कल है पितृ विसर्जन: इस दिन सूर्य और चंद्रमा के बीच शून्य हो जाता है अंतर, ऐसे करें अपने पितरों को प्रसन्न
वाराणसी,भदैनी मिरर। अश्विन मास की अमावस्या को पितरों के महापर्व पितृविसर्जन मनाया जाता है। जो इस वर्ष 6 अक्तूबर को मनाया जाएगा। मान्यता है कि इस दिन पानी में तिल मिलाकर नहाने और पीपल में कच्चा दूध चढ़ाने से पितर प्रसन्न होते हैं। इस दिन श्राद्ध, तर्पण, पूजा-पाठ और दान की भी परंपरा है।
ग्रंथों के मुताबिक, इस तिथि को पितृ दोष निवारण के लिए पूजा की जाती है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार हिंदू कैलेंडर की गणना में अमावस्या तीसवीं तिथि होती है। यानी कृष्णपक्ष का आखिरी दिन अमावस्या कहलाता है।
इस तिथि पर सूर्य और चंद्रमा का अंतर शून्य हो जाता है। इन दो ग्रहों की विशेष स्थिति से इस तिथि पर पितरों के लिए की गई पूजा और दान का विशेष महत्व होता है।
वहीं, तर्पण की अन्य चीजें संभव न हो तो इस तिथि पर पितरों की तृप्ति के लिए व्रत रखने का भी संकल्प लेना चाहिए और अन्न एवं जल का दान करना चाहिए। ब्राह्मण भोजन के साथ गाय को चारा खिलाया जाता है। इस दिन खीर और अन्य खाने की चीजों का दान भी दिया जाता है।
अश्विन अमावस्या पर पितृ तृप्ति के लिए कर्म-
- घर पर ही पानी में तिल डालकर नहाएं।
- चावल बनाकर पितरों को धूप दें।
- सुबह पीपल के पेड़ पर जल और कच्चा दूध चढ़ाएं।
- पितरों की तृप्ति के लिए संकल्प लेकर अन्न और जल का दान करें।
- ब्राह्मण भोजन करवाएं या किसी मंदिर में 1 व्यक्ति के जितना भोजन दान करें।
- भोजन में सबसे पहले गाय फिर कुत्ते और फिर कौवे और इसके बाद चीटियों के लिए हिस्सा निकालें।