#Exclusive: महामारी में मरहम है थिंक इंडिया और आईआईटी बीएचयू के PhD Scholar, जमकर हो रही प्रशंसा...
वाराणसी,भदैनी मिरर। कोरोना महामारी के इस कठिन दौर में कई एम्बुलेंस ड्राइवर मरीजों की मजबूरी का फायदा उठाकर उन्हें ठग रहे हैं, मात्र कुछ दूरी की एम्बुलेंस सुविधा के लिए वे मरीजों से आपदा में अवसर खोज रहे है। इसी परेशानी को देखते हुए आईआईटी बीएचयू के शोध छात्र आशीष कुमार चौकसे और अश्वनी रंजन जैसे युवा कोरोना महामारी में मरीजों के लिए मरहम बन गए हैं। मरीजों के दर्द को कम करने के लिए बनारस में फ्री एम्बुलेंस सेवा की शुरुआत कर अपनी सेवाएं दे रहे है।
आईआईटी बीएचयू में सिविल ब्रांच से शोध कर रहे आशीष कुमार चौकसे ने भदैनी मिरर को बताया कि आईआईटी बीएचयू के शोध छात्रों और थिंक इंडिया ने मिलकर जरूरतमंद मरीजों के लिए फ्री एम्बुलेंस सेवा शुरू की है. ‘बचना भी है और बचाना भी है’ इस सोच के साथ हमने वाराणसी में फ्री एम्बुलेंस सेवा शुरू की है। यह एम्बुलेंस सेवा सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक जरूरतमंद मरीजों के लिए उपलब्ध है। एम्बुलेंस में ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था है और ऑक्सीमीटर समेत जरूरत की सभी दवाइयां उपलब्ध हैं।
बीएचयू कोविड अस्पताल के बाहर यह एम्बुलेंस खड़ी रहती है। अगर वाराणसी में कहीं से भी मदद के लिए फोन आता है तो एम्बुलेंस तुरंत वहां पहुंच जाती है। अगर मरीज वाराणसी के आस-पास जिले का भी है तो उसे भी फ्री एम्बुलेंस सेवा उपलब्ध कराया जा रहा है।
आईआईटी बीएचयू में मैकेनिकल ब्रांच में शोध कर रहे अश्वनी रंजन ने भदैनी मिरर को बताया, “सरकार द्वारा सुझाई गई दवाइयों का एक पैकेट बनाया गया है जिसे हम जरूरतमंद मरीजों को देते हैं। इस एम्बुलेंस के जरिए हम कोविड के अलावा नॉन कोविड मरीजों को भी सुविधा देते हैं। "हर मरीज की सर्विस के बाद हम एम्बुलेंस को पूरी तरह सैनिटाइज करते हैं।”
ऑक्सीजन सिलेंडर की रिफिलिंग को लेकर अश्वनी रंजन ने कहा, “हमारे पास सिर्फ एक ही सिलेंडर होने की वजह से हम रिफिल कराने में एक घंटा का समय लग जाता है। अगर कोई व्यक्ति हमें एक सिलेंडर दे तो हम इस सेवा को बिना रूकावट जारी रख पाएंगे।” आशीष कुमार चौकसे और अश्वनी रंजन का कहना है कि एम्बुलेंस के ड्राइवर की सुरक्षा हमारे लिए प्राथमिकता है, इसलिए उनके लिए हम लोगों ने पीपीई किट को एम्बुलेंस में रखा है।”
आशीष कुमार चौकसे एक घटना का जिक्र करते हुए कहते हैं कि कुछ दिन पहले की बात है कि जब मैं एक दुकान पर गया था तो वहां किसी मरीज के परिजन को देखा कि वह एम्बुलेंस ड्राइवर से अपील कर रहे थे कि उनके मरीज को गाजीपुर तक छोड़ दे, लेकिन एम्बुलेंस ड्राइवर इसके लिए 12 हजार रूपया मांग रहा था। इसके बाद मुझे लगा कि क्यों न फ्री एम्बुलेंस सेवा शुरू की जाए। इसके बाद हमने आईआईटी बीएचयू के शोध छात्र और थिंक इंडिया के कार्यकर्ताओं से सलाह लेकर फ्री एम्बुलेंस सेवा की शुरुआत की।
फ्री एम्बुलेंस सेवा के लिए आर्थिक मदद कहां से आ रहा है? इस सवाल के जवाब में अश्वनी रंजन ने भदैनी मिरर को बताया, “आईआईटी बीएचयू के शोध छात्र व पूर्व छात्रों ने मदद किया है। यहां के कई प्रोफेसरों ने भी मदद किया है। करीब 25 हजार का सहयोग मेरे स्कूल के दोस्तों की तरफ से आया है। कई लोग सोशल मीडिया के जरिए मदद कर रहे हैं जिससे हम आराम से एम्बुलेंस चला पा रहे हैं।”
पग-पग पर थी चुनौती, हमारे पास बस हौसला था
आशीष कुमार चौकसे और अश्वनी रंजन ने एम्बुलेंस की तलाश में काफी मेहनत की थी। चौथे दिन इन्हें एक एम्बुलेंस मिला, लेकिन उसमें ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं था। अब आशीष कुमार चौकसे और अश्वनी रंजन ने ऑक्सीजन सिलेंडर ढूढ़ना शुरू किया और उन्हें तीसरे दिन सफलता मिली। अश्वनी रंजन ने बताया, “ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए हमें 2 से 3 दिन काफी मेहनत करना पड़ा। ऑक्सीजन सिलेंडर मिलने के बाद हमें ऑक्सीजन फ्लोमीटर के लिए संघर्ष करना पड़ा। ऑक्सीजन सिलेंडर से लेकर फ्लोमीटर तक हमें सब कुछ महंगे दामों पर खरीदना पड़ा। अब हम लोगों के सामने एक चुनौती है कि अगर ऑक्सीजन सिलेंडर खत्म हो जाता है तो 1-2 घंटे तक एम्बुलेंस सेवा रोककर सिलेंडर रिफिल कराने में समय लग जाता है।
फ्री एम्बुलेंस सेवा की क्यों पड़ी जरूरत?
“पिछले कई दिनों से हम सब ने न्यूज में देखा कि मात्र कुछ दूरी के लिए कोई एम्बुलेंस के लिए 48 हजार रूपये चार्ज कर रहा है तो कोई सिर्फ 2 किलोमीटर के लिए 4 हजार रूपया मांग रहा है। इस तरह कोरोना महामारी में मरीजों को असुविधाओं का सामना करना पड़ रहा है। कुछ एम्बुलेंस वाले मरीजों की मजबूरी का फायदा उठाकर उन्हें ठग रहे हैं। इसके अलावा मरीजों के लिए सरकारी स्तर पर चल रहे एम्बुलेंस की भी कमी हो गई है जिससे कई जरूरतमंद मरीजों तक एम्बुलेंस सेवा नहीं पहुंच पा रही है। यह सब देखने के बाद हमने फैसला लिया कि बनारस में मरीजों के लिए फ्री एम्बुलेंस सेवा शुरू की जाए।”