रंगभरी एकादशी पर करें विशेष पूजा, पूरी होगी आपकी मनोरथ...
वाराणसी, भदैनी मिरर। फाल्गुन शुक्ल-एकादशी को काशी में रंगभरी एकादशी कहा जाता है। इस दिन बाबा विश्वनाथ का विशेष श्रृंगार होता है और माता गौरा गौने आती है। इसी दिन से काशी में होली का पर्वकाल प्रारंभ हो जाता है। पौराणिक परम्पराओं और मान्यताओं के अनुसार रंगभरी एकादशी के दिन ही भगवान शिव माता पार्वती से विवाह के उपरान्त पहली बार अपनी प्रिय काशी नगरी आए थे। इस पर्व मे शिव जी के गण उन पर व समस्त जनता पर रंग अबीर गुलाल उड़ाते, खुशियाँ मानते चलते हैं। इस दिन से वाराणसी में रंग खेलने का सिलसिला प्रारंभ हो जाता है जो लगातार छह दिन तक चलता है।
ब्रज में होली का पर्व होलाष्टक से शुरू होता है वही वाराणसी में यह रंगभरी एकादशी से शुरू हो जाता है। इस दिन शिव जी को विशेष रंग अर्पित करके धन सम्बन्धी तमाम मनोकामनाएं पूरी की जा सकती हैं। इस बार रंग भरी एकादशी 24 मार्च को है। इस दिन आप विशेष पूजा पाठ कर अपनी मनोरथ पूरी कर सकते है।प्रातःकाल स्नान करके पूजा का संकल्प लें। यदि आप आर्थिक समस्या दूर करने के लिए यह उपाय करेें।
- घर से एक पात्र में जल भरकर शिव मंदिर जाएँ
- साथ में अबीर गुलाल चन्दन और बेलपत्र भी ले जाएँ
- पहले शिव लिंग पर चन्दन लगाएं , फिर बेल पत्र और जल अर्पित करें
- सबसे अंत में अबीर और गुलाल अर्पित करें
- फिर आर्थिक समस्याओं के समाप्ति की प्रार्थना करें
"आमलकी एकादशी"
इस एकादशी पर आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है
- साथ ही आंवले का विशेष तरीके से प्रयोग किया जाता है
- इससे उत्तम स्वास्थ्य और सौभाग्य की प्राप्ति होती है
- इसीलिए इस एकादशी को "आमलकी एकादशी" भी कहा जाता है
- प्रातः काल आंवले के वृक्ष में जल डालें
- वृक्ष पर पुष्प , धूप , नैवेद्य अर्पित करें
- वृक्ष के निकट एक दीपक भी जलाएं
- वृक्ष की सत्ताइस बार या नौ बार परिक्रमा करें
- सौभाग्य और स्वास्थ्य प्राप्ति की प्रार्थना करें
- अगर आंवले का वृक्ष लगाएं तो और भी उत्तम होगा
इस एकादशी पर आंवले का प्रयोग कैसे करें?
- माना जाता है कि आंवले की उत्पत्ति भगवान विष्णु के द्वारा हुयी थी
- आंवले के प्रयोग से उत्तम स्वास्थ्य और समृद्धि मिलती है
- आंवले के दान से गौ दान का फल मिलता है
- इस दिन आंवले का सेवन और दान करें
- इसके बाद कनक धारा स्तोत्र का पाठ करें
- हर तरह की दरिद्रता का नाश होगा
ज्योतिषाचार्य राहुल उपाध्याय