धधकती चिताओं के बीच पूरी रात नगर वधुओं ने किया नृत्य, भावांजलि से की अगला जनम सुधारने की विनती...
मणिकर्णिका घाट पर धधकती चिताओं के बीच नगर वधुएं ने नृत्य पेश कर शवलोक में शिवलोक का अनुभव करवाया.
वाराणसी, भदैनी मिरर। प्रत्येक वर्ष चैत्र नवरात्र के पंचमी से सप्तमी तक तीन दिवसीय चलने वाले मणिकर्णिका घाट स्थित श्री श्री १००८ बाबा महाश्मसान नाथ जी के वार्षिक श्रृंगार के अंतिम दिन मंगलवार को पूरी रात नगर वधुओ ने अपने गायन और नृत्य के माध्यम से परंपरागत भावांजलि अर्पित की. धधकती चिताओं के बीच नृत्य कर नगर वधुओ ने बाबा से यह प्रार्थना की 'हे बाबा मेरा अगला जन्म सुधारो '।
सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरुआत बाबा के भजन 'दुर्गा दुर्गति नाशिनी, दिमिग दिमिग डमरू कर बाजे, डिम डिम तन दिन दिन तू ही तू जगबक आधार तू, ओम नमः शिवाय, मणिकर्णिका स्रोत, खेले मसाने में होरी के बाद दादरा, ठुमरी, व चैती गाकर बाबा के श्री चरणों में अपनी गीतांजलि अर्पित की. इनके बाद काशी के प्रसिद्ध गायक जय पांडेय द्वारा भजनो को अपने सुमधुर गायन औम मंगलम औमकार मंगलम,बम लहरी बम बम लहरी जैसे भजनो से भक्तों को झुमने पर मजबूर कर दिया.
यह है मान्यता
इस श्रृंगार महोत्सव के प्रारंभ के बारे में विस्तार से बताते हुए गुलशन कपूर ने कहा कि यह परम्परा सैकड़ों वर्षों से चला आ रहा है. जिसमें यह कहा जाता हैं कि राजा मानसिंह द्वारा जब बाबा के इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया था. तब मंदिर में संगीत के लिए कोई भी कलाकार आने को तैयार नहीं हुआ था. ( हिन्दू धर्म में हर पूजन या शुभ कार्य में संगीत जरुर होता है।) इसी कार्य को पूर्ण करने के लिए जब कोई तैयार नहीं हुआ तो राजा मानसिंह काफी दुःखी हुए, और यह संदेश उस जमाने में धीरे-धीरे पूरे नगर में फैलते हुए काशी के नगर वधुएं तक भी जा पहुंचा तब नगर वधुएं ने डरते डरते अपना यह संदेश राजा मानसिंह तक भिजवाया कि यह मौका अगर उन्हें मिलता हैं तो काशी की सभी नगर वधुएं अपने आराध्य संगीत के जनक नटराज महाश्मसानेश्वर को अपनी भावाजंली प्रस्तुत कर सकती है. यह संदेश पा कर राजा मानसिंह काफी प्रसन्न हुए और सस्मान नगर वधुएं को आमंत्रित किया गया और तब से यह परम्परा चल निकली, वही दुसरे तरफ नगर वधुओ के मन मे यह आया की अगर वह इस परम्परा को निरन्तर बढ़ाती हैं तो उनके इस नरकिय जीवन से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होगा फिर क्या था आज सैकड़ों वर्ष बितने के बाद भी यह परम्परा जिवित है और बिना बुलाये यह नगर वधुएं कहीं भी रहे चैत्र नवरात्रि के सप्तमी को यह काशी के मणिकर्णिका घाट स्वयं आ जाती है.