जब काशी के क्रांतिकारियों ने चोलापुर थाने पर बोला धावा, ब्रिटिश झंडा जलाकर फहराया था देश का तिरंगा

अंग्रेजी हुकूमत के दौर में आजादी के दीवानों ने एक बार बनारस के चोलापुर थाने पर भारत का तिरंगा झंडा फहराने के लिए थाने पर हमला किया था.

जब काशी के क्रांतिकारियों ने चोलापुर थाने पर बोला धावा, ब्रिटिश झंडा जलाकर फहराया था देश का तिरंगा

वाराणसी, भदैनी मिरर। आठ अगस्त 1942 को बंबई अधिवेशन में गांधीजी के नेतृत्व में ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ आंदोलन की नींव रखने के बाद अगले दिन 9 अगस्त को पूरे देश में क्रांति की ज्वाला भड़क उठी थी. यूपी के वाराणसी में क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी हुकूमत के ताबूत में कील ठोंक दी थी. 

अंग्रेजी हुकूमत के दौर में आजादी के दीवानों ने एक बार बनारस के चोलापुर थाने पर भारत का तिरंगा झंडा फहराने के लिए थाने पर हमला किया था. उस वक्त आमने-सामने हुई गोलीबारी में पांच युवा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शहीद हो गये और कई गिरफ्तार कर लिये गये. घटना 17 अगस्त 1942 की है. वर्तमान चोलापुर विकास खंड के चोलापुर थाना परिसर और उसके बाहर हुए उस संघर्ष की कहानी थाने से सटे वर्तमान प्रांगण में उन शहीदों की याद में बने स्मारक पर दर्ज है.

यहां के ग्रामीण बताते हैं कि वह नागपंचमी का दिन था. वर्तमान हरहुआ ब्लॉक के आयर गांव निवासी वीरबहादुर सिंह के नेतृत्व में आजादी के दीवानों ने चोलापुर थाने पर तिरंगा फहराने का निर्णय लिया. 17 अगस्त को वह जुलूस के रूप में थाने की ओर बढ़ चले. उनमें थाने पर झंडा फहराने को लेकर भारी जोश ठाठें मार रहा है. सभी में मानो एक होड़-सी लगी थी कि कौन यह काम कर दिखाएगा. जुलसू में शामिल लोग ‘भारतमाता की जय’, ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आदि के नारे लगाते हुए बढ़ रहे थे. इस बात की भनक लगने पर पुलिस उन क्रांतिकारियों के निबटने के लिए मोर्चा संभाल लिया.
 
जैसे-जैसे थाना और युवाओं के बीच की दूरी कम होती जा रही थी वैसे-वैसे क्रांतिकारियों के नारों की आवाज और भी बुलंद होती रही थी. थाने के सामने पहुंचने के बाद जुलूस में शामिल लोगों की नारेबारी का स्वर और भी तेज हो गया. सामने बंदूक, रिवॉल्वर और लाठियों से लैस सिपाहियों को देखकर उनका गुस्सा उबाल खाने लगा. हथियारबंद पुलिस की परवाह न करते हुए वह थाने में घुसने की कोशिश करने लगे. सामने खड़ी पुलिस को अंदाजा भी नहीं था कि आजादी के उन दीवानों पर किस तरह का जुनून सवार हैं.

दोनों पक्षों में से कोई भी पीछे हटने के लिए तैयार नहीं था, दबाव बढ़ता गया. एक ओर जुलूस थाने में घुसकर झंडा फहराने की जद्दोजहद में था तो दूसरी ओर पुलिस उन्हें रोकने की कोशिश कर रही थी. अंतत: अंग्रेजी हुकूमत के हथियारबंद सिपाहियों ने थानेदार के नेतृत्व में मोर्चा संभाला और चेतावनी दी. उसके बावजूद जुलूस ने सिपाहियों की परवाह नहीं की और कई लोग थाने में घुस ही गये. नियंत्रण हाथ से छूटता देखकर थानेदार के आदेश पर पुलिस ने फायरिंग और लाठीचार्ज शुरु कर दिया. उस बीच जुलूस में से पांच युवक भीड़ को चीरते हुए तिरंगा लेकर थाने की छत पर चढ़े और ब्रिटिश हुकूमत का झंडा जला दिया और तिरंगा फहराया.

इस पर हथियारबंद सिपाही उन युवाओं पर निशाना साधकर गोली चलाने लगे. फलस्वरूप फायरिंग की रेंज में आये पांचों युवक घायल होकर गिर पड़े. आनन-फानन में उन्हें अस्पताल ले जाने की भागदौड़ होने लगी. अस्पताल ले जाते वक्त रास्ते में ही पांचों देशभक्तों ने दम तोड़ दिया और शहीद हो गये. उन शहीदों में आयर के रामनरेश उपाध्याय ‘विद्यार्थी’, बेनीपुर के पंचम राम, शिवरामपुर के श्रीराम ‘बच्चू’ एवं चौथी नोनिया और सुलेमापुर के निरहु भर ने अपनी कुर्बानी दी. उधर, चोलापुर पुलिस ने जुलूस में शामिल कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तार क्रांतिकारियों को कठोर कारावास की सजा दी गयी. सन् 1972 में चोलापुर थाना के कुछ ही कदम पर उन देशभक्तों की याद में ‘शहीद स्मारक’ का निर्माण कराया गया.

1942 में चोलापुर थाने पर झंडा फहराने की घटना से अलग एक अन्य चर्चा भी है. कहते हैं कि 1945 के दौर में तत्कालीन ढेरही गांव के लालमन यादव चोलापुर थाने के सिपाहियों के लिए अक्सर मिट्टी की हंड़िया में दही, खोवा वगैरह लेकर जाते रहते थे. एकबार किसी ने गलत मुखबीरी कर दी कि लालमन चोलापुर थाने को उड़ाने के लिए हंड़िया में बम लेकर जा रहे हैं. इस पर ब्रिटिश पुलिस ने गोसाईंपुर के मोहांव में लालमन को घेरकर मार डाला. कहते हैं कि कालांतर में उन्हीं की याद में लालमन के गांव का नाम ‘लालमन कोट’ रखा गया.