सड़क दुर्घटना में केवल घर का इकलौता चिराग ही नहीं बुझा बल्कि टूट गई समाजसेवा की एक कड़ी, पंचतत्व में विलीन हुआ विशाल मिश्रा 'गणेश' का पार्थिव शरीर...

सड़क दुर्घटना में विशाल मिश्रा 'गणेश' के निधन से घर का इकलौता चिराग ही नहीं बुझा बल्कि पूर्वांचल में समाजसेवा की एक कड़ी टूट गई.

सड़क दुर्घटना में केवल घर का इकलौता चिराग ही नहीं बुझा बल्कि टूट गई समाजसेवा की एक कड़ी, पंचतत्व में विलीन हुआ विशाल मिश्रा 'गणेश' का पार्थिव शरीर...

वाराणसी, भदैनी मिरर। हमेशा दूसरों की मदद के लिए पहली पंक्ति में खड़ा रहने वाले विशाल मिश्रा गणेश का बीती रात सड़क दुर्घटना में निधन हो गया है. गणेश के निधन से युवा समाजसेवियों से लेकर पूर्वांचल के प्रबुद्धजनों में शोक की लहर है. बीएचयू से शिक्षा प्राप्त करने वाले गणेश हमेशा मरीजों की मदद से लेकर सामाजिक न्याय की लड़ाई को व्यक्तिगत मानकर खड़े रहते थे. बुधवार सुबह जैसे ही यह घटना लोगों को मालूम हुई तो सोशल मीडिया से लेकर उनके अन्तिम संस्कार हरिश्चंद्र घाट तक लोगों का तांता लग गया.

सामाजिक कार्य ही था पहला उद्देश्य

लोहता थानाक्षेत्र में नरइचा अकेलवा मार्ग पर मंगलवार रात निमंत्रण से लौट रहे विशाल मिश्रा "गणेश" की चार पहिया गाड़ी सांड को बचाने में पलट गई. घटना में गाड़ी में पीछे बैठे गणेश की मौके पर ही मौत हो गई जबकि गाड़ी चला रहे अंकित पांडेय निवासी जफराबाद रोहनिया और राहुल पांडेय निवासी औराव पिंडरा की स्थिति नाजुक है, जिनका इलाज बीएचयू ट्रामा सेंटर में चल रहा है. 
भुल्लनपुर के रहने वाले राम मिश्रा के विशाल मिश्रा "गणेश" इकलौते पुत्र थे. घटना के बाद ने केवल क्षेत्र में सन्नाटा है बल्कि समाजसेवा करने वाला हर शख्स रो रहा है. बोझिल मन से पिता राम मिश्रा का बस यही कहना है की सबकी मदद करने वाला मेरा लाल किसका क्या बिगाड़ा था की...मुझे (पिता) को कंधा देना पड़ रहा है? पिता के इस सवाल का किसी के पास ज़बाब नहीं है. हर कोई परिवार की स्थिति देखकर खुद को रोने से नहीं रोक पाया.

हर मुश्किलों में मुकुराहट थी पहचान

विशाल मिश्रा "गणेश" बीएचयू अस्पताल में ही संविदा पर कार्य करते थे. गणेश कहते थे कि गाड़ी में पेट्रोल और मदद के लिए अर्थ की जरूरत पड़ती है. निस्वार्थ सेवा करने के लिए सम्मान से नौकरी करना बेहतर है. गणेश से मदद पाने के लिए परिचित होना जरूरी नहीं था, बल्कि जरूरतमंद होना जरूरी था. हर किसी के लिए खड़ा रहने वाले गणेश मरीज के परिजनों को भी अपने मुस्कुराते चहेरे में हंसा देते थे और विश्वास दिलाते थे आपका मरीज स्वस्थ होकर जायेगा.
गणेश कई बार कहते थे, मां-बाप का अकेले होने में बड़ा ही दुख है. रात को बहुत देर तक बाहर नहीं रह सकते. घर में जाने के बाद निकलने के लिए मशक्कत करनी पड़ती है. लेकिन भईया जब मदद के लिए किसी का फोन आ जाता है तो सभी बंदिशों को तोड़कर घर का दहलीज लांघना पड़ता है. 

(भदैनी मिरर परिवार युवा समाजसेवी को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है.)