भागवत ग्रंथ नहीं गंगा है, बोले प्रख्यात कथावाचक रमेश भाई ओझा श्रीकृष्ण का मतलब परम ब्रह्म की प्राप्ति है...

Bhagwat is not a book, it is Ganga. Said eminent narrator Ramesh Bhai Ojha Shri Krishna means attainment of the Supreme Brahman. प्रख्यात कथावाचक रमेश भाई ओझा ने कहानी भागवत ग्रंथ नहीं गंगा है. श्री कृष्ण का मतलब परम ब्रह्म की प्राप्ति है.

भागवत ग्रंथ नहीं गंगा है, बोले प्रख्यात कथावाचक रमेश भाई ओझा श्रीकृष्ण का मतलब परम ब्रह्म की प्राप्ति है...
प्रख्यात कथावाचक रमेश भाई ओझा। फोटो- भदैनी मिरर

वाराणसी, भदैनी मिरर। भोगवादी जीवन से आज संपूर्ण मानव जीवन अशांति और रोगों से ग्रसित है। संपूर्ण मानव समुदाय भोग की ओर आगे बढ़ रहा है और वही भोग अपराध और पाप करवा रहा है। इन अपराधों और पापा से बचने के लिए ही यज्ञ, हवन, भगवत शरण और धर्मआदि कार्यों का ग्रंथों में वर्णन है। उक्त बातें प्रख्यात कथावाचक रमेश भाई ओझा ने भदैनी मिरर से खास बातचीत में कही।

उन्होंने कहा कि संपूर्ण सृष्टि यज्ञमय है, हमारा अस्तित्व यज्ञमय है, यज्ञ ही है जिसकी वजह से जगत में हम आए हैं। यज्ञों से ना केवल पापों का नाश होता है बल्कि हमें भगवत शरण में जाने की ऊर्जा भी मिलती है। 

हरि कृपा से मिलता है भगवत शरण

रमेश भाई ओझा ने कहा कि हरि कृपा बिना न तो श्रद्धा जागृत हो सकती है और ना ही संतों का सानिध्य प्राप्त हो सकता है। श्रद्धा में 'सत' और 'धा' दोनों है। जिसका अर्थ सत्य को धारण करने वाला होता है। अर्थात जो सत्कर्म पर चलता है श्रद्धा उसमें जागृत होती है। श्रद्धा के लिए मन की निर्मलता अत्यंत ही आवश्यक है। मन की निर्मलता के लिए हमें भागवत की शरण में जाना होगा, क्योंकि श्रीमद्भागवत कथा मात्र ग्रंथ नहीं बल्कि गंगा है जिसके श्रवण मात्र से श्रोताओं का मन शुद्ध होता है। जो व्यक्ति भागवत की शरण में जाता है वह सत्कर्म पर चल पड़ता है। 

कृष्ण भक्ति की मात्र एक विधि है प्रेम

प्रख्यात कथावाचक रमेश भाई ओझा ने कहा कि सत्कर्म मन की निर्मलता के लिए हम करते हैं। दान, व्रत जप तप और संयम यह सभी श्रेय के माध्यम है और सात्विक श्रेय श्री कृष्ण की भक्ति है। श्री कृष्ण का मतलब केवल गोपाल नहीं बल्कि परम ब्रह्म की प्राप्ति है। कृष्ण भक्ति के माध्यम से प्रभु की भक्ति ही श्रेष्ठ है। इसलिए मन की शुद्धि भगवान की लीला, भगवान का गुण और भगवत नाम के आश्रय से ही संभव है। भागवत कथा को औषधि और रामचरितमानस को वैद्य कहा गया है। भयंकर रोगों को जिस तरह औषधि जड़ से मिटा देती है। वैसे ही सभी पापों को श्रीमद्भागवत मिटाकर कृष्ण भक्ति का भाव हमारे मन में बिठा देती है। भागवत ज्ञान भक्ति और वैराग्य का संगम है। कृष्ण भक्ति की मात्र एक विधि है प्रेम। जो संपूर्ण स्रोतों से श्रीमद् भागवत मुक्ति दिलाने में सक्षम है।

परमशांति और मुक्ति देता है भागवत-रामायण

श्रीमद् भागवत कथा का महत्व बताते हुए रमेश भाई ओझा ने कहा कि भागवत पुराण, प्राचीन होते हुए भी हमें नूतन अनुभव देती है, नए ज्ञान सृजित करती है। भागवत हमें रस और फल दोनों की प्राप्ति कराती है। उन्होंने कहा कि जिस तरह हमारा शरीर पंच तत्वों से मिलकर बना है वैसे ही भागवत में चरित्र, उपदेश, रूपक, गीत और स्तुति का मिलन है भागवत में भगवान के 24 अवतारों का वर्णन है तो जीवन को सफल और सार्थक बनाने के लिए उपदेश भी दिया गया है उपदेशों को समझाने के लिए रूपक की सहायता ली गई है। भागवत में रुद्र गीत,गोपी गीत और वेणुगीत का संगम है। खास है कि भागवत की स्तुति सिर्फ भागवत में ही मिलती है। भागवत 'भव' रोगों को नष्ट करने वाली औषधि है और हरि भक्ति शोक, मोह और मैं तीनों का हरण करने वाली है। मोह, अहंकार और काम रावण कुंभकरण और मेघनाथ जैसे हैं जो शांति भंग करते हैं रामचरितमानस और भागवत मानव जीवन को परम शांति और मुक्ति देने वाला है।