मैं जंग पर जा रहा हूं, ना लौटा तो ये अंगूठी मंगेतर तक पहुंचा देना...जानें कारगिल युद्ध में शहीद होने वाले जवान की शौर्य गाथा
वैसे तो 26 जुलाई 1999 में हुए युद्ध में देश के लिए जान की कुर्बानी देने वाले जवानों की फेहरिस्त लंबी है. इस युद्ध में अपने प्राण की बाजी लगाने वाला हर जवान देश का हीरो है, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे जवान की शौर्या गाथा बताएंगे, जो अपनी बचपन की दोस्त से सगाई करने के लिए घर जाने वाले थे, तभी युद्ध छिड़ गया, उन्हें मोर्चे पर कारगिल जाना पड़ा और इस युद्ध में विजय का तिरंगा लहाकर वो शहीद हो गए.
Kargil Vijay Diwas : आज 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस के 25 साल पूरे हो रहे हैं. ये दिन इतिहास के पन्नों में उन शहीदों के नाम दर्ज है, जिन्होंने देश की मिट्टी की सुरक्षा के लिए पाकिस्तानी सेना के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था और इस युद्ध में भारत की विजय गाथा लिखा डाली थी. वैसे तो 26 जुलाई 1999 में हुए युद्ध में देश के लिए जान की कुर्बानी देने वाले जवानों की फेहरिस्त लंबी है. इस युद्ध में अपने प्राण की बाजी लगाने वाला हर जवान देश का हीरो है, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे जवान की शौर्या गाथा बताएंगे, जो अपनी बचपन की दोस्त से सगाई करने के लिए घर जाने वाले थे, तभी युद्ध छिड़ गया, उन्हें मोर्चे पर कारगिल जाना पड़ा और इस युद्ध में विजय का तिरंगा लहाकर वो शहीद हो गए...
कारगिल की पॉइंट 4875 चोटी पर दुश्मन का कब्जा था, अपनी जमीन को वापस लाने की जिम्मेदारी थी 17वीं जाट रेजिमेंट की टीम की, जो भारतीय सेना की लंबे समय से सेवा करने वाली रेजिमेंटों में से एक है. तब इसकी कमान 24 साल के कैप्टन अनुज नैय्यर के पास थी. वे कुछ दिन पहले ही लेफ्टिनेंट से प्रमोट होकर कैप्टन बने थे. ऊंचाई पर बैठा दुश्मन जवानों पर सीधा हमला कर रहे थे. दुश्मन ऐसी पोजिशन पर थे कि आसानी से भारतीय जवानों को मार सकते थे. इस कारण फैसला किया गया कि रात के अंधेरे में दुश्मन से लोहा लिया जाएगा.
कदम-कदम पर मौत से सामना होना तय था, लेकिन कैप्टन नैय्यर ने दिन ढलते ही कैप्टन टीम के साथ चढ़ाई शुरू की. कड़ाके की सर्दी के बीच भूखे-प्यासे जवान आगे बढ़ रहे थे. सब ठीक चल रहा था, लेकिन उनपर शातिर दुश्मनों की नजर पड़ गई. अचानक फायरिंग होने लगी. कैप्टन अनुज की टीम ने भी जवाबी फायरिंग शुरू की. दुश्मन पूरी तैयारी से मोर्चा जमाए बैठा था. न सिर्फ उसके पास ज्यादा मैन पावर था, गोला-बारूद भी भरपूर था. छिपने की जगह थी नहीं, इसलिए एक के बाद एक अनुज की टीम के कई साथी शहीद होते गए.
कैप्टन अनुज भी जख्मी हुए, लेकिन वो पीछे नहीं हटे, वे आगे बढ़ते रहे. लगातार दुश्मन पर फायरिंग कर रहे थे. एक के बाद एक कैप्टन अनुज ने 9 पाकिस्तानियों को मार गिराया. पाकिस्तानी सेना के तीन बड़े बंकर बर्बाद कर दिए. रात तेजी से कटती जा रही थी. सुबह के करीब 5 बज चुके थे. उजाला हो चुका था. दुश्मन अब आसानी से हमारे जवानों को देख सकते थे. जब अनुज ने अपने आसपास देखा तो कई साथी शहीद पड़े हुए थे.
कैप्टन अनुज ने जैसे मानो कसम खा रखी थी कि आज ही मैं पॉइंट 4875 चोटी पर तिरंगा लहरा कर रहूंगा. अनुज ने तय किया कि आगे बढ़ना चाहिए. उनके साथी ने रोका कि अब उजाला हो गया है. हमें रात तक इंतजार करना चाहिए. अगर आगे बढ़े तो दुश्मनों की नजर हम पर पड़ेगी, लेकिन अनुज नहीं माने 24 साल का गर्म खून उबाल ले रहा था. उन्हें अपने पिता की बात याद थी कि जंग में पीठ मत दिखाना. सिर पर कफन बांधा और पाकिस्तान के चौथे बंकर के ऊपर टूट पड़े.
उन्होंने जैसे ही फायरिंग शुरू की, बम का एक गोला उनके ऊपर आकर गिरा और वे शहीद हो गए, लेकिन कैप्टन अनुज अपनी शहादत के साथ ही जीत की बुनियाद रख गए थे. कुछ ही घंटों बाद पॉइंट 4875 पर तिरंगा फहराने लगा. मरणोपरांत कैप्टन अनुज को महावीर चक्र सम्मान से नवाजा गया.
बताते हैं कि जब कैप्टन अनुज नैय्यर जंग पर जा रहे थे, तो उन्होंने अपने सीनियर को एक अंगूठी दी और कहा था कि ये अंगूठी उनकी होने वाली मंगेतर को दे दें. सीनियर ने कहा कि तुम खुद देना, जिसके जवाब में उन्होंने कहा कि मैं जंग पर जा रहा हूं वापस लौटूंगा या नहीं. लौट आया तो खुद दे दूंगा वरना आप इसे मेरे घर भेज देना और मेरा संदेश दे देना. दुर्भाग्यवश इस जंग से अनुज वापस नहीं लौट सके, लेकिन उनकी शहादत पूरे देश के लिए मिसाल हैं.