गंगा में कूदकर चुनार भागा हेस्टिंग, 7 तस्वीरों में देखें कैसे याद किए गए देश के क्रांतिकारी...
Revolutionaries of the country remembered through drama under Amrit Mahotsav.
वाराणसी, भदैनी मिरर। आजादी के अमृत महोत्सव में देश के क्रांतिकारियों को याद किया जा रहा है। आजादी में काशी का अपना अलग ही योगदान रहा। काशी घाट वॉक की ओर से चेतसिंह घाट पर अष्टभुजा मिश्रा के निर्देशन में 'गदर बनारस में' लघु नाटक का मंचन कर काशी के क्रांतिकारियों को याद किया गया। नाटक चेतसिंह से शुरु होकर मंगल पांडेय, लक्ष्मीबाई, शहीद चंद्रशेखर से होता हुआ यह नाटक बनारस के पत्र 'रणभेरी' तक की यात्रा किया। जिसमें काशी में विविध समयों में हुए साम्राज्यवादी विद्रोह को दिखाया गया । इसमें जिस समय रात के अंधेरे में चुपके से हेस्टिंग गंगा में नाव के सहारे प्रवेश करते हुए चुनार के लिए भागता है उस समय चेत सिंह की जय से पूरा घाटवाक परिसर गूंज उठा।
नौटंकी की संवाद शैली में सम्पन्न इस इस नाटक में चेत सिंह की भूमिका में निखिल, नन्हकू सिंह की भूमिका में अष्टभुजा मिश्र, मार्केहम की भूमिका में विक्रांत शर्मा, हेस्टिंग की भूमिका में आयुष वार्ष्णेय, चंद्रशेखर की भूमिका में हर्षित सिंह, मंगल पांडे की भूमिका में शशि यादव, संपूर्णानंद की भूमिका में रविकांत मिश्र, झांसी की रानी की भूमिका में ऋतु सिंह,भारत माता की भूमिका में गौरी मिश्र, नट नर्तक की भूमिका में मुकुन्दी लाल, सिपाही की भूमिका में संतोष निगम और नटी तथा सूत्रधार की भूमिका में नेहा वर्मा व अष्टभुजा मिश्र रहे। वादकों में हारमोनियम पर रोशन लाल,नक्कारा पर सूरज बलि, और ढोलक पर विक्रम विंद रहे।
सब्जी की टोकरी में रखकर रणभेरी अखबार बेचता क्रांतिकारी।
राजा चेतसिंह से पैसे की मांग करता अंग्रेजी हुकूमत का मुलाजिम।
नाटक देखते दर्शक।
क्रांतिकारियों से डरकर भागा हांस्टिंग।
बेड़ियों में जकड़ी भारत माता का वन्दन करते क्रांतिकारी।
इस अवसर पर उपस्थित कलाकारों व दर्शकों को संबोधित करते हुए घाटवाक विश्वविद्यालय के संस्थापक प्रसिद्ध न्यूरो चिकित्सक प्रो. विजय नाथ मिश्र ने कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव में अपनी सांस्कृतिक विरासत को समझने के लिए इस नाटक के मंचन का महत्व सर्वाधिक है।काशी का चेत सिंह घाट बनारस के इत्तिहास का वह स्वर्णिम पक्ष है जहां से औपनिवेशिक सत्ता के प्रति बनारस के विद्रोह का पता चलता है।
घाटवाक विश्वविद्यालय के मानद डीन व प्रसिद्ध साहित्यकार प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि चेत सिंह घाट पर नाटक का मंचन कर न केवल हम वारेन हेस्टिंग के पलायन को दिखा सके हैं बल्कि नई पीढ़ी को यह भी बताने में सफल हुए हैं कि बनारस पर बाद में अंग्रेजों का कब्जा यहां के कुबरा व चेतराम जैसे दगाबाजों के कारण ही संभव हुआ।चेत सिंह घाट का इत्तिहास हमें बनारस की जनता व यहाँ के नन्हकू सिंह जैसे पहलवानों की वीरता की याद दिलाता है ।हमें यह घटना यह भी याद दिलाती है कि अगर बेनीराम जैसे गद्दार ने हेस्टिंग का साथ न दिया होता तो हेस्टिंग बनारस में ही मारा गया होता और तब काशी का इत्तिहास कुछ और होता।
इस अवसर पर प्रो बाला लखेन्द्र,संजय सिंह,श्रीमती सुनीता शुक्ल,श्रीमती शेफाली आभा,श्रीमती अरुणा,डॉ महेंद्र कुशवाहा,अभिषेक गुप्ता, अक्षर पाठशाला के गोविंद सिंह, कविता, जितेंद्र कुशवाहा, देवेंद्र दास के साथ दर्शकों के रूप में भारी संख्या में घाटवाकर उपस्थित रहे।संचालन वाचस्पति उपाध्याय और धन्यवाद शिव विश्वकर्मा ने दिया।