शिक्षा का व्यवसायीकरण दुखद: अत्यधिक मोबाइल का इस्तेमाल चिंताजनक, बोले मुकुल पाण्डेय-बच्चों पर अभिभावक रखें नजर...
शिक्षा में व्यवसायीकरण का आना एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है. खासकर सीबीएसई बोर्ड के निदेशक छात्रों को अपने यहां नॉमिनेट करने के नाम पर मोटी रकम वसूल रहे है और उस पैसे को अपने घूमने-फिरने और निजी सुख के लिए उपयोग कर रहे है. उक्त बातें बाल विद्यालय माध्यमिक स्कूल के सचिव मुकुल पाण्डेय ने अनौपचारिक बातचीत में कहीं.
वाराणसी, भदैनी मिरर। शिक्षा में व्यवसायीकरण का आना एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है. खासकर सीबीएसई बोर्ड के निदेशक छात्रों को अपने यहां नॉमिनेट करने के नाम पर मोटी रकम वसूल रहे है और उस पैसे को अपने घूमने-फिरने और निजी सुख के लिए उपयोग कर रहे है. उक्त बातें बाल विद्यालय माध्यमिक स्कूल के सचिव मुकुल पाण्डेय ने अनौपचारिक बातचीत में कहीं.
मुकुल पाण्डेय का कहना है कि स्कूल में अनुशासन की प्राथमिकता होनी चाहिए. चर्चा करते हुए बताया कि बाल विद्यालय माध्यमिक स्कूल की स्थापना सन् 1968 में माता-पिता ने की थी. इस स्कूल को लगभग 56 वर्ष हो गए है. बाबजूद इसके शिक्षा के इस मंदिर में हमने कभी व्यवसाय को हावी नहीं होने दिए. अनुशासनहीनता करने वाले छात्रों पर विद्यालय प्रशासन तत्काल कड़ी कार्रवाई करता था. कहा कि स्कूल के निदेशक और प्रिंसिपल को अनुशासन का विशेष ध्यान देना चाहिए, यही अनुशासन बच्चों के भविष्य में काम आता है.
बड़े-बड़े एक्टर्स जुआ का कर रहे प्रचार
बाल विद्यालय माध्यमिक स्कूल के सचिव मुकुल पाण्डेय छात्रों के अत्यधिक मोबाइल और कंप्यूटर के इस्तेमाल पर भी चिंतित है. कहते है कि इंटरनेट पर सभी चीजें उपलब्ध है. अच्छाई से ज्यादा बच्चे बुराई को अपना लेते है. घरों में मूवी देखकर एक्टर को आजकल अपना आइडियल मानते है और वहीं आइडियल पैसों के लिए लूडो सहित कई खेलों के नाम पर जुआ का प्रचार कर रहे है. बचपन से ही वह करोड़पति बनने का सपना देख लेते है और फिर गलत मार्ग पर चल पड़ते है. ऐसी चीजों पर तुरंत लगाम लगाने के लिए भारत सरकार को रोक लगानी चाहिए.
उनका कहना है कि स्कूलिंग करने वाले स्टूडेंट्स अपरिपक्व होते है. वह मिट्टी है, शिक्षक, मां- बाप जिस आकार में ढाल देंगे बच्चे वह आकार ले लेते है.
स्कूलों में लग जाएगा ताला
मुकुल पाण्डेय का कहना है कि डमी स्कूलों को लेकर विगत दो सालों से एक ट्रेंड चल गया है. बच्चे 11-12 करने के बाद वो एक साल का गैप कर तैयारी करें. उनको कहीं नॅान-स्कूलिंग की जरुरत नहीं पढ़ेगी. यदि आप अभी भी नहीं चेते तो भविष्य में स्कूलों से ज्यादा कोचिंग सफल होगी और स्कूलों में ताला बंद होते देर नहीं लगेगी. हालांकि कोचिंग सेंटर की स्थिति ये भी है कि 2-3 लाख फीस लेने के बाद भी बच्चा सफल नहीं हो पाता.
परीक्षाओं की सूचिता से न हो खिलवाड़
मुकुल पाण्डेय ने नीट परीक्षा के कथित धांधली पर भी चिंता व्यक्त की. कहा कि बच्चे इंजीनियरिंग, मेडिकल जैसे टिपिकल प्रतियोगी परीक्षाएं बच्चों का भविष्य होती है. वह बचपन से ही इसी स्तर की तैयारी और मेहनत करते है. बच्चों के साथ ही मां-बाप की तपस्या और इन्वेस्ट भी होता है, लेकिन उन बच्चों को विरोध के लिए चौराहों पर उतरना पड़ा तो यह स्थिति बिल्कुल ठीक नहीं है. ऐसे में शिक्षा प्रणाली को सही करने और सभी प्रतियोगी परीक्षाओं की सुचिता सुनिश्चित करने की जरूरत है.