परमात्मा को सौंप दें जीवन की बागड़ोर, लहराता रहेगा विजय पताका...

Hand over the reins of life to God, the flag of victory will keep on waving. माता शारदा के पूर्व प्रधान पुजारी स्वामी श्री कहते है कि यदि हम अपने सत्कर्मों को करते हुए जीवन की बागड़ोर परमात्मा के हाथों में सौंप दें तो वह हमें कभी हारने नहीं देगा, हमेशा विजय पताका लहराता रहेगा।

परमात्मा को सौंप दें जीवन की बागड़ोर, लहराता रहेगा विजय पताका...
शारदा शक्तिपीठ माता शारदा के पूर्व प्रधान पुजारी स्वामी श्री श्री 108 श्री देवी प्रसाद जी महाराज द्वारा रचित जीवन क्या है पुस्तक से लिया गया अंश।

वाराणसी,भदैनी मिरर। अध्यात्म विद्या के प्रथम सोपान को सद्गुरु ही बता सकते हैं। इसलिए अभी से ही निरन्तर सद्गुरु की तलाश में लग जाना चाहिए। इस संसार में वही साधक साधना व जीना जानता है। जो जीवन क्या है? यह जानता है। मानव जीवन भी अबूझ पहेली है। स्वयं अपने जीवन के सम्बंध में  मनुष्य कुछ भी नही जानता अनभिज्ञ है। माया के अधीन रहता है। मायाधीन होने के कारण संसार अनगिनत दुःखों को भोगता है। जैसे घनघोर बादल के आ जाने पर चंद्रमा और सूर्य को रोशनी समाप्त हो जाती है। ठीक उसी प्रकार मायाधीन व्यक्तियों के शरीर से ज्ञान समाप्त हो जाता है। बुद्धि विवेक नष्ट हो जाता है। तन भोग में डूब जाता है, अहं शांति और आनंद के वियोग में डूब जाता है। हमारी दृष्टि से तो कर्मकांड करते-करते मनुष्य का पुरुषार्थ हार जाता है, थक जाता है। हमारे विचार से तो परमात्मा का शरणार्थी बन जाता है । अपने जीवन की बागडोर जिसने परमात्मा को सौंप दिया उसके विजय का झंडा सदैव फहराता रहता है।

सम्पूर्ण माया केवल परमात्मा की माया है

शारदा शक्तिपीठ के पूर्व प्रधान पुजारी स्वामी श्री देवी प्रसाद जी महाराज अपने रचित पुस्तक 'जीवन क्या है' में लिखते है कि- मनुष्य माया के समक्ष बहुत ही निर्बल और बहुत कमजोर है। संपूर्ण समस्याओं का समाधान सद्गुरु के चरणो में है। प्रकृति से ही सत्य है, प्रकृति निर्माता ने अपने विचारों में बहुत सारी बातों का को निर्मित कर रखा है। केवल जीवो को माया में फंसाने के लिए प्रकृति बनाई गई। यह संपूर्ण माया केवल परमात्मा की माया है और जो परमात्मा की माया है। मृत्यु लोक के निर्मित निर्माण में जाल बिछाने का कार्य केवल परमात्मा का है और माया में फंसाने के लिए मनुष्य को जीवन को सुख सुविधाओं को निर्मित कर मनुष्य को प्रदान किया है। आंख होते हुए भी माया के अंधकार में मनुष्य भटक रहा है। ना शांति है, ना सुख है और ना आनंद है। 

त्रिगुणमयी माया में फंसा है मनुष्य

मनुष्य त्रिगुणमयी माया में तीन बात पर मनुष्य फंसा हुआ है। जर,जोरू और जमीन। अर्थात केवल मनुष्य इन तीनों में डूबा हुआ। जर का अर्थ रुपया, पैसा, हीरा, मोती, जवारात से है। जोरू का अर्थ नारी से है। जमीन का अर्थ भूमि से है। अंतिम भूमि स्वयं इंगित कर रहा है की आओ अज्ञानी मनुष्य मैं तुम्हारा इंतजार कर रही हूं और अज्ञानता के कारण या मनुष्य जीवन निरर्थक श्मशान भूमि में पहुंच जाता है। जब तक सदगुरु की उपलब्धि नहीं होती तब तक जीवन के अंतर्गत परम सत्य क्या है जान नहीं पाएंगे।

शरीर को परमात्मा ने दिया है दो प्रबल उपहार

इस शरीर को परमात्मा ने दो प्रबल उपहार दे रखे हैं। वह है मन और बुद्धि। निरंतर अपने मन को देखते रहिए और माया से घसीट कर सगुण साकार ब्रह्म की किसी एक स्वरूप के चरणों में मन को लगाते रहिए। सबसे सरल उपाय है, परमात्मा के सगुण साकार किसी एक नाम का मन में स्मरण जारी रखिए। मन जहां भी जाता है जाने दीजिए। आप निरंतर परमात्मा का नाम हर स्थिति में लेते रहिए। परमात्मा का निरंतर नाम लेने का अर्थ हुआ कि क्या शरीर रूपी भूमि में अध्यात्म का बीज बो दिया है। मानव जीवन से यथार्थ वालों की ओर मन अग्रसर हो चला है। यह आध्यात्म का बोया हुआ बीज बड़ा होने पर जो फल देगा सद्गुरु रूपी फल को प्रदान कर देगा।