चौकीदार के बेटे ने किया कमाल: रंग लाई विपिन की मेहनत, 'इसरो' में टेक्नीशियन पद पर हुआ चयन

मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाले विपिन कुमार यादव की कड़ी मेहनत रंग लाई और उनका भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) से जुड़ने का सपना साकार हुआ. जब 19 सितंबर को डाक द्वारा उन्हें 'इसरो' में टेक्नीशियन पद पर चयन की सूचना मिली, तो उनके परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई.

चौकीदार के बेटे ने किया कमाल: रंग लाई विपिन की मेहनत, 'इसरो' में टेक्नीशियन पद पर हुआ चयन

वो कहते है न कि अगर कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो फिर कितनी भी अड़चने आपके पंखों को उड़ान भरने से नहीं रोक सकती है. यही कहानी सुल्तानपुर के विपिन यादव की भी है, जिन्होंने सीमित संसाधनों और आर्थिक परिस्थियों के झेलते हुए आज वो मुकाम हासिल किया है, जो उन लोगों के लिए प्रेरणादायक है जो मुश्किलों के आगे घुटने टेक देते है.

मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाले विपिन कुमार यादव की कड़ी मेहनत रंग लाई और उनका भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) से जुड़ने का सपना साकार हुआ. जब 19 सितंबर को डाक द्वारा उन्हें 'इसरो' में टेक्नीशियन पद पर चयन की सूचना मिली, तो उनके परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई. परिवार और दोस्तों के बीच बधाइयों का सिलसिला भी शुरू हो गया.

दूबेपुर ब्लॉक के उगईपुर गांव के निवासी विपिन के पिता, राजपति यादव, कोतवाली देहात थाने में चौकीदार हैं. उनके दादा, जगत नारायण यादव, भी चौकीदार थे. उनकी मां, चमेला देवी, एक गृहिणी हैं. विपिन अपने परिवार में दूसरे स्थान पर हैं, उनकी बड़ी बहन नीलम ने संस्कृत में एमए किया है, जबकि छोटी बहन दीक्षा, राजकीय आईटीआई से इलेक्ट्रॉनिक मैकेनिक की पढ़ाई कर रही हैं.

विपिन ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव से प्राप्त की और फिर सर्वोदय इंटर कॉलेज और राजर्षि विश्वामित्र कॉलेज से आगे की पढ़ाई की. हाई स्कूल और इंटरमीडिएट की शिक्षा उन्होंने महाराणा प्रताप इंटर कॉलेज उतुरी से पूरी की. इंटरमीडिएट के बाद उन्होंने राजकीय पॉलिटेक्निक कॉलेज गोंडा से इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया. इसी दौरान उन्होंने आईटीआई की पढ़ाई की और 2018-19 में नेशनल स्किल्स ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट देहरादून से सीटीआई करने के बाद इलाहाबाद में तैयारी शुरू की. उनका सपना था इसरो से जुड़ने का, जिसे उन्होंने अपनी मेहनत और लगन के दम पर पूरा किया.

विपिन इस समय दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना, रांची, झारखंड में बतौर ट्रेनर काम कर रहे थे. जब डाक से उनके चयन की सूचना मिली, तो वे गांव लौटे, जहां परिवार ने उन्हें मिठाई खिलाकर बधाई दी. विपिन ने अपनी इस सफलता का श्रेय अपने परिवार को दिया और कहा कि आज उनका 'इसरो' से जुड़ने का सपना सच हो गया है.