नवरात्र के चौथे दिन हो रही दुर्गाकुंड वाली माता कुष्मांडा के दर्शन, देवी भागवत के 23वें अध्याय में मिलता है महात्म्य...
वाराणसी,भदैनी मिरर। शारदीय नवरात्र की चतुर्थी तिथि को माता कुष्मांडा के दर्शन पूजन का विधान है। यह मंदिर वाराणसी के दक्षिण में स्थित दुर्गाकुंड क्षेत्र में है। मंदिर से लगे कुंड को दुर्गा कुंड कहा जाता है इसी के नाम पर पूरे क्षेत्र का नाम है। यह अत्यंत ही प्राचीन दुर्गा मंदिर है। यह मंदिर नागरी शैली में निर्मित है। मन्दिर का इतिहास काफ़ी पुराना है। मान्यता है कि यह मानव निर्मित नही बल्कि स्वयं ही प्रकट हुआ मंदिर है।
हजारों साल पुराना है दुर्गाकुंड का मंदिर
दुर्गाकुंड स्थित देवी कुष्मांडा के मंदिर का निर्माण हजारों साल पहले काशी के राजा सुदर्शन ने कराया था। इस मंदिर से जुड़ी कथा का जिक्र देवी भागवत के 23वें अध्याय में है। पौराणिक कथाओं के अनुसार काशी राजा सुदर्शन के पक्ष में एक बार देवी कुष्मांडा ने स्वयं शेर पर सवार होकर युद्ध किया था। इसके बाद राजा सुदर्शन ने उनसे काशी में विराजमान होने की प्रार्थना की थी। देवी ने राजा सुदर्शन की विनती स्वीकार ली और फिर मंदिर की स्थापना हुई। रानी भवानी ने 17वीं सदी में इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था।
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यह है माता को लेकर मान्यता
ऐसा माना जाता है कि बाबा विश्वनाथ और काशी का दर्शन पूजन तबतक अपूर्ण रहता है जब तक कि माँ दुर्गा का दर्शन ना कर लिया जाये। माता को प्रसन्न करने के लिए नारियल की बलि दी जाती हैं। यह भी मान्यता है कि माता के दर्शन नवरात्र में करने आने वाले भक्तों पर माता धन - वैभव- सुख- समृद्धि की कृपा करती हैं। इसी मान्यता के अनुसार आज सुबह से ही भक्तों की भीड़ मंदिर में लगनी शुरू हो गई । लाल फूल, चुनरी, नारियल लेकर भक्त माता के दर्शनों के लिए लंबी कतारों में शामिल होकर जयकारा लगाया । साथ ही सभी ने माता के दर्शन कर सुख समृद्धि की कामना की।