बाबा के द्वारे पहुना पधारे: मंगलध्वनि के बीच काशीपुराधिपति का चढ़ा तिलक, निभाई गई सैकड़ों वर्ष पुरानी परंपरा...
माघ शुक्ल पंचमी यानी वसंत पंचमी पर काशीपुराधिपति बाबा विश्वनाथ का काशी तिलकोत्सव मना रही है. अपने आराध्य के तिलक में पहुना बनने के लिए दोपहर बाद से ही श्रद्धालुओं का जमावड़ा टेढ़ीनीम स्थित महंत आवास पर लगने लगा था.
वाराणसी,भदैनी मिरर। माघ शुक्ल पंचमी यानी वसंत पंचमी पर काशीपुराधिपति बाबा विश्वनाथ का काशी तिलकोत्सव मना रही है. अपने आराध्य के तिलक में पहुना बनने के लिए दोपहर बाद से ही श्रद्धालुओं का जमावड़ा टेढ़ीनीम स्थित महंत आवास पर लगने लगा था. सैकड़ों वर्ष पुराने इस परंपरा को गुरुवार को काशीवासी निभा रहे है.
हर-हर महादेव के जयघोष के बीच बाबा की रजत पंचबदन प्रतिमा को पूजन-अभिषेक के लिए रजत सिंहासन पर प्रतिष्ठित किया गया. जिसके बाद बाबा का श्रृंगार और भोग के बाद खादी और तिरंगे से पहले दूल्हे के परिधान को धारण कराया गया. जिसके बाद काशी के उनके गणों ने पहुना बनकर शहनाई की मंगल ध्वनि और डमरुओं के निनाद के बीच तिलकोत्सव की बधइया यात्रा निकाली गई. काशी के प्रतिष्ठित नागरिकों का समूह तिलक की सामग्री लेकर बसंत पंचमी की तिथि पर टेढ़ीनीम स्थित विश्वनाथ मंदिर के महंत डा. कुलपति तिवारी के आवास पर पहुंचा. इस समूह में नगर के साहित्य, कला, संगीत, उद्योग और व्यापार क्षेत्र से जुड़े कई गणमान्य व्यक्ति शामिल रहे.
महंत डा. कुलपति तिवारी ने कहा कि महादेव के तिलक की कथा राजा दक्षप्रजापति से जुड़ी है. शिवमहापुराण, ब्रह्मवैवर्तपुराण और स्कंदपुराण में अलग-अलग कथा संदर्भों में महादेव के तिलकोत्सव का प्रसंग वर्णित है. दक्षप्रजापति उस समय के कई मित्र राज-महाराजाओं के साथ कैलाश पर जाकर भगवान शिव का तिलक किया था. उसी आधार पर लोक में इस परंपरा का निर्वाह किया जाता है. उन्होंने बताया की तिलकोत्सव के पूर्व बाबा का पारंपरिक श्रृंगार किया गया.पांच ब्राह्मणों द्वारा रुद्राभिषेक संपादित हुआ.