महिला उत्पीड़न व लैंगिक मुद्दों पर दखल संस्था ने आयोजित किया संवाद कार्यक्रम, छात्रों को दिखाया 'घर की मुर्गी' नामक लघु फिल्म...
भारतेंदु हरिश्चंद्र महाविद्यालय में दखल संस्था द्वारा महिला उत्पीड़न व लैंगिक मुद्दों पर दखल संस्था ने संवाद का कार्यक्रम आयोजित किया. इस दौरान छात्रों को 'घर की मुर्गी' नामक लघु फिल्म भी दिखाई गई.
वाराणसी, भदैनी मिरर। महिला उत्पीड़न व लैंगिक मुद्दों को लेकर जागरुकता एवं संवेदनशीलता के प्रसार हेतु मैदागिन स्थित हरिश्चन्द्र महाविद्यालय में दखल संगठन ने छात्रों से संवाद का कार्यक्रम आयोजित किया. इस दौरान महिला उत्पीड़न व लैंगिक मुद्दों को लेकर जागरुकता एवं संवेदनशीलता के प्रसार हेतु विद्यार्थियों को "घर की मुर्गी" नामक लघु फिल्म का प्रदर्शन किया गया.
करीब 19 मिनट की यह फिल्म समाज के पारम्परिक रूढ़िवादी ढाँचे पर कुठाराघात करती है. फ़िल्म सवाल पैदा करती है कि घर में काम करने वाली गृहणी क्या है? क्या घर की मुर्गी है ? जिसके श्रम की कोई कद्र नहीं करता. 'घर की मुर्गी' कहानी है एक परिवार की. ये परिवार देश का कोई भी परिवार हो सकता है. बच्चों को कभी उनकी पसंद का तो कभी उनकी नापसंद का नाश्ता खिलाने वाली गृहणी स्कूल की वैन के लिए भागती है. दूध लेने के लिए भागती है. सास की मालिश करने भागती है. ससुर को टहलाने के लिए भागती है. फिर रात को बच्चों का होमवर्क, पति के ताने और गुडनाइट. यही नहीं इस सबके बीच वह अपना छोटा सा ब्यूटी पार्लर चलाकर अतिरिक्त आमदनी भी घर लाती है. लेकिन, किसी को उसकी कद्र नहीं. सब उसे घर की मुर्गी समझते हैं.
फिल्म एक महिला की खोई हुई अहमियत को अंत में उस बल के साथ पेश करती है, जिसकी चाह हर उस महिला को होती है जो घर को बुनती-संजोती है. फिल्म प्रदर्शित करने के बाद खुली चर्चा की गई. छात्र छात्राओं ने सिनेमा देखकर मन मे जो विचार उत्पन्न हुए उन्हें साझा किया. एक छात्रा ने बताया की हम अक्सर पितृसत्ता सुनते थे लेकिन उसका अर्थ नही समझ पाते थे. आज के इस आयोजन से पितृसत्तात्मक सोच होती क्या है ये समझने को मिला. ये व्यवस्था महिलाओं को घर की मुर्गी ही समझती है. एक अन्य छात्रा ने कहा कि ये व्यवस्था तो सदियों से चली आ रही है. इसमे पत्नी मां आदि बनकर हम सभी महिलाएं इसी चक्की में खपने को ट्रेंड की जाती हैं. इसका रास्ता क्या है? संवाद कार्यक्रम की ही सहभागी एक अन्य छात्रा ने कहा कि प्रश्न तो जटिल है लेकिन शायद शिक्षा और स्वावलम्बन कोई रास्ता निकाल सके जो भेदभाव हटाकर समतापूर्ण और शांतिमूलक समाज बनाने में मदद कर सके. कार्यक्रम में शामिल सहभागियों ने एक दूसरे से ये वादा किये की हम सभी मिलकर समाज की इन रूढ़ियों को तोड़ेंगे.
कार्यशाला में विभाग की प्रोफेसर अनिता, डॉ अनुराधा आदि शिक्षिकाओं व विभाग के विद्यार्थी काफी संख्या में शामिल रहे. कार्यक्रम का संचालन विजेता ने किया. कार्यक्रम में मुख्य रूप से शालिनी, मैत्री, विजेता , काजल, शिवांगी, रैनी, धीरज, दीपक आदि की प्रमुख भागीदारी रही.