National Sports Day 2024: पहलवान बनना चाहते थे, बन गए हाकी के जादूगर...जानें मेजर ध्यानचंद के जीवन से जुड़े रोचक किस्से
29 अगस्त को साल 2012 से हर साल राष्ट्रीय खेल दिवस के तौर पर मनाया जाता है. आज इस खास मौके पर हम आपको हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के जीवन से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्सों के बारे में बताएंगे.
National Sports Day 2024 : भारत के महानतम एथलीट और 'हॉकी के जादूगर' मेजर ध्यानचंद की आज 119वीं जयंती है. इस मौके पर भारत अपना 13वां राष्ट्रीय खेल दिवस भी मना रहा है. ध्यानचंद को दुनिया में लगभग 55 देशों के 400 से अधिक पुरस्कार प्राप्त हुए हैं. इन्हीं उपलब्धियों के कारण उनके जन्मदिन 29 अगस्त को साल 2012 से हर साल राष्ट्रीय खेल दिवस के तौर पर मनाया जाता है. आज इस खास मौके पर हम आपको हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के जीवन से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्सों के बारे में बताएंगे. इनकी कहानी हर किसी को प्रेरित करेगी खासकर खिलाड़ियों को...
मेजर ध्यानचंद का जन्म प्रयागराज में 29 अगस्त सन् 1905 में एक राजपूत परिवार में हुआ था. इनके पिता का नाम समेश्वर दत्त सिंह और माता का नाम श्रद्धा सिंह था. मेजर ध्यान चंद के पिता सेना में थे. झांसी स्थानांतरण होने के बाद ध्यानचंद भी साथ चले गए. दिलचस्प बात यह है कि दुनिया के इस महान हॉकी खिलाड़ी को बचपन में हॉकी नहीं, बल्कि पहलवानी का शौक था.
ध्यानचंद ने मात्र 16 साल की उम्र में भारतीय सेना में प्रवेश किया था. सेना में सेवा करते समय, उन्होंने ब्राह्मण रेजिमेंट के मेजर बले तिवारी से हॉकी खेलना सीखा. 13 मई 1926 को उन्होंने न्यूजीलैंड में भारत के लिए अपना पहला अंतरराष्ट्रीय मैच खेला. ध्यानचंद जी के पास हॉकी खेलने की कोई जन्मजात प्रतिभा नहीं थी, लेकिन अपनी अथक मेहनत और लगन से उन्होंने पूरी दुनिया में अपनी पहचान बनाई. 1948 में ध्यानचंद ने हॉकी से संन्यास की घोषणा की.
हॉकी से गेंद चिपकने के किस्से थे मशहूर
माना जाता है कि मेजर ध्यानचंद हॉकी खेलते थे, तो मानो गेंद उनकी स्टिक से चिपक जाया करती थी. इस आशंका को दूर करने के लिए हॉलैंड (नीदरलैंड) में एक मैच के दौरान उनकी हॉकी स्टिक को तोड़कर चेक किया गया था. जापान में भी एक मैच के दौरान उनकी स्टिक में गोंद लगे होने की बात भी कही गई थी.
185 मैचों में 570 गोल
मेजर ध्यानचंद ने भारत के लिए खेलते हुए कुल 185 मैचों में 570 गोल किए. वह विश्व में सबसे अधिक गोल करने वाले खिलाड़ियों में पहले स्थान पर हैं. औसतन, उन्होंने हर मैच में 3 से अधिक गोल किए. उनके पीछे दूसरे नंबर पर आने वाले खिलाड़ी के खाते में 348 गोल हैं. खेल के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए भारत सरकार ने 1956 में उन्हें देश के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान, पद्म भूषण से सम्मानित किया.