काशी और काशीवासियों को विश्वभर में मिलता है सम्मान, महायज्ञ के 20वें दिन बोले विद्वान काशी की विलुप्त हो रही परंपराएं और पर्व चिंता का विषय...
The disappearing traditions and festivals of scholar Kashi said on the 20th day of Mahayagyaकाशी और काशीवासियों को विश्वभर में मिलता है सम्मान, महायज्ञ के 20वें दिन बोले विद्वान काशी की विलुप्त हो रही परंपराएं और पर्व चिंता का विषय...
वाराणसी,भदैनी मिरर। जो इतिहास हम पढ़ते हैं वह एक विशेष तरह का इतिहास है, जिसे औपचारिक मान्यता मिली हुई है। लेकिन जो काशी का इतिहास हैं वह अपने आप में ही महत्वपूर्ण है। पूरे विश्व मे सिर्फ काशी का ही नही बल्कि काशीवासियों को भी सम्मान दिया जाता है। उक्त बातें काशी हिंदू विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के प्रोफेसर अरविंद जोशी ने संकुलधारा पोखरे पर चल रहे लक्षचण्डी यज्ञ के बीसवें दिन इतिहास परिचर्चा के दौरान कहीं। उन्होंने कहा कि काशी के कण-कण में शंकर हैं। अर्थात यहाँ हर जगह भगवान का वास है। जो काशी में बस गया वह सम्पूर्ण बंधनों से मुक्त हो गया। यहां की बहुत सी परंपराएं और पर्व विलुप्त होते जा रहे हैं जो अत्यंत दुर्भाग्य की बात है। ऐसा नहीं कि काशी में विज्ञान नही, जितना भी ज्ञान विज्ञान है सब यहीं से मिलता है। काशी पूरे विश्व मे महत्वपूर्ण है और इसका महत्व सदा ही बना रहेगा। हम सभी को खासकर इतिहासकारों को भी काशी को इसी दृष्टि से देखना होगा। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता प्रयागराज विश्वविद्यलय के इतिहास विभाग के प्रो. डी पी. दुबे ने कहा कि यह मेरा सौभाग्य है कि मैं परम् पूज्य स्वामी प्रखर जी महाराज द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में सम्मिलित हो सका। रही बात काशी की तो काशी का इतिहास अपूर्ण है। यहां तथाकथित विश्वगुरु टहल रहे। जिन्हें पढ़ना चाहिए वह पढ़ते नहीं इसके इतिहास को पढ़ना पड़ेगा और पांडुलिपियों से निकालकर ग्रंथों को लिखना पड़ेगा।
स्वामी प्रखर महाराज ने इस दौरान कहा कि प्राचीन तथा आधुनिक दोनों इतिहास के विषय में आज के समाज को परिज्ञान हो इसी उद्देश्य से आज इतिहास परिचर्चा का आयोजन किया गया है। उन्होंने कहा कि विगत 2 वर्षों से हिंदुस्तान सहित सम्पूर्ण विश्व महामारी की चपेट में है। इससे बचाव के लिए कई महान चिकित्सकों समेत देश विदेश के चिकित्सा विद्वानों ने अपने-अपने तरीके से प्रयास किया। लेकिन कोई सकारात्मक परिणाम नही आ सका। भारत सदा से ही विश्वगुरु रहा है और गुरु का कार्य संरक्षण करना ही है। इसी के निमित शायद इस महामारी से विश्व का संरक्षण भी भारत के हाथों ही होना है। क्योंकि यहां सदा से ही वसुधैव कुटुंबकम की परिकल्पना रही। हम सम्पूर्ण वसुधा को अपना घर मानते हैं। इसी के दृष्टिगत इस महायज्ञ का आयोजन हुआ है और इसका परिणाम भी दिखने लगा है।
कार्यक्रम में महायज्ञ समिति के अध्यक्ष श्री कृष्ण कुमार खेमका, सचिव संजय अग्रवाल, कोषाध्यक्ष सुनील नेमानी, संयुक्त सचिव राजेश अग्रवाल, डॉ सुनील मिश्रा, अमित पसारी, शशिभूषण त्रिपाठी, अनिल भावसिंहका, मनमोहन लोहिया, अनिल अरोड़ा, विकास भावसिंहका आदि लोग उपस्थित रहे।