विश्वप्रसिद्ध नागनथैया लीला कल: होगा द्वापर युग का एहसास, 5 मिनट की लीला देखने उमड़ते है लाखों श्रद्धालु...
पूरे देश में कृष्णलीला के दौरान नागनथैया लीला पर्दे पर होता है, मगर वाराणसी (Varanasi) के गोस्वामी तुलसीदास जी के कर्मभूमि तुलसीघाट पर इसे वास्तव में किया जाता है। यह परंपरा सैकड़ों वर्षों पुरानी है, जहाँ गंगा यमुना का रुप पकड़ती है, और घाटों पर उमड़े काशीवासी द्वापरयुग का एहसास करते है।
वाराणसी,भदैनी मिरर। धनतेरस, दीपावली और गोबर्धनपुजा के बाद 'सात वार, नौ त्यौहार' के फक्कड़ी जीवन को जीने वाली उत्सवधर्मी काशी अब "नागनथैया" को मनाने की तैयारी में है। रामलीला के विश्राम लेते ही मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास के कर्मस्थली तुलसीघाट पर कृष्णलीला प्रारंभ है। कल 7 नवंबर को काशी के इस लक्खे मेले को शामिल होने और भगवान कृष्ण के अनूठे लीले का साक्षी बनने के लिए भक्तों का सैलाब उमड़ आएगा। भोले की नगरी काशी को बस एक बहाना चाहिए भगवान की भक्ति करने और उत्सव मनाने का उसके बाद तो आयोजन ऐसे होते है कि पूरा विश्व मिलकर भी वह भव्यता नहीं ला सकता।
सोमवार को जैसे ही शाम ढलने को होगी, काशी के तुलसीघाट पर आयोजित होने वाले वर्षों पुराने परंपरा के तहत नागनथैया में लाखों लोगों का सैलाब उमड़ा होगा। अखाड़ा गोस्वामी तुलसीदास जी के महंत और नागनथैया लीला के आयोजक प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र की अगुवाई में जैसे ही राजा बनारस तुलसीघाट पहुंचेंगे, घाट पर द्वापर युग लौट आएगा। गंगा 'यमुना' का रुप लेंगी, काशीवासी वृजवाशी की भूमिका में होंगे तब वृजवासियों के कल्याण हेतु भोले की नगरी में कृष्ण लीला कर कालिया नाग को नथने के लिए यमुना में छलांग लगाएंगे। कुल 5 मिनट की लीला को देख रहे लाखों भक्त के 'हर-हर महादेव' और 'जय कन्हैया लाल की, मदन गोपाल की' के गगनचुम्बी जयघोष से गूंज उठेगी।
प्रशासन जुटा तैयारियों में
लक्खा मेले में शुमार नागनथैया मेले को लेकर तैयारियां शुरु हो गई है, पुलिस प्रशासन सुरक्षा के इंतजाम करने में जुट गया है। आयोजकों से वार्ता कर ड्यूटी लगाई गई है। दोपहर बाद किसी भी प्रकार के वाहन तुलसीघाट की ओर नहीं जा पाएंगे। गंगा के बढ़े जलस्तर को लेकर जल पुलिस और एनडीआरएफ के तैनाती की भी तैयारी है।