मेधावी का भविष्य संवारने को जज ने भरी फीस, BHU-IIT को दाखिला लेने का दिया निर्देश
The judge paid the fees for the future of the meritorious instructed BHU-IIT to take admissionमेधावी का भविष्य संवारने को जज ने भरी फीस, BHU-IIT को दाखिला लेने का दिया निर्देश
वाराणसी,भदैनी मिरर। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एक दलित मेधावी छात्रा के योग्यता को देखते हुए उसके भविष्य हित मे त्वरित निर्णय लिया। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ के जस्टिस दिनेश कुमार सिंह ने छात्रा संस्कृति रंजन की याचिका पर सुनवाई करते हुवे उसकी योग्यता से प्रभावित होकर अपनी जेब से न सिर्फ उसकी फ़ीस भरी बल्कि दाखिले से वंचित रह गयी छात्रा को IIT-BHU में प्रवेश के लिए आदेश भी दिया है।
तीन दिन के अंदर दाखिले का आदेश
बता दें कि छात्रा गरीबी के कारण समय पर फीस नहीं जमा कर पाई थी, जिस कारण वह IIT में दाखिले से वंचित रह गई थी। कोर्ट ने ज्वाइंट सीट अलॉकेशन अथॉरिटी और IIT-BHU को भी निर्देश दिया कि छात्रा को तीन दिन के अंदर दाखिला दिया जाए। यदि सीट खाली न रह गई हो तो उसके लिए अलग से सीट की व्यवस्था की जाए।
JEE मेंस और एडवांस में भी हासिल की रैंक
छात्रा अत्यंत मेधावी है , इस बात का प्रमाण उसके ऐकडेमिक रिकॉर्ड बता रहे । छात्रा ने 10वीं की परीक्षा में 95.6 प्रतिशत और 12वीं में 94 प्रतिशत अंक हासिल किया था। जिसके बाद उसने JEE की परीक्षा के मेन्स में 92.77 प्रतिशत अंक प्राप्त करते हुए एससी श्रेणी में 2062 रैंक हासिल किया। इसके बाद वह जेईई एडवांस की परीक्षा में शामिल हुईं, जिसमें 15 अक्टूबर 2021 को सफल घोषित की गई और उनकी रैंक 1469 आई। इसके बाद IIT-BHU में उसे गणित और कंप्यूटर से जुड़े पांच वर्षीय कोर्स में सीट आवंटित की गई। हालांकि, वह एडमिशन के लिए 15 हजार की व्यवस्था नही कर सकी और डेट निकल गई। इससे उसका एडमिशन नहीं हो सका।
पैसों के इंतजाम के लिए मांगा था समय
छात्रा संस्कृति रंजन के पिता की किडनी खराब है। उनका किडनी ट्रांसप्लांट होना है। अभी सप्ताह में दो बार डायलिसिस होती है। ऐसे में पिता की बीमारी और कोरोना की मार के कारण उसके परिवार की आर्थिक हालत बिगड़ गई है। इस कारण वह समय पर फीस नही जमा कर पाई। लेकिन एडमिशन न होने के बाद भी छात्रा ने हार न मानते हुए कोर्ट का रुख किया। उसकी आर्थिक स्थिति इतनी खराब है कि अपने लिए एक वकील का भी इंतजाम नहीं कर सकी थी। हाईकोर्ट के कहने पर एडवोकेट सर्वेश दुबे और समता राव ने छात्रा का पक्ष रखने में कोर्ट का सहयोग किया। उसने अपने पक्ष में फैसला आने के बाद पैसे जुटाने के लिए कोर्ट से समय मांगा था । जिसके बाद जस्टिस ने छात्रा की योग्यता को देखते हुए स्वय उसकी फ़ीस भरते हुवे प्रोत्साहित किया।