पेश की मिसाल: विश्वनाथ मंदिर प्रशासन और मस्जिद कमेटी ने की जमीन की अदला-बदली...
वाराणसी/भदैनी मिरर। काशी विश्वनाथ मंदिर के पास स्थित ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर जहां अदालत में याचिकाएं अब तक लंबित हैं। वहीं दूसरी ओर मंदिर और मस्जिद कमेटी ने गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल पेश करते हुए दोनों ने कमेटियों ने मंदिर-मस्जिद के लिए जमीन की अदला-बदली कर ली है। मस्जिद की ओर से काशी विश्वनाथ धाम के लिए उससे सटी हुई 1000 स्क्वायर फीट जमीन दी गई है। वहीं, मंदिर प्रशासन ने भी इतनी ही जमीन बांसफाटक के पास की मस्जिद को दी है।
दोनों मंदिर मस्जिद में आने जाने वालों को कोई परेशानी न हो इसके लिए ज्ञानवापी मस्जिद से संबंधित वक्फ बोर्ड की जमीन पर कंट्रोल रूम भी बना था। काशी विश्वनाथ धाम के नक्शे के अनुसार मस्जिद द्वारा दी गई जमीन पर सुरक्षा के दृष्टिकोण से वॉच टावर बनाया जाना है। जिसके कारण मंदिर को जमीन की जरूरत पड़ी। जिसके बाद मस्जिद कमेटी से बात करने पर मुस्लिम समाज के लोगों ने एक कदम आगे बढ़ाते हुए वक्फ बोर्ड की जमीन मंदिर को देने के लिए सहमति जताई।
जिसके बदले में मंदिर की ओर से कहा गया कि हम उतनी ही जमीन बांसफाटक के पास दे देंगे। मुस्लिम पक्ष की सहमति मिलने के बाद मंदिर की तरफ से बने प्रस्ताव को विशिष्ट क्षेत्र विकास परिषद में रखा गया। परिषद की मुहर लगते ही दोनों पक्ष ने एक-दूसरे को जमीन हस्तांतरित कर दी। जिसके लिए प्रशासन की ओर से इसके लिए विधिक प्रक्रिया पूरी कर ली गई है।
1991 में दाखिल हुआ था मुकदमा
ज्ञानवापी में नए मंदिर के निर्माण और हिंदुओं को पूजापाठ के अधिकार देने को लेकर वर्ष 1991 में मुकदमा दायर किया गया था। इस मामले में निचली अदालत और सत्र न्यायालय के आदेश के खिलाफ वर्ष 1997 में हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। हाईकोर्ट से कई वर्षों से स्टे होने के कारण मुकदमा विचाराधीन रहा।
इसके बाद वर्ष 2019 में 10 दिसंबर को सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट की अदालत में प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर नाथ की ओर से वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी ने दायर किया था। इसमें उन्होंने ज्ञानवापी परिसर का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग से रडार तकनीक से सर्वेक्षण कराने की अपील की थी।
इस मामले में अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी और सुन्नी सेंट्रल वफ्फ बोर्ड प्रतिवादी हैं। अदालत ने पुरातात्विक सर्वेक्षण के आदेश दिया तो दोनों प्रतिवादियों ने जिला जज की अदालत में आपत्ति जताते हुए रिवीजन याचिका दाखिल कर दी। प्रतिवादियों का कहना है कि जिस अदालत ने पुरातात्विक सर्वेक्षण का आदेश दिया है, यह प्रकरण उसके क्षेत्राधिकार से बाहर का है।