गंगा ने पहना दीपों का चंद्रहार: 15 तस्वीरों में देखें देव दीपावली की भव्यता, मानों आसमान से धरा पर उतर आए हो सितारे...
हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की पूर्णिमा पर होने वाली देव दीपावली इस वर्ष चंद्र ग्रहण के नाते एक दिन पूर्व सोमवार को मनाया जा रहा है.
वाराणसी, भदैनी मिरर। हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की पूर्णिमा पर होने वाली देव दीपावली इस वर्ष चंद्र ग्रहण के नाते एक दिन पूर्व सोमवार को मनाया जा रहा है. अर्धचंद्राकार काशी के सभी 84 घाटों को दीयों की लड़ियों और फूलों से दुल्हन की तरह सजाया गया. गंगा पार रेती में जलाए गए दीप मानो ऐसे लग रहे थे की तारे आसमान से धरती पर उतर आए हों. साथ ही सरकारी भवन से लेकर स्टेशन, रोडवेज, कुंड, गलियां और चौबारे दीपों भी से रौशन हो उठे.
शाम तीन बजने के साथ ही सभी सड़कें घाट की ओर जुड़ गई. हर कोई देव दीपावली देखने के लिए परिवार संग घाट की ओर निकल पड़ा. देखते ही देखते चंद मिनटों में ही दशाश्वमेध घाट पर जनता का ऐसा हुजूम उमड़ा की जनता को अन्य घाटों पर जाने की प्रशासन को अपील करनी पड़ी. काशी की दिव्यता को देखने को हर कोई घाट पर बस चलता ही जा रहा था. किसी को भी यह परवाह न रही की गंगा का जलस्तर बढ़ा हुआ है. उधर, एनडीआरएफ और जल पुलिस लगातार लोगों को सतर्क रहने के लिए लाउड हेलर से अपील करती रही. छह बजते-बजते तो ऐसा हुआ की सभी घाट का कोना- कोना जनता से भर उठा.
श्री काशी विश्वनाथ कॉरिडोर और नमो घाट बनने के बाद यह पहली देव दीपावली थी. बाबा के दरबार को भी फूलों से सजाया गया और भव्य श्रृंगार भी हुआ. साथ ही काशी के अन्य देवालय भी रौशनी में डूबे रहे. घाटों पर दीपों के साथ सेल्फी लेने और अद्भुत छठा को कैमरे में कैद करने वालों का हुजूम था. जनता खुद एक दूसरे के सहारे आगे बढ़ती जा रही थी. चेतसिंह, शीतला घाट, श्री काशी विश्वनाथ के गंगद्वार के अलावा नमो और खिड़किया घाट पर लोगों ने जमकर फोटो खिंचवाया.
यह है मान्यता
मान्यता है कि इस दिन देवता काशी की पवित्र भूमि पर उतरते हैं और दिवाली मनाते हैं। इस दिन देवता स्वर्ग लोक से उतरकर दीपदान करने पृथ्वी पर आते हैं, इसलिए इस दिन को देवताओं की दीपावली के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व पूरे विश्व मे काशी में ही मनाया जाता है। इस दिन काशी की घाटों पर अलग ही नजारा देखने को मिलता है।
इसलिए मनाई जाती है देव दिवाली
एक बार त्रिपुरासुर राक्षस ने अपने आतंक से मनुष्यों सहित देवी-देवताओं और ऋषि मुनियों सभी को त्रस्त कर दिया था, उसके त्रास के कारण हर कोई त्राहि त्राहि कर रहा था। तब सभी देव गणों ने भगवान शिव से उस राक्षस का अंत करने हेतु निवेदन किया। जिसके बाद भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध कर दिया। इसी खुशी में सभी इससे देवता अत्यंत प्रसन्न हुए और शिव जी का आभार व्यक्त करने के उनकी नगरी काशी में पधारे। देवताओं ने काशी में अनेकों दीए जलाकर खुशियां मनाई थीं। यह कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि थी। यही कारण है कि हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा पर आज भी काशी में दिवाली मनाई जाती है।