घूरहूपुर बौद्ध महोत्सव में पहुंचे यूपी के कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर, देखिए यहां के भित्ति चित्रों की तस्वीरें

तहसील क्षेत्र के घूरहूपुर में स्थित बौद्ध स्थल पर बुधवार को प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी बौद्ध महोत्सव कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें की मुख्य अतिथि के रुप में पहुंचे योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर ने भगवान बुध के तैल चित्र पर पुष्प अर्पित कर पूजा अर्चना के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ किया।

घूरहूपुर बौद्ध महोत्सव में पहुंचे यूपी के कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर, देखिए यहां के भित्ति चित्रों की तस्वीरें

चकिया- तहसील क्षेत्र के घूरहूपुर में स्थित बौद्ध स्थल पर बुधवार को प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी बौद्ध महोत्सव कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें की मुख्य अतिथि के रुप में पहुंचे योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर ने भगवान बुध के तैल चित्र पर पुष्प अर्पित कर पूजा अर्चना के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इस दौरान बुद्धम शरणम गच्छामि धम्मम शरणम गच्छामि के उद्घोष से बौद्ध स्थल के साथ-साथ आसपास की पहाड़ियां पूरी तरह से गुंजायमान रहीं।

कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर ने कहा कि भगवान बुध का धम्म दुनिया में सर्वोपरि है। अहिंसा करुणा दया तथा मानवता का संदेश देकर भगवान बुद्ध ने सभी जगत के लोगों को हमेशा सत्य के मार्ग से हटकर सत्य के मार्ग पर चलने का रास्ता दिखाया और लोगों को जागरूक किया। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि लोगों को भगवान बुद्ध द्वारा यह बताया गया कि जो भी आपके पास है उतना ही लोगों को बताएं और किसी भी व्यक्ति से ईष्या का भाव ना रखें। और किसी भी व्यक्ति से कभी घृणा ना करें ऐसा करने से एक दूसरे के बीच में प्रेम का भाव खत्म हो जाता है। इसके साथ ही भगवान बुद्ध ने लोगों को तमाम संदेश दिए जिसको कि हम सभी लोग मिलकर मानवता भाईचारा और प्रेम का वातावरण बना सकते हैं।

कार्यक्रम के दौरान डॉ सुनील मौर्य, रमाशंकर राजभर, महेंद्र राजभर,भंते चंदन, श्रवण कुमार, लाल जी मौर्य, दशरथ, वासुदेव, राजू,भरत बिंद, सुभाष आदि उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन वशिष्ठ मौर्य एडवोकेट ने किया।

स्थल की खोज करने वाले दिवंगत पत्रकार को दी गई श्रद्धांजलि


इस दौरान कैबिनेट मंत्री सहित अन्य अतिथियों द्वारा घूरहूपुर बौद्ध स्थल की कई वर्षों पूर्व खोज करने के दौरान पहाड़ी से पैर फिसलने के दौरान गिरकर अपनी जान गवाने वाले बनारस के वरिष्ठ पत्रकार सुशील त्रिपाठी के तैल चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। उन्होंने कहा कि ऐसे व्यक्ति को शत-शत नमन है। जिन्होंने इतने घनघोर जंगलों में आकर ऐसे स्थल की खोज कर पूरी दुनिया में एक नाम देने का काम किया।

बौद्ध महोत्सव में उमड़ा लोगों का हुजूम


घूरहूपुर बौद्ध महोत्सव प्रत्येक वर्ष 2 नवंबर को मनाया जाता है। जिसमें आसपास के लोगों की भारी भीड़ उमड़ती है। और गांव से लोग बौद्ध महोत्सव में शामिल होने के लिए आते हैं। प्रत्येक वर्ष की तरह इस साल भी बौद्ध महोत्सव में मेले जैसा माहौल रहा। और बड़ी तादाद में आसपास के गांव सहित जनपद भर के लोग महोत्सव में पहुंचे हुए थे। और लोग पहाड़ियों पर चढ़कर भगवान बुध का दर्शन करने के साथ ही मेले का जमकर लुफ्त उठाया। लोगों ने मेले में चाट, पकौड़ी, जलेबी के साथ-साथ अन्य सामग्रियों की भी खरीदारी की। वही बच्चों ने खिलौने इत्यादि की खरीदारी किया।

प्राचीन सभ्यता होने के संकेत देती है यह पौराणिक गुफा


चंदौली के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में जिला मुख्यालय से लगभग ४५ किमी दूर घुरहूपुर की पहाड़ी पर एक पौराणिक गुफा मिला है।पहाड़ी के ऊपर स्थित गुफा के भीतर मौजूद गौतमबुद्ध की भित्ति चित्र इस स्थान पर किसी प्राचीन सभ्यता के होने के संकेत देती हैं।जिसकी खोज पुरातत्व विभाग ने भी कई महीनों तक काफी गहनता के साथ किया। वैसे अगर माने तो नक्सल क्षेत्र की पहाडियों में कई रहस्य अब भी दफ़न हैं। मगर समय के साथ एक के बाद एक रहस्य परत दर परत पिछले कई सालों से खुलने लगे हैं।

