जानें रावण के तीन जन्मों से जुड़ी रोचक कहानी, दशानन के वध को भगवान विष्णु ने लिया था 3 बार अवतार
बहुत कम लोग जानते हैं कि रावण कौन था और उसके पूर्व जन्मों की कहानी क्या है। आइए, आज हम आपको रावण के तीन पूर्व जन्मों की दिलचस्प कहानी बताते हैं।
देशभर में दशहरा का पर्व बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है, जिसे विजय दशमी भी कहते हैं। यह त्योहार अच्छाई की बुराई पर जीत का प्रतीक है और इस साल यह 12 अक्टूबर को मनाया जा रहा है। माना जाता है कि इसी दिन भगवान श्रीराम ने लंकापति रावण का वध किया था और तभी से यह पर्व धर्म की विजय के रूप में मनाया जाने लगा। रावण, जो शिव का महान भक्त और एक शक्तिशाली विद्वान था, का जीवन कई रहस्यों से भरा है। हालांकि, बहुत कम लोग जानते हैं कि रावण कौन था और उसके पूर्व जन्मों की कहानी क्या है। आइए, आज हम आपको रावण के तीन पूर्व जन्मों की दिलचस्प कहानी बताते हैं।
कौन था रावण
रावण ऋषि विश्रवा और उनकी पत्नी कैकसी का सबसे बड़ा पुत्र था। विश्रवा के दो विवाह थे, जिनमें से पहली पत्नी कैकसी से रावण, कुंभकर्ण और विभीषण जैसे राक्षस उत्पन्न हुए, जबकि दूसरी पत्नी वरवर्णिनी से यक्षों के स्वामी कुबेर का जन्म हुआ। रावण लंका का शक्तिशाली राजा और अद्वितीय विद्वान था। उसने कठोर तपस्या से कई मायावी शक्तियों को हासिल किया था और वह 64 कलाओं में निपुण था।
रावण के तीन पूर्व जन्मों की कथा
सनकादि मुनि का श्राप
सतयुग में भगवान विष्णु के जय-विजय नाम के दो द्वारपाल हुआ करते थे, जो वैकुंठ के द्वार पर खड़े रहते थे। एक बार सनकादि मुनि भगवान विष्णु के दर्शन के लिए पहुंचे, लेकिन जय-विजय ने उन्हें द्वार पर रोक दिया। इससे क्रोधित होकर सनकादि मुनियों ने उन्हें राक्षस योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया। बाद में भगवान विष्णु ने मुनियों से उन्हें क्षमा करने की विनती की, लेकिन मुनियों ने कहा कि जय-विजय को तीन जन्मों तक राक्षस योनि में रहना होगा और हर जन्म में भगवान विष्णु ही उनका अंत करेंगे।
1. पहले जन्म में हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु
पहले जन्म में जय-विजय हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु नाम के राक्षस बने। हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को समुद्र में छिपा दिया, तब भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर उसका वध किया और पृथ्वी को पुनः स्थापित किया। अपने भाई की मृत्यु के बाद हिरण्यकशिपु को गहरा क्रोध आया और उसने ब्रह्मा से अमरता का वरदान मांगा। लेकिन भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर हिरण्यकशिपु का भी अंत किया।
2. दूसरे जन्म में रावण और कुंभकर्ण
दूसरे जन्म में जय-विजय राक्षसराज रावण और कुंभकर्ण बने। इस जन्म में रावण लंका का राजा था, और उसका पराक्रम इतना महान था कि देवता भी उससे डरते थे। कुंभकर्ण इतना विशाल था कि वह हजारों लोगों का भोजन एक साथ खा जाता था। भगवान विष्णु ने इस जन्म में श्रीराम के रूप में अवतार लिया और अंततः रावण और कुंभकर्ण दोनों का वध किया।
3. तीसरे जन्म में शिशुपाल और दंतवक्र
तीसरे और अंतिम जन्म में जय-विजय शिशुपाल और दंतवक्र बने। ये दोनों भगवान श्रीकृष्ण की बुआ के पुत्र थे, लेकिन फिर भी उनसे द्वेष रखते थे। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के दौरान, श्रीकृष्ण ने शिशुपाल का वध कर दिया, जबकि दंतवक्र वहां से भाग गया। बाद में श्रीकृष्ण ने दंतवक्र का भी अंत किया और इस प्रकार जय-विजय के तीन जन्मों का श्राप समाप्त हुआ।