राम-भरत के मिलाप को देखकर डबडबा गई श्रद्धालुओं की आंखें, नाटी इमली का भरत मिलाप संपन्न...
सात वार, नौ त्यौहार के लिए प्रसिद्ध काशी नगरी के लक्खा मेले में शुमार नाटी इमली भरत मिलाप बुधवार को धूमधाम से संपन्न हुआ.
वाराणसी, भदैनी मिरर। सात वार, नौ त्यौहार के लिए प्रसिद्ध काशी नगरी के लक्खा मेले में शुमार नाटी इमली भरत मिलाप बुधवार को धूमधाम से संपन्न हुआ. आंखों में काजल, माथे पर लाल पगड़ी और चंदन में सज-धज युवाओं के बीच गोधूली बेला में जब भगवान राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न पहुंचे और गले मिले तो इस नयनाभिराम दृश्य को देखकर श्रद्धालुओं की आंखें डबडबा गई. राजा रामचंद्र समेत चारों भाईयों के जयकारे से पूरा परिसर गूंजायमान हो गया. पांच मिनट के इस लीला को देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं का रेला उमड़ा था.
परंपरा का निर्वहन करने के लिए काशी नरेश कुंवर अनन्त नारायण सिंह भी पहुंचे. भरत मिलाप स्थल "हर-हर महादेव"और "जय श्री राम" के नारों से गूंज उठी. क्षण भर की लीला देखने को श्रद्धालु आतुर दिखे. पूरा वातारण जय श्री राम के उद्घोष के साथ रामभक्ति में डूबा रहा. तय तिथि पर जैसे ही भगवान राम और भरत दौड़कर एक दूसरे को गले लगाए मानों डमरुओं और शंख की ध्वनि से वहां मौजूद श्रद्धालुओं का रोम-रोम भक्तिरस में डूब गया. आसपास के घरों की छतों से फूलों की वर्षा मानों ऐसी छटा बिखेर रही थी की सभी अपने मन-मस्तिष्क और कैमरे में छवि को संजोने का जतन करते रहे.
भरत मिलाप की ऐतिहासिक लीला गोस्वामी तुलसीदास की प्रेरणा से उनके समकालीन संत मेधा भगत ने शुरू कराई थी. मान्यता है कि काशी के भरत मिलाप की इस लीला में भगवान राम स्वयं अवतरित होते हैं. चित्रकूट रामलीला समिति द्वारा आयोजित भरत मिलाप की लीला देखने के लिए काशी राजपरिवार के सदस्य कुंवर अनंत नारायण सिंह हाथी पर सवार होकर आते हैं. वह लीला के व्यवस्थापकों को हर वर्ष सोने की गिन्नी देते हैं.