सीएमओ का कहना है कि घरेलू प्रसव होने पर जच्चा-बच्चा की हालत बिगड़ने की संभावना अधिक रहती है और उस स्थिति में अस्पताल लाना पड़ता है. इस स्थिति से निपटने के लिए सरकारी चिकित्सालयों, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों और स्वास्थ्य उपकेन्द्रों में ही महिलाओं का प्रसव कराएं. स्वास्थ्य विभाग का प्रयास है कि ज्यादा से ज्यादा महिलाओं का संस्थागत प्रसव कराया जाए. इसके लिए आशा कार्यकर्ता, संगिनी व एएनएम, समुदाय में संस्थागत प्रसव के फायदे और जननी सुरक्षा योजना के बारे में जागरूक करें जिससे शिशु एवं मातृ मृत्यु दर में कमी लायी जा सके.
संस्थागत प्रसव के फायदे
डिप्टी सीएमओ एवं नोडल अधिकारी डॉ एचसी मौर्य ने बताया कि कुशल डॉक्टर व प्रशिक्षित स्टाफ की देखरेख में जिला चिकित्सालय और स्वास्थ्य केंद्रों पर प्रसव होता है। किसी भी जटिल परिस्थिति से निपटने में आसानी रहती है। इसके साथ ही आवश्यक दवाईयों और उपकरणों की मौजूदगी, बच्चे की जटिलता पर तुरंत चिकित्सीय सुविधा, संक्रमण का खतरा न रहना, खून की कमी पर पूर्ति की सुविधा आदि रहती है। प्रसव बाद बच्चे को सांस नही आ रही या धीमी आ रही है तो सिक न्यूबोर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) में उनके उपचार सुविधा मौजूद है। चिकित्सालय व स्वास्थ्य केन्द्रों में प्रसव के बाद 48 घंटे तक माँ की भी देखभाल की जाती है। उन्होंने बताया कि सरकार संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के लिए जननी सुरक्षा योजना संचालित कर रही है। सरकारी अस्पताल पर प्रसव कराने पर ग्रामीण क्षेत्र की प्रसूताओं को 1400 रुपये व शहरी क्षेत्र की प्रसूताओं को 1000 रुपये की आर्थिक मदद दी जाती है। साथ ही एंबुलेंस से आने-जाने की सुविधा मिलती है।
संस्थागत प्रसव का आंकड़ा
वाराणसी जिले में वित्तीय वर्ष 2017-18 में जननी सुरक्षा योजना के अन्तर्गत 36731, वर्ष 2018-19 में 34419, वर्ष 2019-20 में 38662, वर्ष 2020-21 में 34859, वर्ष 2021-22 में 34865 और वर्ष 2022-23 में 34223 संस्थागत प्रसव कराये गये तथा उन्हें जननी सुरक्षा योजना का लाभ प्रदान किया गया। देखा जाए तो छह वर्षों में करीब 2,13,759 महिलाओं को जननी सुरक्षा योजना का लाभ दिया जा चुका है। वहीं वर्ष 2023-24 में मई तक 5,632 संस्थागत प्रसव किए जा चुके हैं।