वक्फ-मस्जिद व इमामबाड़ा मौलाना मीर इमाम अली से उठा जुलूस...
पांचवीं मोहर्रम के कदीमी जुलूस में अंजुमन हैदरी ने किया नौहा-मातम, उठाया गया अलम इमाम हुसैन और उनके 71 साथियों को इराक के करबला शहर में तीन दिन का भूखा-प्यासा सन 61 हिजरी में शहीद किया गया था।
पांचवीं मोहर्रम के कदीमी जुलूस में अंजुमन हैदरी ने किया नौहा-मातम, उठाया गया अलम इमाम हुसैन और उनके 71 साथियों को इराक के करबला शहर में तीन दिन का भूखा-प्यासा सन 61 हिजरी में शहीद किया गया था। उसकी याद में आज तक मुस्ल्मि समुदाय के लोग मोहर्रम मनाते हैं। मोहर्रम की पांच तारीख को वाराणसी के गोविंदपुरा कलां छत्तातला इलाके से अलम का कदीमी जुलूस निकाला गया।
वक्फ-मस्जिद व इमामबाड़ा मौलाना मीर इमाम अली से उठे इस जुलूस में अलम की जियारत के लिए जायरीन उमड़े। जुलूस उठकर अपने पुराने रास्तों से दालमंडी पहुंचा जहां से अंजुमन हैदरी, चौक बनारस ने नौहा-मातम शुरू किया जिसका सिलसिला दरगाह फातमान तक चलता रहा। जुलूस दरगाह फातमान, लल्लापुरा से वापस इमामबाड़े में देर रात ठंडा हुआ।
जुलूस उठने पर मुजफ्फरपुर से आये वज्जन खां के पोते ने पढ़ी सवारी इमामबाड़े के मुतवल्ली मुनाजिर हुसैन ने बताया कि यह इमामबाड़ा और मस्जिद सैकड़ों साल पुराने हैं। यहां से पांचवीं मोहर्रम को कदीमी (पुराना) जुलूस सैंकड़ों सालों से उठाया जा रहा है। इस जुलूस में मुजफ्फरपुर के वज्जन खां के पोते नजाकत अली ने सवारी पढ़ी। कई पीढ़ियों से जुलूस में सवारी पढ़ रहे नजाकत ने कहा कि 'यहां आने से दिल को सुकून मिलता है। इमाम हुसैन की हाजिरी लगाने हम हर साल यहां आते हैं।
हाकिम काजिम के मकान से शुरू हुआ नौहा-मातम उन्होंने बताया कि जुलूस - गोविंदपुरा, नारियल बाजार, चौक होते हुए दालमंडी स्थित हकीम नाजिम जाफरी के आवास पर पहुंचा। यहां से अंजुमन हैदरी ने नौहाख्वानी व मातम शुरू किया और जुलूस को लेकर आगे बढ़ी। जुलूस में रास्ते भर नौहाख्वानी व मातम होता रहा। इसमें शराफत हुसैन, लियाकत अली खा, साहब जैदी, शफात हुसैन, अंसार हुसैन आदि ने नौहा पढ़ा ।जुलूस लल्लापुरा स्थित दरगाह फातमान पहुंचा और फिर यहां से वापस औरंगाबाद, नई सड़क कपड़ा मार्केट होता हुआ देर रात इमामबाड़े में समाप्त हुआ।
जुलूस में बिस्मिलाह खां के घर के उस्ताद फतेह अली खां ने शहनाई पर मातमी धुन रस्ते भर बजाई।