कुछ ऐसी ही कहानी घूरहूपुर की पहाड़ियों की है। 3 अक्टूबर 2008 लगभग 14 साल पूर्व हिन्‍दुस्‍तान के वरिष्ठ पत्रकार सुशील त्रिपाठी की कवरेज के दौरान इस स्थान पर दुर्घटना में हुई मौत के बाद यह गुफा पुरातत्व विभाग के संरक्षण में दे दी गयी। जिसके बाद से अब हर वर्ष श्रद्धालुओं का हुजूम यहाँ दर्शन पूजन के लिए उमड़ता है। इस पहाड़ी के ऊपर गुफाओं में मिले गौतम बुद्ध, पञ्चशील, कन्याए व जानवरों के भित्ति चित्र ने इस स्थान को पूरे विश्व में ख्याति दिला दी है।अब श्रीलंका, नीदरलैंड, चीन, नेपाल, भूटान आदि देशों के बौद्ध धर्मावलम्‍बी यहां भारी संख्‍या में पहुंचते हैं।

जानिए स्थल की खोज करने वाले कौन थे वरिष्ठ पत्रकार सुशील त्रिपाठी
आपको बताते चलें बहुत कम लोग ही जानते हैं कि सुशील त्रिपाठी का जन्म चंदौली के धानापुर प्रखंड के एक गांव में साल 1956 में हुआ था। दैनिक आज, अमर उजाला,  दैनिक जागरण को सेवाएं देने के बाद आखिर में हिन्दुस्तान के वाराणसी संस्करण में प्रमुख संवाददाता बने। विंध्य की पहाड़ियों से सुशील त्रिपाठी का गहरा नाता था। तभी तो सुनगुन मिलते ही वह घुरहूपुर में भगवान बुद्ध के जीवन दर्शन की तलाश में निकल पड़े। पहाड़ी से गिरे तो कोमा में चले गए। बीएचयू के सरसुंदर लाल अस्पताल में और बाहर हजारों दोस्तों ने उन्हें बचाने सारा जतन किया, मगर वह नहीं लौटे। तीन अक्टूबर 2008 को उनकी मौत की अफवाह उड़ी और अगले दिन चार अक्तूबर की सुबह सच हो गई। सुशील त्रिपाठी भले ही दुनिया में नहीं हैं।लेकिन अब घुरहूपुर में रोजाना बौद्ध अनुयायियों का जमघट लगता है। हर साल दो नवंबर को वहां बौद्ध महोत्सव मनाया जाता है, जिसमें देश-विदेश से हजारों लोग आते हैं। इस स्थल के विकास के नाम पर अब तक करीब दो करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। 

बौद्ध स्थल पर आज भी है विकास की कमी


घुरहूपुर की पहाड़ियों पर सिर्फ कुछ दूर तक  रेलिंग बनवाने का कार्य शहाबगंज ब्लॉक के तत्कालीन ब्लॉक प्रमुख रहे छत्रबली सिंह द्वारा कराया गया है। इसके अलावा कोई खास काम नहीं हुआ है।यहां जो कुछ भी हुआ वह चंदौली के तत्कालीन कलेक्टर रिग्जियान सैम्फिल की निजी कोशिशों के दम पर हुआ था। वहीं अगर वर्तमान की बात की जाए तो केवल कुछ जनप्रतिनिधियों द्वारा मौके पर मुख्य द्वार के अलावा ऊपर पहाड़ी के कुछ हिस्सों में पत्थरों से पक्की सीढ़ी का निर्माण कराया गया है।

जानिए बौद्ध स्थल के मुख्य चीजों के बारे में, जरा सी चूंक ले सकती है जान


करीब डेढ़ सौ फीट ऊंची पहाड़ी पर निर्मित इन गुफाओं पर कई खतरनाक मोड़ से होकर गुजरना पड़ता है। जरा सी चूक आपकी जान ले सकती है। गुफाओं को आपस में जोड़ने के लिए कई सुरंगें हैं। उसमें घुसने के लिए सीढ़ियां भी बनी हैं। एक गुफा में प्रवेश करने पर हाल की तरह की एक संरचना है, जिसमें दो-तीन दर्जन लोग आराम से बैठकर ध्यान और पूजा-अर्चना कर सकते हैं। इस हाल से जुड़े नौ खोह हैं। हर खोह में इतनी जगह है कि एक व्यक्ति पालथी मार कर साधना कर सकता है। गुफा से नीचे उतरने के लिए सीढ़ी नुमा संरचना है जो इस समय भी जीर्ण हालत में है। मुख्य द्वार पर आठ-दस पद चिह्न भी हैं। गुफा में पत्थरों से टेक लगाकर एक पालिश की गई तख्तनुमा संरचना है, जिसके एक सिरहाने पर सिर के आकार का चिह्न निर्मित है। लगता है कि इस तख्त का प्रयोग सोने के लिए किया जाता रहा होगा। गुफाओं की संरचना को देखकर प्रतीत होता है कि यह कभी बौद्ध मठ के रूप में विकसित रहा होगा।

