्र सापकोटा ने किया, स्वागत भाषण डॉ सुनील मिश्रा ने किया।