पैर की नसों में जमा खून पहुंचा फेफड़े तक, चिकित्सकों ने ऐसे किया उपचार...
रेनूसागर निवासी 70 वर्षीय बुजुर्ग महिला हाइपोटेंशन के बिना दाएं वेंट्रिकुलर डिसफंक्शन के लक्षण और एक्यूट पल्मोनरी एम्बोलिज़्म के साथ क्रिटिकल केयर विशेषज्ञ डॉ. आशीष श्रीवास्तव की परामर्श के अंतर्गत इमरजेंसी में भर्ती हुयी.
वाराणसी। रेनूसागर निवासी 70 वर्षीय बुजुर्ग महिला हाइपोटेंशन के बिना दाएं वेंट्रिकुलर डिसफंक्शन के लक्षण और एक्यूट पल्मोनरी एम्बोलिज़्म के साथ क्रिटिकल केयर विशेषज्ञ डॉ. आशीष श्रीवास्तव की परामर्श के अंतर्गत इमरजेंसी में भर्ती हुयी. मरीज की स्थिति को देखते हुए तत्काल कार्डियक थोरेसिक वैस्क्यूलर सर्जन डॉ. अमित श्रीवास्तव की परामर्श हेतु स्थानांतरित किया गया. विभिन्न जाँचों के उपरांत पता चल कि मरीज की पैर की नसों में जमा खून का थक्का दिल से होते हुए फेफड़े की नसों में चल गया है जिससे मरीज की सांस फूलने लगी और रक्तचाप बहुत काम हो गया.
सामान्यतः ऐसी स्थिति में मरीज वेन्टीलेटर सपोर्ट पर आ जाता है और मृत्यु की संभावना भी 60-70 प्रतिशत बढ़ जाती है, और इसमें सर्जरी भी संभव
नहीं होती है. एपेक्स के कुशल एवं अनुभवी कार्डियक टीम ने तुरंत मरीज के परिचारिकों की सहमति ले कर कैथेटर निर्देशित थ्रोम्बोलिसिस प्रक्रिया हेतु उसे कैथ लैब में स्थानांतरित किया जहाँ एनेस्थेसियोलॉजिस्ट डॉ अभिषेक सिंह, रेज़ीडेंट डॉ राज एवं कुशल टेक्नोलॉजिस्ट की देख-रेख में डॉ. अमित श्रीवास्तव एवं डॉ. आशीष श्रीवास्तव द्वारा उच्च जोखिम पूर्ण पल्मोनरी धमनी कैथेटर के माध्यम से खून के थक्के को गलाने की दवा देकर सफलतापूर्वक थ्रोम्बोलाइज़ किया गया. मरीज 24 घंटे में स्वस्थ्य हो गयी एवं डिस्चार्ज के लिए तैयार है. एपेक्स के चेयरमैन
डॉ. एसके सिंह ने कार्डियक टीम को बधाई देते हुए स्पष्ट किया कि मेट्रो शहरों की तरह रक्तस्राव के कम जोखिम के साथ ऐसे रोगी में कैथेटर निर्देशित थ्रोम्बोलिसिस को प्रणालीगत थ्रोम्बोलिसिस के लिए अधिक सुरक्षित और प्रभावी विकल्प माना जा सकता है, जो अब वाराणसी के एपेक्स हॉस्पिटल कार्डियक संस्थान में संभव है.