नृत्यांजलि अर्पित करेंगी नगर वधुएं: बाबा महाश्मशान का होगा 3 दिवसीय श्रृंगार, जाने क्या है परंपरा...

City brides will offer Nritanjali 3 days makeup of Baba Mahashamshan know what is the traditionनृत्यांजलि अर्पित करेंगी नगर वधुएं: बाबा महाश्मशान का होगा 3 दिवसीय श्रृंगार, जाने क्या है परंपरा...

नृत्यांजलि अर्पित करेंगी नगर वधुएं:  बाबा महाश्मशान का होगा 3 दिवसीय श्रृंगार, जाने क्या है परंपरा...
महाश्मशान के दरबार में नृत्य करती नगर बधुएं। (फ़ाइल फोटो)

वाराणसी,भदैनी मिरर। महाश्मशान नाथ सेवा समिति की ओर से महा श्मशान घाट पर बाबा मशाननाथ के आयोजित 3 दिवसीय श्रृंगार के अवसर पर नगर वधुओं द्वारा नित्यांजली अर्पित की जाएगी। इस बात की जानकारी देते हुए समिति के अध्यक्ष चेनु प्रसाद गुप्ता ने बताया कि चैत्र नवरात्र के पंचमी तिथि यानी कि 06 अप्रैल से बाबा मशाननाथ का तीन दिवसीय वार्षिक श्रृंगार शुरू होगा। पहले दिन बाबा का वैदिक परम्परा से रुद्राभिषेक व भव्य पूजन होगा। 07 अपैल को भोग आरती के बाद भंडारा व सायंकाल भजन कीर्तन होगा। आखिरी दिन 08 अप्रैल को सायंकाल 06 बजे से बाबा का तांत्रोक्त विधि से पूजन पंचमकार का भोग व नगर वधुओं द्वारा नित्यांजली रात्रि पर्यन्त होगा।

पूरे विश्व में सिर्फ काशी में दिखता है ऐसा नजारा 

शायद पूरे विश्व मे ऐसा आश्चर्य जनक देखने को मिलता होगा कि किसी धार्मिंक मन्दिर श्मशान स्थल पर नगर वधुएं नृत्य करती दिखती होंगी। एक तरफ लगातार चिताएं जलती रहती है दूसरी तरफ रंगारंग कार्यक्रम चलता है। मंदिर के व्यवस्थापक गुलशन कपूर ने बताया कि यह परम्परा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है। उन्होंने बताया कि, काशी के महाश्मशान घाट पर यह अनूठा कार्यक्रम शुरू होने इसके पीछे एक बेहद पुरानी परंपरा है। मान्यताओं के मुताबिक आज से सैकड़ों साल पहले राजा मान सिंह द्वारा बनाए गए बाबा महाश्मशान नाथ के दरबार में कार्यक्रम पेश करने के लिए उस समय के जाने-माने नर्तकियों और कलाकारों को बुलाया गया था। चूंकि ये मंदिर श्मशानघाट के बीचों बीच मौजूद था, लिहाजा तब के चोटी के तमाम कलाकारों ने यहां आकर अपने कला का जौहर दिखाने से इनकार कर दिया था।लेकिन राजा ने इस कार्यक्रम का ऐलान पूरे शहर में करवा दिया था, लिहाज़ा वो अपनी बात से पीछे नहीं हट सकते थे। मगर बात यहीं रुकी पड़ी थी कि श्मशान के बीच डांस करने आखिर आए तो आए कौन यह संदेश उस जमाने में धीरे-धीरे पूरे नगर में फैलते हुए काशी के नगर वधुओं तक भी जा पहुंची। तब नगर वधुओं ने डरते-डरते अपना यह संदेश राजा मानसिंह तक भेजवाया। यह मौका अगर उन्हें मिलता हैं तो काशी की सभी नगर वधूएं अपने आराध्य संगीत के जनक नटराज महाश्मसानेश्वर को अपनी भावाजंली प्रस्तुत कर सकती है। यह संदेश पाकर राजा मानसिंह काफी प्रसन्न हुए और ससम्मान नगर वधुओं को आमंत्रित किया। तब से यह परम्परा चल निकली।


इसलिए आती हैं नगर वधुएं

ऐसा कहा जाता है की नगर वधुओं की यह मान्यता है की  अगर वह इस परम्परा को निरन्तर बढ़ाती हैं, तो उनके इस नरकिय जीवन से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होगा। इसी मान्यता को मानते हुए वह इस कार्यक्रम में हिस्सा लेती हैं और आज सैकड़ों वर्ष बितने के बाद भी यह परम्परा जिवित है और बिना बुलाये यहां नगर वधुएं कहीं भी रहे चैत्र नवरात्रि के सप्तमी को यह काशी के मणिकर्णिका धाम स्वयं आ जाती है।