VARANASI: मालिनी अवस्थी ने कहा- साल भर कहीं भी गुनगुनाएं, मगर संकटमोचन दरबार में हाजिरी के बगैर सब अधूरा...
श्री संकटमोचन संगीत समारोह का मंच गुरुजनों के पीठ के समान है. यह दरबार प्रणम्य है क्योंकि यहां श्रोता खुद हनुमान जी महराज है. इन दरबार में हाजिरी लगाना सुखद अनुभूति है.
वाराणसी, भदैनी मिरर। भले ही साल भर पूरे देश में कलाकार श्रोताओं को अपने कला से झुमाता हो लेकिन सभी बड़े कलाकारों की यह इच्छा होती है कि वह श्री संकटमोचन संगीत समारोह में जरूर अपनी हाजिरी दर्ज करवाये. कलाकार इस दरबार में हनुमान जी को सुनाता है. जिसके लिए कई दिन पहले से इस उधेड़- बुन में रहता है कि किस भाव को सुनाए कि हनुमान लला हम पर रीझ जाएं. यह उद्गार थे श्री संकटमोचन संगीत समारोह की तीसरी निशा में प्रस्तुति देने आई ख्यात लोकगायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी के.
प्रणम्य है यह मंच
भाव से भरी मालिनी अवस्थी ने कहा कि इस दरबार में कोई भेद नहीं. बड़ा हो या छोटा कलाकार सभी जमीन पर बैठकर कलाकारों संग श्रोता भी संगीतांजलि पवनपुत्र के चरणों में निवेदन करते हैं. यह मंच प्रणम्य इसलिए हो जाता है क्योंकि यहां श्रोता खुद अंजनि लला हैं.
मालिनी अवस्थी ने कहा कि यह वही दरबार है जब हम एक श्रोता की तरह आते थे, फिर गुरुजनों की कृपा और प्रभु राम का आशीर्वाद बना की आज हनुमान जी के दरबार में कलाकार के रुप में आती हूं. उन्होंने कहा कि धन्य है महंत प्रोफेसर विश्वंभरनाथ मिश्र की कभी वह कलाकारों में भेद नहीं करते. बड़े से बड़ा कलाकार जिस मंच पर गा रहा होता है उसी मंच पर छोटे कलाकार को भी हाजिरी लगाने का मौका मिलता है.
गुरुजनों के पीठ जैसा है यह दरबार
मालिनी अवस्थी आगे कहती हैं कि संकटमोचन की परंपरा को जो बड़े करीब से जान रहा है वह इस बात का गवाह है कि बड़ा कलाकार छोटे को सुनता है, और गलती पर सिखाता भी है. छोटे कलाकार बड़े कलाकारों से निरंतर सीखते है. उन्होंने कहा कि संगीत चला तभी है जब नए और पुराने सभी एक साथ आए. उन्होंने कहा कि इसी मंच पर हमारी गुरु और हम जैसे कलाकारों के गुरुजनों ने संगीत के माध्यम से हनुमान लला के दरबार की सेवा की है इसलिए संकट मोचन संगीत समारोह के मंच को गुरुजनों के पीठ की तरह समझना चाहिए.