गंगामित्रों का बीएचयू केंद्रीय कार्यालय पर धरना : गंगा शोध केंद्र की पुनः संचालन की मांग, लगाया यह आरोप

गंगामित्र कोऑर्डिनेटर धर्मेंद्र पटेल के नेतृत्व में बड़ी संख्या में गंगामित्रों की टीम शनिवार को बीएचयू केंद्रीय कार्यालय पहुंची, जहां विश्वविद्यालय के सुरक्षा कर्मियों ने उन्हें प्रवेश से रोक दिया. इसपर नाराज गंगामित्रों ने कार्यालय के बाहर ही अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन शुरू कर दिया

गंगामित्रों का बीएचयू केंद्रीय कार्यालय पर धरना : गंगा शोध केंद्र की पुनः संचालन की मांग, लगाया यह आरोप

वाराणसी, भदैनी मिरर। गंगामित्र कोऑर्डिनेटर धर्मेंद्र पटेल के नेतृत्व में बड़ी संख्या में गंगामित्रों की टीम शनिवार को बीएचयू केंद्रीय कार्यालय पहुंची, जहां विश्वविद्यालय के सुरक्षा कर्मियों ने उन्हें प्रवेश से रोक दिया. इसपर नाराज गंगामित्रों ने कार्यालय के बाहर ही अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन शुरू कर दिया. काफी मशक्कत के बाद बीएचयू प्रशासन ने मात्र 5 गंगामित्रों को कुलसचिव से मिलने की अनुमति दी.

रजिस्ट्रार प्रोफेसर अरुण कुमार सिंह के साथ हुई बात में उन्होंने गंगा शोध केंद्र की पूर्व कोऑर्डिनेटर और आईईएसडी की प्रोफेसर कविता शाह के पत्र का हवाला देते हुए बताया कि पिछले 6 वर्षों से गंगा सेंटर को न कोई फंडिंग मिली और न ही कोई काम हुआ. कविता शाह द्वारा सिद्धार्थ विश्वविद्यालय, कपिलवस्तु की कुलपति का पद ग्रहण करने से पहले यह पत्र लिखा गया था.

गंगामित्रों ने इस पर कड़ा एतराज जताते हुए पूछा कि क्या एक महिला प्रोफेसर के पत्र के आधार पर केंद्र को बंद कर देना सही है? उन्होंने बीएचयू प्रशासन से सवाल किया कि केंद्र से ग्राउंड रिपोर्ट क्यों नहीं मांगी गई?

गंगामित्रों ने कुलसचिव के सामने गंगा शोध केंद्र द्वारा पिछले 6 वर्षों में किए गए कार्यों की रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें नमामि गंगे परियोजना के अंतर्गत 2017 से 2023 तक लगातार मिल रही वित्तीय सहायता का उल्लेख किया गया. यह रिपोर्ट बीएचयू के संबंधित विभाग में भी उपलब्ध है.

गंगामित्रों ने आरोप लगाया कि प्रोफेसर कविता शाह पिछले 6 वर्षों से केंद्र पर कभी नहीं आईं और उन्हें इसकी प्रगति की कोई जानकारी नहीं थी. उनके बिना तथ्यों के पत्र को आधार बनाकर केंद्र को बंद करना गलत है. गंगामित्रों ने चेतावनी दी कि यदि गंगा शोध केंद्र को पुनः संचालित करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो वे अपनी लड़ाई को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाएंगे.