कल है जीवित्पुत्रिका, माताएं रखती है पुत्र के लिए निर्जला व्रत
वाराणसी,भदैनी मिरर। हिंदू धर्म में महिलाओं के लिए सबसे कठिन व्रतों में एक जीवित्पुत्रिका हिन्दू पंचांग के अनुसार हर साल अश्विन मास की कृष्ण अष्टमी को मनाया जाता है। इस व्रत को जिउतिया और जीमूतवाहन व्रत भी कहा जाता है। इस दिन माताएं अपनी संतान की सुख-समृद्धि और दीर्घायु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। इस बार जीवित्पुत्रिका व्रत 29 सितंबर को मनाया जाएगा। अष्टमी को महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और अगले दिन यानी नवमी को पारण किया जाता है।
तिथि प्रारम्भ
28 सितंबर को शाम 06 बजकर 16 मिनट से अष्ठमी तिथि प्रारम्भ हो जाएगी। जो 29 सितंबर की रात 8 बजकर 29 मिनट तक रहेगी।
व्रत की पूजन विधि
जीवित्पुत्रिका के दिन महिलाएं सुबह स्नान करके पूजा-पाठ करती हैं और पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं। अगले दिन नवमी तिथि में सूर्योदय के बाद पूजा-पाठ करने के बाद व्रत का पारण किया जाता है। अष्टमी को प्रदोषकाल में महिलाएं जीमूतवाहन की पूजा करती है। इस दिन कुशा से निर्मित जीमूतवाहन की प्रतिमा की पूजा की जाती है। पूजन करने के लिए जीमूतवाहन की प्रतिमा को धूप-दीप, चावल, पुष्प आदि अर्पित किया जाता है। इसके साथ ही मिट्टी तथा गाय के गोबर से चील व सियारिन की प्रतिमा बनाकर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है। पूजन करने के बाद महिलाऐं जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनती हैं।मान्यता है कि जीवित्पुत्रिका व्रत कथा सुनने से संतान की आयु लंबी होती है और उसके जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है। इस दिन दान-दक्षिणा देने से भी विशेष फल प्राप्त होता है।