ध्रुपद तीसरी निशा: पखावजवादन ने श्रोताओं को झुमाया

ध्रुपद तीसरी निशा: पखावजवादन ने श्रोताओं को झुमाया

वाराणसी, भदैनी मिरर। ध्रुपद मेले की तीसरी निशा में पखावज श्रोताओं को खूब लुभाया। पहली प्रस्तुति के लिए मंचासीन हुए पंडित राजकुमार झा ने पखावजवादन के गाम्भीर्य का अत्यंत सहज प्रदर्शन किया। लयकारी से परिपूर्ण तिहाईयों का वादन प्रस्तुति की विशिष्टता रही। इनके साथ सारंगी पर पंडित ध्रुव सहाय और पखावज पर राजीव रंजन पांडेय ने सहयोग किया। पंडित राजकुमार झा पंडित पागलदास पखावजी के शिष्यों में से एक हैं।


दूसरी प्रस्तुति डॉ. ऋत्विक सान्याल की शिष्या डॉ मधुछन्दा दत्ता के गायन की रही। इनके साथ पखावज संगति रही अदित्यदीप की । मधुछन्दा ने गायन का आरंभ राग बिहाग में निबद्ध धमार से जिसके बोल थे ऐरी जोवन तेरो यार साथ ही सूलताल में निबद्ध  अपने गुरु डॉ ऋत्विक सान्याल द्वारा रचित ध्रुपद रचना सुनाकर आनंदित किया जिसके बोल थे 'हरि नाम करत सब'।


तीसरी प्रस्तुति शनीष ग्यावली के बांसुरी वादन की रही। बांसुरी वादन में सहयोग नटियल कोलबडिओ ने किया। पखावज पर सहयोग अदित्यदीप ने की। शनीष ने राग सरस्वती में अलाप जोड़ के उपरांत  चौताल एवं सूलताल मे निबद्ध ध्रुपद रचना बजायी।


चौथी प्रस्तुति पल्लव दास जी की रही। पल्लव दास ने गायन का आरंभ  राग बिहाग में आलापचारी के साथ  उपनिषद की सूक्ति 'ओमकार पंजर शुकीम को' ध्रुपद शैली में सुनाया साथ ही चौताल में निबद्ध रचना का भी गायन किया। गायन में सहयोग दी उनकी पुत्री मृणालिनी और पखावज पर संगति रही अदित्यदीप शर्मा की।


पंचम प्रस्तुति काशी के डॉ संजय कुमार वर्मा का विचित्र वीणा वादन रहा। राग जोग में आलापचारी के साथ जोड़ झाला बजाया और समापन हुआ चौताल में निबद्ध ध्रुपद रचना से की। 


तीसरी निशा की अंतिम प्रस्तुति पखावज वादन की रही। पंडित रामाशीष पाठक के शिष्य पंडित अनिल चौधरी ने पखावज वादन से कार्यक्रम का समापन किया। पंडित अनिल चौधरी कुशल कलाकार होने के साथ साथ सफल नेत्र चिकित्सक भी हैं। उनको सारंगी पर सहयोग श्री ध्रुव सहाय ने प्रदान किया। इस अवसर पर ध्रुपद मेला के संस्थापक सदस्य एवं उत्तर प्रदेश नाटक अकादमी के अध्यक्ष पद्मश्री  डॉ राजेश्वर आचार्य एवं कार्यक्रम के संयोजक महंत प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र  उपस्थित रहे। संचालन डॉ. प्रीतेश आचार्य व सौरभ चटर्जी ने किया।