जंगमबाड़ी मठ में पद्मश्री के. के. त्रिपाठी, सांड बनारसी सहित कई महानुभाव हुए सम्मानित...

In Jangambari Math Padmashree K.K. Tripathi including the Sand Banarasi were honored. जंगमबाड़ी मठ में पद्मश्री के.के. त्रिपाठी, सांड बनारसी सहित कई गणमान्य सम्मानित हुए.

जंगमबाड़ी मठ में पद्मश्री के. के. त्रिपाठी, सांड बनारसी सहित कई महानुभाव हुए सम्मानित...

वाराणसी,भदैनी मिरर। जंगमवाड़ी मठ के आद्य संस्थापक जगद्गुरु विश्वाराध्य के दो दिवसीय समारोह का शुभारम्भ सोमवार को पीठाधीश्वर जगद्गुरु 1008 डाक्टर चन्द्रशेखर शिवाचार्य महास्वामी के पंचाचार्य ध्वजारोहण के साथ हुआ। कार्यक्रम में आद्य संस्थापक के नाम पर प्रतिवर्ष दिया जाने वाला अखिल भारतीय विशिष्ट पुरस्कार इस वर्ष पदमश्री पंडित वागीश शास्त्री को दिया गया। व्रजवल्लभ द्विवेदी शैवभारती पुरस्कार आचार्य ब्रह्मानन्द शुक्ल चुनार मीरजापुर को तथा कोडिमठ संस्कृत साहित्य पुरस्कार डॉ. गिरीशदत्त  पाण्डेय वाराणसी तथा लि. सौ. सिंधु सुभाष म्हमाणे मातृशक्ति पुरस्कार विदुषी प्रो. चन्द्रकान्ता राय, आर्य महिला महाविद्यालय वाराणसी एवं जयदेवश्री हिन्दी साहित्य पुरस्कार कवि पं. सुदामा तिवारी 'साँड बनारसी' को प्रदान किया गया एवं अस्थिरोग विशेषज्ञ डॉ. रोहित पाण्डेय को 'अभिनवसुश्रुत' मानद उपाधि से सम्मानित किया गया। ग्रन्थ शिवार्पण की श्रृंखला में अष्टावरण विज्ञान (अंग्रेजी) डॉ एम. शिवकुमार स्वामी, बैंगलोर आर्थिक शब्दावली डॉ. तरुण के. द्विवेदी, अहमदाबाद दोनों ग्रन्थों का शिवार्पण परमपूज्य जगदगुरुजी के करकमलों से सम्पन्न हुआ। 

पद्मअंलकरण से विभूषित होने वाले पं. वशिष्ठ त्रिपाठी, डॉ. कमलाकर त्रिपाठी (चिकित्सक), पं. शिवनाथ मिश्र, स्व. राधेश्याम खेमका के पौत्र आशुतोष खेमका का भी विशिष्ट सम्मान किया गया।

कार्यक्रम की मुख्य अतिथि प्रो. निर्मला मौर्य , कुलपति बीर बहादुर सिंह पूर्वाचल विश्वविद्यालय जौनपुर ने अपने सम्बोधन में कहा कि मैं इस पीठ की प्राचीन परम्परा से अवगत हूं। इस पीठ पर इसके स्थापना काल से माँ सरस्वती का वरदहस्त रहा है तभी तो यह ज्ञानसिंहासन के रूप में सम्पूर्ण भारत में प्रसिद्ध है। आपने आगे कहा कि यहां पुराकाल से ही ज्ञान की गंगधारा निरन्तर बहती आ रही है। सभा की अध्यक्षता करते हुए डा. चन्द्रशेखर शिवाचार्य महास्वामी ने कहा कि इस मठ को समस्त भारत के विद्वानों का बराबर सहयोग मिलता चला आ रहा है। यहां कोई प्रान्तवाद नहीं है केवल विद्यावाद की पूजा होती है। महाशिवरात्रि के आयोजन में मठ में यहां लघु भारत का रूप चारो ओर देखने को मिलता है। 

आपने आगे कहां कि प्रतिवर्ष मठ आगमशास्त्र के दुर्लभ ग्रन्थों का प्रकाशन करता आ रहा है। आपने मठ की अनेक विकास की बहुमुखी योजनाओं पर भी प्रकाश डाला। सभा में उपस्थित अनेक विद्वानों ने कहा कि शैवागम शास्त्र के प्रचार प्रसार में यह पीठ शुरू से ही अग्रणी रहा है। यहां हजारो वर्ष से यही परम्परा चली आ रही है। सभा में मठ की ओर से समस्त विद्वानों का सम्मान किया गया।