स्वतंत्रता संग्राम की वह वीरांगनाएं जिनके आगे अंग्रेजों ने टेके घुटने, ब्रिटिश हुकूमत को नाको चने चबवा दिए

स्वतंत्रता दिवस की इस 78वीं वर्षगांठ (78th Indian Independence Day 2024) के खास अवसर पर हम आपको उन महिलाओं के बारे में बताएंगे जिन्होंने अपनी ऐशोआराम की जिंदगी त्याग कर आजादी की जंग लड़ी थी और देश के लिए खुद को समर्पित कर दिया था.

स्वतंत्रता संग्राम की वह वीरांगनाएं जिनके आगे अंग्रेजों ने टेके घुटने, ब्रिटिश हुकूमत को नाको चने चबवा दिए

78th Indian Independence Day 2024 : हर साल 15 अगस्त के दिन भारत देश अपना राष्ट्रीय उत्सव मनाता है. करीब 200 साल तक अंग्रेजों की गुलामी करने के बाद भारत को 15 अगस्त, 1947 के दिन देश आजाद हुआ. स्वतंत्रता की इस लड़ाई में जहां कई वीर-सपूतों ने खून पसीना एक किया था, वहीं कई वीरांगनाओं ने ने भी अपनी जान की बाजी लगाकर एक अलग इतिहास रचा था और 200 साल से भी साल से भी ज्यादा तक भारत पर राज करने वाले ब्रिटिश शासकों को घुटनों पर ला दिया था. स्वतंत्रता दिवस की इस 78वीं वर्षगांठ (78th Indian Independence Day 2024) के खास अवसर पर हम आपको उन महिलाओं के बारे में बताएंगे जिन्होंने अपनी ऐशोआराम की जिंदगी त्याग कर आजादी की जंग लड़ी थी और देश के लिए खुद को समर्पित कर दिया था.


जानें उन वीरांगनाओं के बारे में


1. झांसी की रानी लक्ष्मीबाई


भारत में जब भी महिलाओं के सशक्तिकरण की बात होती है तो महान वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई का नाम जरूर लिया जाता है. यह देश की पहली महिला क्रांतिकारी थी। रानी लक्ष्मीबाई महाराष्ट्रीयन कराडे ब्राह्मण परिवार की थी। ऐसे में जहां लोग खाने को तरस रहे थे रानी लक्ष्मीबाई ने ऐशोआराम को त्याग अंग्रेजों को मात देने के लिए मैदान में उतर गई थी। देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम (1857) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली रानी लक्ष्मीबाई के अप्रतिम शौर्य से चकित अंग्रेजों ने भी उनकी प्रशंसा की थी और वह अपनी वीरता के किस्सों को लेकर किंवदंती बन चुकी हैं, ये एक क्रांतिकारी मां भी थी इन्होंने अपने बेटे की रक्षा के लिए अंग्रेजों से आखिरी सांस तक लड़ाई की थी. पीठ पर बच्चे को टांगे हाथ में तलवार लिए सैकड़ों अंग्रेज सैनिकों से लड़ने वाली ये पहली महिला थी.

2. सुचेता कृपलानी

सुचेता कृपलानी एक स्वतंत्रता सेनानी थी और उन्होंने विभाजन के दंगों के दौरान महात्मा गांधी के साथ रह कर काम किया था. इंडियन नेशनल कांग्रेस (Indian National congress) में शामिल होने के बाद उन्होंने राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाई थी. उन्हें भारतीय संविधान के निर्माण के लिए गठित संविधान सभा की ड्राफ्टिंग समिति के एक सदस्य के रूप में निर्वाचित किया गया था. उन्होंने भारतीय संविधान सभा में ‘वंदे मातरम’ भी गाया था. आजादी के बाद उन्हें उत्तर प्रदेश राज्य की मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया.


3. विजया लक्ष्मी पंडित


कुलीन परिवार से ताल्लुक रखने वाली विजया लक्ष्मी पंडित भी आजादी की लड़ाई में शामिल थीं. वह जवाहर लाल नेहरू की बहन थीं. सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें जेल में बंद किया गया था. भारत के राजनीतिक इतिहास में वह पहली महिला मंत्री थीं. वे संयुक्त राष्ट्र की पहली भारतीय महिला महिला अध्यक्ष थीं और स्वतंत्र भारत की पहली महिला राजदूत, जिन्होंने मॉस्को, लंदन और वाशिंगटन में भारत का प्रतिनिधित्व किया.

4. सावित्रीबाई फुले

इन्हें ‘सीक्रेट कांग्रेस रेडियो’के नाम से भी जाना जाता है. इसे शुरू करने वाली ऊषा मेहता ही थीं. भारत छोड़ो आंदोलन (1942) के दौरान कुछ महीनों तक कांग्रेस रेडियो काफी सक्रिय रहा था. इस रडियो के कारण ही उन्हें पुणे की येरवाड़ा जेल में रहना पड़ा. वे महात्मा गांधी की अनुयायी थीं.


5. सरोजिनी नायडू

भारतीय कोकिला के नाम से मशहूर सरोजिनी नायडू सिर्फ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ही नहीं, बल्कि बहुत अच्छी कवियत्री भी थीं. सरोजिनी नायडू ने खिलाफत आंदोलन की कमान संभाली और अंग्रेजों को भारत से निकालने में अहम योगदान दिया. इन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में अपना कैसर-ए-हिंद सम्मान लौटा दिया था.

6. दुर्गावती देवी


दुर्गावती देवी को दुर्गा भाभी के नाम से भी जाना जाता है. दुर्गावती देवी आजादी की हर आक्रमक योजना का हिस्सा बनी. खास बात ये है कि, उस समय जब हमारे पास संसाधन कम थे तब इन्होंने बम बनाना सीखा था. इन्हें आयरन लेडी भी कहा जाता था. दुर्गावती देवी आंदोलन में जाने वाली सभी लोगों का तिलक कर उनकी जीत की कामना करती थी.

7. कमला नेहरू

जवाहर लाल नेहरू की पत्नी कमला कम उम्र में ही दुल्हन बन गई थीं. लेकिन समय आने पर यही शांत स्वभाव की महिला लौह स्त्री साबित हुई, जो धरने-जुलूस में अंग्रेजों का सामना करती, भूख हड़ताल करती और जेल की पथरीली धरती पर सोती थी. इन्होंने असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन में उन्होंने बढ़-चढ़कर शिरकत की थी.

8. दुर्गा बाई देशमुख

दुर्गा बाई देशमुख महात्मा गांधी के विचारों से बेहद प्रभावित थीं. शायद यही कारण था कि उन्होंने महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया व भारत (India) की आजादी में एक वकील, सामाजिक कार्यकर्ता और एक राजनेता की सक्रिय भूमिका निभाई. वो लोकसभा की सदस्य होने के साथ-साथ योजना आयोग की भी सदस्य थी.