राजभाषा सम्मेलन के उद्घाटन में बोले गृहमंत्री- काशी भाषाओं का गोमुख, नागरी प्रचारिणी से लेकर भारतेंदु बाबू और महामना से लेकर तुलसी बाबा तक के योगदान की चर्चा... 

सम्मेलन को सम्बोधित कर रहे केंद्रीय गृहमंत्री ने कहा कि अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन को राजधानी दिल्ली से बाहर करने का निर्णय हमने वर्ष 2019 में ही कर लिया था। कोरोना काल की वजह से हम नहीं कर पाएं, लेकिन आज मुझे खुशी हो रही है कि ये नई शुभ शुरुआत आजादी के अमृत महोत्सव में होने जा रही है।

राजभाषा सम्मेलन के उद्घाटन में बोले गृहमंत्री- काशी भाषाओं का गोमुख, नागरी प्रचारिणी से लेकर भारतेंदु बाबू और महामना से लेकर तुलसी बाबा तक के योगदान की चर्चा... 

वाराणसी,भदैनी मिरर। जो देश अपनी भाषा खो देता है, वो देश अपनी सभ्यता, संस्कृति और अपने मौलिक चिंतन को भी खो देता है। जो देश अपने मौलिक चिंतन को खो देते हैं वो दुनिया को आगे बढ़ाने में योगदान नहीं कर सकते हैं। दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली लिपिबद्ध भाषाएं भारत में हैं। उन्हें आगे बढ़ाना चाहिए। उक्त बातें केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने  हस्तकला संकुल में आयोजित अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन के दौरान कही। 

सम्मेलन को सम्बोधित कर रहे केंद्रीय गृहमंत्री ने कहा कि अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन को राजधानी दिल्ली से बाहर करने का निर्णय हमने वर्ष 2019 में ही कर लिया था। कोरोना काल की वजह से हम नहीं कर पाएं, लेकिन आज मुझे खुशी हो रही है कि ये नई शुभ शुरुआत आजादी के अमृत महोत्सव में होने जा रही है। कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि अमृत महोत्सव, देश को आजादी दिलाने वाले लोगों की स्मृति को फिर से जीवंत करके युवा पीढ़ी को प्रेरणा देने के लिए तो है ही, ये हमारे लिए संकल्प का भी वर्ष है। 

अमित शाह ने कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव के तहत में देश के सभी लोगों का आह्वान करना चाहता हूं कि स्वभाषा के लिए हमारा एक लक्ष्य जो छूट गया था, हम उसका स्मरण करें और उसे अपने जीवन का हिस्सा बनाएं। हिंदी और हमारी सभी स्थानीय भाषाओं के बीच कोई अंतर्विरोध नहीं है। उन्होंने कहा कि मुझे गुजराती से ज्यादा हिंदी भाषा पसंद है। हमें अपनी राजभाषा को मजबूत करने की जरूरत है। 

गृहमंत्री ने कहा कि पहले हिंदी भाषा के लिए बहुत सारे विवाद खड़े करने का प्रयास किया गया था, लेकिन वो वक्त अब समाप्त हो गया है। पीएम मोदी ने गौरव के साथ हमारी भाषाओं को दुनिया भर में प्रतिस्थापित करने का काम किया है। भाषा जितनी सशक्त और समृद्ध होगी, उतनी ही संस्कृति व सभ्यता विस्तृत और सशक्त होगी। अपनी भाषा से लगाव और अपनी भाषा के उपयोग में कभी भी शर्म मत कीजिए, ये गौरव का विषय है।

शाह ने कहा मैं गौरव के साथ कहना चाहता हूं कि आज गृह मंत्रालय में अब एक भी फाइल ऐसी नहीं है, जो अंग्रेजी में लिखी जाती या पढ़ी जाती है, पूरी तरह हमने राजभाषा को स्वीकार किया है। बहुत सारे विभाग भी इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।

काशी भाषाओं का गोमुख


अमित शाह ने काशी की चर्चा करते हुए कहा कि काशी में भाषा का जन्म हुआ है। काशी भाषाओं का गोमुख है। उन्होंने कहा कि हिंदी का स्थानीय भाषा का कोई विवाद नहीं है। स्वराज, स्वभाषा और राजभाषा पर हमारा जोर है। 

अमित शाह ने कहा कि हिंदी की बात होगी तो भारतेंदु हरिश्चंद्र को भला कौन भूल सकता है, इसी काशी से खड़ी बोली का क्रमवार विकास हमने देखा है, जो आज समृद्ध भाषा बनकर हिंदी आज हमारे सामने है तो काशी का इसमें अभूतपूर्व योगदान है। हिंदी भाषा का उन्ययन उसके कोष और व्याकरण कैसा बने इसकी शुरुआत भी वर्ष 1893 में काशी के नागरी प्रचारिणी सभा का उद्देश्य था। हिंदी का पहला व्याकरण कामता प्रसाद गुरु ने इसी शहर में लिखा और आगे बढ़ाया। हिंदी का पहला शब्दकोश हिंदी शब्द सागर यही बनारस में बना और उसको फिर अनेक विद्वतजनों ने समृद्ध करते गए। हिंदी भाषा और साहित्य का पहला संगठित इतिहास पंडित रामचन्द्र शुक्ल ने इसी काशी के अंदर लिखा। 

हिंदी को पाठ्यक्रम से कैसे जोड़े इस बात की चिंता भी पंडित मदन मोहन मालवीय ने यही हमारे काशी हिंदू विश्वविद्यालय के अंदर की,लाला भगवानदीन और बाबू श्यामसुंदर दास के नेतृत्व में हिंदी का पहला पाठ्यक्रम बनाने का काम मालवीय जी के तत्वाधान में हुआ और उसको तुरंत ही देशभर के सभी विश्वविद्यालयों ने स्वीकार किया और आगे बढ़ाया। गृहमंत्री ने कहा तुलसीदास को कैसे भूल सकते हैं, यदि रामचरितमानस को तुलसी बाबा ने अवधि में न लिखा होता तो शायद रामायण लुप्त हो गई होती। भारतेंदु हरिश्चंद्र ,मुंशी प्रेमचंद , जयशंकर प्रसाद, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी और नामवर सिंह जैसे हिंदी के न जाने कितने विद्वान काशी से ही थे।