गुफा में मिले भित्ति चित्र और पदचिन्ह चमत्कार को दर्शाते हैं


गुफा में बुद्ध के भित्ति चित्र के ठीक नीचे खोदे गए स्थान से जल का सोता निकलता है। लोग इसे भगवान बुद्ध का चमत्कार मानते हैं। साथ ही इसके जल को प्रसाद स्वरूप ग्रहण करते हैं। गुफा की दीवारों पर हिरन, उल्लू, मानव, घोड़ा और कुछ समूह चित्र भी बने हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि इन चित्रों के जरिए कथा कहने की कोशिश की गई है। गुफा की दीवारों पर बनी राक पेंटिंग सैकड़ों साल पहले वहां मनुष्य के निवास स्थान को दर्शाती है।


गुफा के मुख्य द्वार पर आठ-दस पद चिह्न बने हैं। घुरहूपुर के लोग कयास लगाते हैं कि ये भगवान बुद्ध के पद चिह्न हैं। हालांकि पुरातत्वविद् के इससे इत्तिफाक नहीं रखते। वह कहते हैं कि भित्ति चित्र गुप्त काल के हैं। बौद्ध अनुयाई बताते हैं कि सम्राट अशोक ने 84 हजार स्पूतों, शिलालेखों व भित्ति चित्रों के माध्यम से भगवान बुद्ध के जीवन दर्शन का प्रचार किया था। प्रज्ञा, करूणा, मैत्री के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने के लिए ऐसे भित्ति चित्रों का प्रयोग किया गया था। घुरहूपुर की गुफाओं के भित्ति चित्रों में उन्हीं रंगों का इस्तेमाल किया गया है। जैसा बनारस के सारनाथ में प्रयोग किए गए हैं। इन चित्रों में प्रयुक्त चटख रंग कई तरह की वनस्पतियों को मिलाकर बनाया गया है।

गुफाओं में पाली भाषा में अंकित है अक्षर


गुफा की दीवारों पर भगवान बुद्ध की समाधि मुद्रा और उनके अगल-बगल में कलश की आकृति चित्रित है। दीवार पर भगवान बुद्ध के चित्र के ऊपर पाली भाषा में शिलालेख भी पेंट किया गया है। जिनमें वनस्पतियों के मिश्रण से तैयार रंगों का प्रयोग किया गया है। पाली भाषा में चित्रित अंकों के बारे में प्रियदर्शी अशोक मिशन (पाम) बिहार के सदस्य डा. विजय बहादुर मौर्य बताते हैं कि उत्कीर्ण शिलालेख में भगवान बुद्ध का जन्म काल ईसा पूर्व 563 और बुद्धम् शरणम् गच्छामि, संघम् शरणम् गच्छामि और धम्मम् शरणम् गच्छामि का सूत्र वाक्य अंकित है। पर्यटक स्थल के रूप में मशहूर हो रहे घुरहूपुर में पत्रकार सुशील त्रिपाठी के यादों को संजोने के लिए भले ही कुछ नहीं किया गया है। लेकिन वहां पहुंचने वाले हर किसी के लबों पर उनका नाम जरूर याद आता है। घुरहूपुर में उनकी यादें अब भी जिंदा हैं और आगे भी रहेंगी।

पर्यटन स्थल बनाने की हो चुकी है घोषणाएं


घूरहूपुर बौद्ध स्थल पर प्रत्येक वर्ष बौद्ध महोत्सव मनाने के दौरान प्रदेश एवं केंद्र स्तर के जनप्रतिनिधियों एवं बिहार सरकार के भी कई मंत्रियों के आगमन के दौरान इस स्थल को पर्यटन स्थल बनाने की घोषणाएं की जा चुकी है। लेकिन कई वर्ष बीत जाने के बाद भी यहां की स्थिति और भी जस की तस है। और पर्यटन स्थल बनाने की केवल जुबानी बात चल रही है हालांकि जमीनी हकीकत देखी जाए तो अभी ऐसा कुछ नहीं है।

संवाददाता कार्तिकेय पांडेय